साधु-संतों की परंपरा सनातन संस्कृति में पौराणिक काल से चली आ रही है। सनातन धर्म के इतिहास में कई ऐसे साधु-संतों का उल्लेख मिलता है, जिनके चमत्कार की चर्चाएं दूर दूर तक फैली हुई थी। इन्हीं में से एक थे देवरहा बाबा। देवरहा बाबा भारतीय संत परंपरा के महान योगियों में से एक थे, जिन्हें उनके ज्ञान और चमत्कारी शक्तियों के लिए जाना जाता है। 

कौन थे देवरहा बाबा?

उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के आसपास हुआ माना जाता है, लेकिन उनके जीवन का सटीक विवरण रहस्यमय है। कहा जाता है कि वे लगभग 250 वर्ष तक जीवित रहे और कई पीढ़ियों के लोगों ने उनकी उपस्थिति का अनुभव किया। देवरहा बाबा को ‘देवरहा’ नाम इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने अपना अधिकांश समय देवरिया के पास गंगा और यमुना के संगम के किनारे बिताया। 

 

वे अधिकांश समय एक ऊंचे मचान पर बैठकर साधना किया करते थे। केवल गंगा में स्नान के लिए उतरते थे। बाबा का जीवन सादगी और आध्यात्मिकता का अद्भुत उदाहरण था। वे केवल फल, दूध और गंगा जल का सेवन करते थे। उनका रहन-सहन, आचरण और विचार नितांत साधारण व पवित्र था।

देवरहा बाबा के पास थीं चमत्कारी शक्तियां

भक्तों का मानना था कि देवरहा बाबा में दिव्य शक्तियां थीं। कहा जाता है कि उन्हें पतंजलि शास्त्र में वर्णित अष्टांग योग का ज्ञान था और उसे सिद्ध कर लिया था। वे अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी कर देते थे। वे अपनी शक्ति के बल पर बिना पूछे ही किसी के मन की बात जान लेते थे। उनके आशीर्वाद से कई भक्तों को जीवन में सफलता, शांति और समाधान प्राप्त हुआ। देवरहा बाबा अपने भक्तों को आध्यात्मिकता और मानवता का पाठ पढ़ाते थे। वे लोगों को गंगा की पवित्रता और प्रकृति की महत्ता का ज्ञान कराते थे।

 

बाबा की रहस्यमय शक्तियों की कई कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि वे अपनी शक्तयों के बल पर जल पर चल सकते थे। साथ ही उनके अनुयायी यह भी बताते हैं कि वह अपनी इच्छानुसार कहीं भी प्रकट हो सकते थे और जीव-जंतुओं से बात कर सकते थे।

प्रधानमंत्री और राजनेता थे देवरहा बाबा के भक्त

देवरहा बाबा का आशीर्वाद पाने के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। उनके भक्तों में आमजन से लेकर बड़े-बड़े राजनेता, अभिनेता, और यहां तक कि राजा-महाराजा भी शामिल थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कई बड़े नेताओं ने उनसे मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त किया। बाबा का दृष्टिकोण राजनीति से परे था और वे सभी को समान प्रेम और आशीर्वाद देते थे।

देवरहा बाबा का था कुंभ से विशेष संबंध

कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन है, जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में साधु-संत पवित्र स्नान के लिए आते हैं। महाकुंभ में देवरहा बाबा की उपस्थिति का विशेष महत्व था। उन्हें कुंभ मेले में मार्गदर्शक और साधकों के लिए प्रेरणास्त्रोत के रूप में देखा जाता था।

 

देवरहा बाबा अपने जीवनकाल में कुंभ मेले के दौरान भक्तों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे। कुंभ के पवित्र अवसर पर बाबा गंगा स्नान के महत्व को समझाते थे और इसे आत्मिक शुद्धि व मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन मानते थे। बाबा ने हमेशा गंगा की महिमा का प्रचार किया और इसे मानव जीवन के लिए अमृत तुल्य बताया।

 

कुंभ मेले में बाबा के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। बाबा कुंभ मेले में एक ऊंचे मचान पर बैठते थे और भक्तों से संवाद करते थे। उनके सान्निध्य में आकर लोग अपने जीवन की समस्याओं का समाधान पाते थे। वे अध्यात्म के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की भी शिक्षा देते थे। गंगा की शुद्धता को बनाए रखने की आवश्यकता पर बाबा विशेष जोर देते थे।

कुंभ में दिया था अंतिम दर्शन

1989 के प्रयागराज कुंभ मेले में देवरहा बाबा ने अपना अंतिम कुंभ आयोजन में भाग लिया। इस कुंभ को उनके जीवन के अंतिम सार्वजनिक दर्शन के रूप में याद किया जाता है। उस कुंभ मेले में बाबा ने अपने भक्तों को यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति का अर्थ सेवा, समर्पण और सत्य के मार्ग पर चलना है। उन्होंने यह भी बताया कि धर्म का पालन केवल अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रकृति और मानवता की सेवा का भी समावेश है।

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