बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों में एक चीज बेहद कॉमन थी कि लोग कुंभ के मेले में बिछड़ गए हैं। आपने भी कुंभ मेले में अपनों के बिछड़ने की कहानियां सुनी होंगी लेकिन अब यह सच में बीते दौर की बात हो गई है। वजह यह है कि अब डिजिटल इंडिया की शुरुआत हो गई है। कुंभ मेला में परिजनों से बिछुड़ने खो जाने वाली दुःखद दास्तान अब पुरानी हो गई है।

रामू की अम्मा, जियावन की बिटिया सोनी, अलगू के बापू मेला क्षेत्र में कहीं खो गए तो AI तकनीकी से खोया पाया डिजिटल केंद्र उन्हें खोजने में लग जा रहा है। 'बिछड़ों को अपनों से मिलाए,परिवार की खुशियों को लौटाए' के स्लोगन को सच साबित करने की कोशिश की जा रही है। पूरे मेला क्षेत्र की 10 जगहें ऐसी हैं, जहां खोया पाया केंद्र स्थापित किया गया है। 

कैसे मिल रहे हैं कुंभ के बिछड़े?

बिछड़ों को अपनों से मिलने की मुहिम अब कंप्युटराइज्ड हो गई है। खोया पाया केंद्र में एआई के जरिए गुमशुदा चेहरे का मिलान होता है, जिससे मेला क्षेत्र में बिछड़ने वाले व्यक्ति की पहचान AI बेस्ड सीसीटीवी कैमरे के जरिए भीड़भाड़ वाले क्षेत्र से खोजा जाता है। अलग-अलग सेक्टरों में लगी हुई 55 इंच के एलइडी स्क्रीन्स पर डिस्प्ले भी दिखता है। विभिन्न प्रांतो से आए हुए श्रद्धालुओं के बीच उनकी ही भाषा में सूचना घोषित होती है। इसके लिए 10 भाषाओं की जानकारी रखने वाले अलग अगल उद्घोषकों की टीम तैनात की गई है।

'24 घंटे काम कर रहा खोया पाया केंद्र'
 खोया पाया केंद्र को लगातार 24 घंटे चल रहा हैं। इसके लिए तीन शिफ्ट में स्टाफ की तैनाती की गई है। इतना ही नहीं अपनों से बिछड़े हुए लोगों को मिलाने उनके चेहरों पर खुशियां लाने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से भी उनका डिस्प्ले किया जाएगा। इससे दूर दराज रेलवे स्टेशन, बस अड्डा या किसी रैन बसेरे में रुके श्रद्धालुओं कल्पवासियों तक सूचना पहुंच सके।

सेंट्रल कमांड नियंत्रित करने के लिए इस बार सेक्टर मजिस्ट्रेट के रूप में बड़े प्रशासनिक अफसरों की तैनाती की गई है।

'बिछड़े श्रद्धालुओं के खान-पान के भी हैं इंतजाम'

कुंभ 2025 में आए हुए श्रद्धालुओं,स्नानार्थियों कल्पवासियों का के बीच से किसी पुरुष महिला या बच्चा के बिछड़ने की घटना को बहुत कम समय में ट्रेस कर लिया जाएगा। किन्हीं परिस्थितियों बस बिछड़े हुए पुरुष,महिला और बच्चा बच्ची को मेला क्षेत्र में कोई असुविधा न हो इसके लिए उनके रहने खाने सोने आदि के साथ प्राथमिक उपचार आदि की भी व्यवस्था की गई है।

महिला पुरुष और बच्चों के लिए अलग-अलग रेस्ट हाउस बनाए गए हैं। वहीं कमांड हाउस को सही ढंग से संचालित करने के लिए कामन हाल, मीटिंग कक्ष, कॉन्फ्रेंस हॉल , सर्वर सेल, कंप्यूटर सेल, किचन, मेस, स्टोर, स्टाफ कक्ष, शौचालय आदि की बेहतरीन व्यवस्था की गई है। बिछड़ने वाले छोटे बच्चों के खेलने ,मनोरंजन आदि की भी व्यवस्था कैंप में की गई है। कैंप में अधिकांश संख्या में महिला वॉलिंटियर्स की तैनाती की गई है। 

'डिजिटल हो गया है महाकुंभ मेला'
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम महाकुंभ 2025 को डिजिटल बनाने की मुहिम जारी है। इसी क्रम में महाकुंभ नगर के संगम क्षेत्र में एआई बेस्ड कंप्यूटराइज्ड खोया पाया केंद्र की शुरुआत हुई है। पूरे मेला क्षेत्र में कुल 10 कंप्यूटराइज खोया पाया केंद्र बने हैं, जिन्हें आपस में हाइटेक तरीके से सर्वर के माध्यम से इंटरकनेक्ट रखा जाएगा। इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी उस क्षेत्र में तैनात सेक्टर मजिस्ट्रेट के ऊपर है। अपने परिजनों से बिछड़ने वाले पुरुष महिला या बच्चे सभी को जल्दी से जल्दी उनके लोगों से मिलाने की कोशिश होगी। अगर बिछड़े लोगों को उनके परिजनों से नहीं मिलाया जा सका तो ऐसे लोगों को ठहरने की समुचित व्यवस्था खोया पाया केंद्र पर की गई है।

महाकुंभ के खोया पाया केंद्र पर जुटी महिलाएं। 



5 हजार बिछड़ों को मिला चुका है खोया-पाया केंद्र
पिछले अर्धकुंभ 2019 में खोया पाया केंद्र और संस्था के जरिए 6448 बिछुड़ों को अपने से मिलाया गया था। जबकि प्रथम स्नान पौष पूर्णिमा और मकर संक्रांति मात्र 2 दिन में ही 5000 बिछड़े लोगों को उनके अपनों से मिलाया जा चुका है। आई तकनीक से बने डिजिटल खाया केंद्र की वजह से यह सहूलियत महाकुंभ में पहली बार मिली है।

संगम में मेला क्षेत्र में अपने परिजनों से खो जाने वाले लोगों को मिलाने के लिए 07 खोया पाया केंद्र बनाए गए थे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए माघ मेला क्षेत्र में वाइट गुब्बारा किले के पास उड़ाया गया था। यह सफेद गुब्बारे माघ मेला क्षेत्र के सभी जगह से दिखाई पड़ता था। जिससे खोया पाया केंद्र की पहचान आसान थी।

पहले कैसे काम करता था खोया-पाया केंद्र?

अगर बात इससे बहुत पहले के कुंभ और माघ मेला की करे तो पूरे क्षेत्र में एक या दो पंडाल में खोया पाया केंद्र चलता था जिसको भूले भटके शिविर के नाम से जाना पहचाना जाता था। स्थानीय धर्मार्थ संस्था भारत सेवा दल द्वारा भूले भटके शिविर चलता था. जिसकी स्थापना सन 1946 में राजाराम तिवारी ने की थी। अब उनके पुत्र उमेश तिवारी आगे संचालित कर रहें हैं। मेला प्रशासन और पुलिस से अब उनका सामंजस्य हो गया। अब समय के साथ मेला प्रशासन ने यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। यह अब बेहद आधुनिक हो गया है।