सनातन धर्म में गुरु-शिष्य परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। वैदिक काल से ही गुरु अथवा शिक्षकों को देवतुल्य माना जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। वर्तमान समय में भी कई स्थानों पर गुरु-शिष्य परंपरा का पालन किया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु उपासना का विधान है। यह दिन इस लिए भी इतना महत्व रखता है, क्योंकि यह दिन हर साल महाभारत, रामायण आदि अनेक ग्रंथों के रचनाकार महर्षि वेदव्यास की जयंती रूप में मनाई जाती है। जिस वजह से इस दिन को व्यास जयंती कहा जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। यह पर्व इस वर्ष 10 जुलाई 2025, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
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गुरु पूर्णिमा 2025 शुभ मुहूर्त
पंचांग में बताया गया है कि आषाढ़ पूर्णिमा तिथि 10 जुलाई को मध्य रात्रि 01:36 पर शुरू होगी और पूर्ण रात्रि तक रहेगी। इस दिन इंद्र योग का निर्माण हो रहा है जो रात 09:38 तक रहेगा। बता दें कि इंद्र योग को पूजा-पाठ के लिए सबसे उत्तम योग कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन पवित्र स्नान, दान और व्रत को बहुत महत्व दिया जाता है। इस दिन स्नान के लिए पूरा दिन ही शुभ रहेगा, हालांकि ब्रह्म मुहूर्त स्नान के लिए सुबह 04:30 से सुबह 05:35 का समय सबसे उत्तम रहने वाला है। इसके साथ दान-पुण्य के लिए अभिजीत मुहूर्त को उत्तम कहा गया है, जो गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह 11:59 से दोपहर 12:54 तक रहेगा।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा सुबह स्नान के बाद शुरू होती है। घर को साफ करके पूजा स्थान पर एक साफ कपड़ा बिछाएं। वहां अपने गुरु या भगवान वेदव्यास की तस्वीर या मूर्ति रखें। दीपक जलाएं, धूप अर्पित करें और फूल चढ़ाएं। अगर दोनों की तस्वीर नहीं उपलब्ध है तो भगवान शिव या नारायण की उपासना करें।
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इसके बाद जल, अक्षत, रोली, चंदन और पुष्प अर्पित कर 'गुरु मंत्र' या 'गुरु स्तोत्र' का पाठ करें। अगर गुरु सशरीर उपस्थित हैं, तो उनका चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें। उन्हें फल, मिठाई या कोई वस्त्र भेंट करें। गुरु को श्रद्धा से प्रणाम करने से ज्ञान, शांति और सफलता की प्राप्ति होती है।
इस दिन दान-पुण्य करना भी शुभ माना जाता है। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या पुस्तकें दान करने से पुण्य मिलता है। यह दिन आत्मचिंतन और जीवन के मार्गदर्शन के लिए भी श्रेष्ठ होता है। सरल मन, सच्चे भाव और श्रद्धा से की गई पूजा ही सफल मानी जाती है।