भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जहां धर्म और दर्शन की गहरी जड़ें हैं। सनातन धर्म, जो हिन्दू धर्म के नाम से भी प्रचलित है, विश्व की सबसे प्राचीन धार्मिक परंपरा में से एक मानी जाती है। इसी सनातन परंपरा से ही बौद्ध धर्म का जन्म हुआ। गौतम बुद्ध ने जब बौद्ध धर्म की नींव रखी, तब उन्होंने उन सिद्धांतों और परंपराओं को नया रूप दिया, जो पहले से ही सनातन धर्म में मौजूद थीं।

 

अब सवाल यह है कि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति क्यों हुई और उसमें ऐसा क्या विशेष था जो उसे एक अलग धार्मिक धारा बना सका? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

 

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बौद्ध धर्म का जन्म

गौतम बुद्ध का जन्म 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में शाक्य कुल में हुआ था। उनका मूल नाम सिद्धार्थ था। उन्होंने एक राजकुमार के रूप में जीवन की शुरुआत की लेकिन जीवन के दुखों को देखकर उन्होंने सत्य की खोज में घर त्याग दिया। कई वर्षों की तपस्या और ध्यान के बाद बोधगया में उन्हें बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ और वे 'बुद्ध' कहलाए।

 

बुद्ध ने पाया कि संसार में दुख का मूल कारण इच्छाएं और मोह-माया हैं। उन्होंने जीवन को समझने और दुःख से मुक्त होने के लिए मध्यम मार्ग (ना अधिक भोग, ना कठोर तपस्या) अपनाने की शिक्षा दी। उनके ये विचार तब के यज्ञ-पूजा, जाति व्यवस्था और कर्मकांडों से अलग थे।

क्यों हुआ बौद्ध धर्म का उदय?

बौद्ध धर्म के उदय के पीछे कई सामाजिक और धार्मिक कारण थे:

 

ब्राह्मणों का वर्चस्व: उस समय धार्मिक कर्मकांडों पर केवल ब्राह्मणों का अधिकार था। आम लोग धार्मिक ज्ञान और पूजा-पद्धति से दूर हो चुके थे। 

जटिल रीति-रिवाज: धर्म कठिन और खर्चीला बना दिया गया था।

जाति व्यवस्था: समाज में ऊंच-नीच की भावना फैल गई थी, जिससे समता और भाईचारे का भाव समाप्त हो रहा था।

बुद्ध का सरल और व्यावहारिक दृष्टिकोण: बुद्ध ने कर्म, करुणा और ध्यान पर आधारित एक ऐसा मार्ग दिखाया जो हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति का हो, अपना सकता था।

 

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बौद्ध धर्म और सनातन धर्म में समानताएं

हालांकि बौद्ध धर्म ने कई बातों में बदलाव किए, फिर भी यह पूरी तरह से नया नहीं था। इसके विचारों की जड़ें सनातन परंपरा में ही थीं। इन दोनों में कई समानताएं देखी जा सकती हैं:

  • कर्म सिद्धांत: दोनों धर्म यह मानते हैं कि कर्म (हमारे अच्छे-बुरे कार्य) हमारे भविष्य को तय करते हैं। अच्छे कर्म से अच्छा फल और बुरे कर्म से दुःख मिलता है।
  • पुनर्जन्म: दोनों धर्म मानते हैं कि आत्मा/चेतना का पुनर्जन्म होता है। जब तक मोक्ष (या निर्वाण) प्राप्त नहीं होता, यह जन्म-मरण चलता रहता है।
  • मोक्ष या निर्वाण की धारणा: सनातन धर्म में जहां मोक्ष को परम लक्ष्य माना गया है, वहीं बौद्ध धर्म में निर्वाण को अंतिम मुक्ति कहा गया है- दुःखों का अंत।
  • ध्यान और साधना: दोनों धर्मों में आत्म-शुद्धि के लिए ध्यान, योग, तपस्या और साधना को महत्त्वपूर्ण माना गया है।
  • अहिंसा और करुणा: बौद्ध धर्म ने विशेष रूप से अहिंसा को प्रमुख बनाया लेकिन सनातन धर्म में भी अहिंसा को धर्म का अंग माना गया है – 'अहिंसा परम धर्मः'।