गौतम बुद्ध, जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की, एक महान संत और विचारक थे। उन्होंने अपने जीवन में मानवता को दुखों से मुक्ति पाने और सही जीवन जीने की राह दिखाई। बता दें कि हर वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन बौद्ध पूर्णिमा पर्व मनाई जाती है। उनकी शिक्षाएं आज भी करोड़ों लोगों को मार्गदर्शन देती हैं। आइए जानते हैं, गौतम बुद्ध द्वारा दी गई 10 प्रमुख शिक्षाएं।

दुख का सत्य (दुख का अस्तित्व)

बुद्ध ने कहा कि इस संसार में दुख है और यह जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। जन्म, बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु- ये सभी दुख हैं।

 

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दुख का कारण (तृष्णा)

उन्होंने बताया कि दुख का कारण हमारी इच्छाएं और लालसाएं होती हैं। जब हम चीजों से आसक्त हो जाते हैं, तो उनके खोने पर दुख होता है।

दुख से मुक्ति संभव है

बुद्ध का मानना था कि अगर हम अपनी तृष्णा और मोह को त्याग दें, तो हम दुख से मुक्त हो सकते हैं। इसे 'निर्वाण' की स्थिति कहा गया है।

अष्टांगिक मार्ग

बुद्ध ने दुख से मुक्ति के लिए आठ कदम बताए, जिन्हें अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है – जैसे कि सही दृष्टि, सही संकल्प, सही वाणी, सही कर्म, सही आजीविका, सही प्रयास, सही स्मृति और सही समाधि।

मध्यम मार्ग

बुद्ध ने न अधिक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन और न अधिक कठोर तप को सही माना। उन्होंने संतुलित और संयमित जीवन को श्रेष्ठ बताया।

अहिंसा

बुद्ध की एक प्रमुख शिक्षा थी – किसी भी जीव को हानि न पहुँचाओ। करुणा और प्रेम से ही दुनिया में शांति लाई जा सकती है।

स्व-अनुशासन

उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपने विचार, वाणी और कर्मों पर नियंत्रण रखना चाहिए। यही आत्मविकास और आत्मशुद्धि का मार्ग है।

क्षणिकता (अनित्य)

बुद्ध ने सिखाया कि यह संसार और इसमें मौजूद सभी वस्तुएं क्षणिक हैं। इसलिए किसी चीज़ से ज़्यादा जुड़ाव न रखें।

 

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स्वयं पर विश्वास

बुद्ध का मानना था कि कोई और तुम्हें मुक्ति नहीं दिला सकता, तुम्हें खुद अपने रास्ते पर चलना होगा। उन्होंने कहा – "अप्प दीपो भव" यानी "स्वयं अपना दीपक बनो।"

मानवता और समानता

बुद्ध ने जाति, धर्म, लिंग के भेद को नकारा और सबको एक समान समझा। उन्होंने सभी को समान अवसर देने की बात कही।

 

इन शिक्षाओं के माध्यम से गौतम बुद्ध ने एक ऐसा जीवन मार्ग बताया, जो न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक है, बल्कि समाज में भी शांति और सद्भावना बनाए रखता है। उनकी बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी तब थीं।