चैत्र नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का महोत्सव है, जिसमें माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, यह पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक चलता है। धर्म शास्त्रों में नवरात्रि के महत्व और उनसे जुड़ी कथाओं को विस्तार से बताया गया है। इन नौ दिनों में प्रत्येक दिन देवी के एक विशेष रूप की आराधना की जाती है, जिनकी कथाएं और लोकमान्यताएं भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती हैं।
देवी शैलपुत्री (पहला दिन)
शैलपुत्री देवी का जन्म हिमालयराज के घर हुआ था, इसलिए उन्हें "शैलपुत्री" कहा जाता है। पूर्व जन्म में वे दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं, जिन्होंने अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से आहत होकर योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया था। पुनर्जन्म में उन्होंने हिमालय के घर जन्म लिया और घोर तपस्या कर भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया। स्वरूप: शैलपुत्री माता बैल (नंदी) पर सवार रहती हैं, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है।
देवी ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन)
ब्रह्मचारिणी देवी तपस्या का प्रतीक हैं। उन्होंने हजारों वर्षों तक घोर तप किया, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। इनका स्वरूप भक्तों को संयम और धैर्य की सीख देता है। स्वरूप: देवी के एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं।
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देवी चंद्रघंटा (तीसरा दिन)
चंद्रघंटा देवी के मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित रहता है, जिससे उनका नाम पड़ा। वे शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। राक्षसों के संहार के लिए वे सिंह पर सवार होकर युद्ध करती हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों के जीवन से सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं। स्वरूप: देवी सिंह पर विराजमान हैं, उनके दस हाथों में शस्त्र हैं और वे रौद्र रूप में दिखती हैं।
देवी कूष्मांडा (चौथा दिन)
कूष्मांडा देवी ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली शक्ति हैं। ऐसी मान्यता है कि इन्होंने अपने तेज से ब्रह्मांड की रचना की थी। इनकी पूजा से आयु, बल और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। कथा के अनुसार, जब सृष्टि रचना नहीं थी और सभी ओर अंधकार था, तब देवी ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड का की उत्पत्ति की थी। देवी पुराण सहित कई धर्म ग्रंथों में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि देवी ने ही त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश(शिव) की रचना की, ताकि सृष्टि का संतुलन बना रहे। स्वरूप: देवी के आठ हाथ होते हैं और वे सिंह पर विराजमान रहती हैं।
देवी स्कंदमाता (पांचवां दिन)
स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। जब राक्षस तारकासुर से देवतागण परेशान थे, तब स्कंदमाता ने अपने पुत्र को सेनापति बनाया और राक्षसों का विनाश का आदेश दिया। इनकी पूजा से भक्तों को संतान सुख और परिवार में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। स्वरूप: देवी कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और उनकी गोद में भगवान स्कंद (कार्तिकेय) होते हैं।
देवी कात्यायनी (छठा दिन)
महर्षि कात्यायन ने कठिन तपस्या कर देवी को पुत्री रूप में प्राप्त किया, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इन्होंने महिषासुर का वध किया और देवताओं को भयमुक्त किया। देवी का यह स्वरूप साहस और पराक्रम का प्रतीक है। स्वरूप: देवी सिंह पर सवार रहती हैं और उनके चार हाथों में शस्त्र होते हैं।
देवी कालरात्रि (सातवां दिन)
कालरात्रि देवी का रूप अत्यंत भयानक है, लेकिन वे भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं। उन्होंने अनेक दुष्ट राक्षसों का संहार किया। कथा के अनुसार, देवी कालरात्रि ने रक्तबीज नामक दैत्य का संहार किया था। रक्तबीज वह दैत्य था जिसके खून से अनेक राक्षस पैदा जाते थे, तब देवी ने दैत्य के रक्त को पीकर राक्षस को पराजित किया था। इनकी पूजा से शत्रु भयभीत होते हैं और नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। स्वरूप: देवी का शरीर काला, बिखरे हुए बाल और गर्दभ (गदहे) पर सवार रहती हैं।
देवी महागौरी (आठवां दिन)
महागौरी देवी का वर्ण अत्यंत गौर (श्वेत) है। इनकी पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि, मन की शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा में देवी के कथा का वर्णन विस्तार से किया गया है। कथा के अनुसार, जब माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही थीं, तब उन्होंने अन्न-जल दोनों त्याग दिए थे। इतने कठिन तपस्या के कारण उनके शरीर का रंग श्याम वर्ण का हो गया। तब भगवान शिव ने उन्हें गंगाजल से स्नान कराया, जिससे उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसके इन्हें महागौरी के रूप में पूजा जाता है। स्वरूप: देवी सफेद वस्त्रों में रहती हैं, उनके चार हाथ होते हैं, और वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं।
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देवी सिद्धिदात्री (नवां दिन)
सिद्धिदात्री देवी सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। वे भक्तों को मोक्ष, ज्ञान और सिद्धियों का वरदान देती हैं। पुराणों में यह कथा मिलती है कि भगवान शिव को भी देवी से ही सभी सिद्धियां प्राप्त हुई थीं। देवी के ही कृपा से ही अर्धनारीश्वर रूप प्रकट हुआ, जिसमें आधा शरीर भगवान शिव का और आधा देवी का है। स्वरूप: देवी कमल पर विराजमान हैं, उनके चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल होता है।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि के नौ दिनों में देवी की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यह पर्व हमें संयम, भक्ति, शक्ति और ज्ञान की प्रेरणा देता है।
नवरात्रि में उपवास और साधना करने से आत्मिक शुद्धि होती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी धर्म शास्त्र, सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।