प्रयागराज में एक बड़े संस्थान से करीब 10 साल पहले मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले जामवंत सिंह महाकुंभ 2025 में संत साधक जामवंत बनकर आ चुके हैं। महाकुंभ 2025 की अद्भुत महिमा कहें या बदला हुआ स्वरूप बड़े बड़े नामचीन महामंडलेश्वर, शंकराचार्य श्रीमहंत पीठाधीश्वर के साथ ही ऐसे संत साधक भी संगम की रेती पर आ चुके हैं जो अपने आप में बहुत अद्भुत हैं। धर्म अध्यात्म और भारतीय सनातन संस्कृति के साथ ही वह ज्ञान विज्ञान के अविष्कार के रूप में महाकुंभ 2025 को स्थापित करने की और प्रयासरत हैं। कुछ इसी तरह का प्रयास लीक से हटकर संत साधक जामवंत भी कर रहे हैं।
कभी प्रयाग में आईईआरटी कॉलेज के हॉस्टल के कमरे की खिड़की से अनवरत गंगा मैया को देखते, कभी-कभी खिड़की पर बैठे बैठे ही ध्यान में खो जाते थे। पढ़ाई में इतने मग्न थे कि कुंभ 2013 की छटा को खिड़की से ही निहारते रहे। कभी कुंभ मेला नहीं गए मित्रों के कहने पर भी मेला नहीं घूमे, क्योंकि अध्ययन ही उनकी दुनिया थी। गांव गहमर, जिला गाजीपुर से फौजी पिता जितेंद्र सिंह माता मीरा सिंह के पुत्र जामवंत सिंह प्रयाग की धरती पर शिक्षा ग्रहण कर मैकेनिकल इंजीनियर बने। लेकिन नियति तो उनसे कुछ और करवाना चाहती थी। जीवन में बदलाव आया जीवन की जिज्ञासा को लेकर आध्यात्म की ओर मुड़ गए और संन्यास ग्रहण कर लिया।
अब गंगा की रेती में संत साधक जामवंत के रूप में संगम की रेती पर ज्ञान का दीपक जला रहे। इसके लिए स्थान जो चुना है वह भी बहुत दिव्य और विशेष है जहां पिछले 18 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही प्रसिद्ध संत देवरहवा बाबा का आशीर्वाद जहां कण-कण में मौजूद है। वह दिव्य स्थान संत देवरहवा बाबा का स्थाई शिविर है।
शास्त्रार्थ की परंपरा शुरू की
एक संत साधक के रूप में संत जामवंत सौ साल पुरानी बंद परम्परा को पुर्नजीवित कर शास्त्रार्थ का आयोजन करवा रहे हैं। महाकुंभ 2025 में विद्वानों का शास्त्रार्थ परंपरा को पुनर्जीवित करने का भार उनके कंधों पर है। महाकुंभ 2025 में यह इत्तेफाक है या गंगा मैया की कृपा जहां आईआईटीयन बाबा फेमस हो गए वहीं साधक संत जामवंत ज्ञान की खोज में खोए रहे। हालांकि उनके पास प्रतियोगी छात्रों का हुजूम जरूर पहुंचता है।
प्रयाग स्थित आईईआरटी पॉलिटेक्निक कॉलेज से वर्ष 2011 से 2014 के बीच मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की लेकिन 2016 से 2017 में जीवन ही ट्रेनिंग ग्राउंड बन गया था। जीवन का क्या उद्देश्य है इसका अंत क्या है आदि प्रश्नों की जिज्ञासा लेकर उन्होंने आर्य समाज ज्वाइन किया, सत्यार्थ प्रकाश से प्रभावित हुए और बौद्ध धर्म के भी समीप गए। घर से नौकरी और शादी का भी प्रेशर भी बढ़ा, लेकिन वह तो जीवन में तो कुछ और खोज रहे थे। उन्हें जीवन के बारे में जिज्ञासा थी और उसी की खोज में वह लगे हुए थे।
दक्षिण भारत की यात्रा की
इसके बाद वह दक्षिण भारत में कर्नाटक पहुंच गए। वहां बीदर जिले में बसवन्ना में एक वैद्य जी के साथ रहे और वहां पर उन्होंने गौ सेवा और आयुर्वेद की जानकारी ली, होम्योपैथी भी सीखी, ऑर्गैनिक खेती के बारे में सीखा, गुरुकुल अध्ययन से जुड़े। वहां उन्होंने बौद्ध ध्यान केंद्र की सदस्यता ली लेकिन बाद में एकांत साधना के लिए हिमालय की ओर रुख किया।
हिमालय क्षेत्र के टिकरी गढ़वाल कोटेश्वर क्षेत्र की एक मंदिर में वह बहुत दिनों तक रहे। इसके बाद 2021 में उन्होंने भारत यात्रा शुरू की। इस दौरान अधिकांश सफर उन्होंने पैदल या साइकिल से पूरा किया। इसी दरम्यान उन्होंने एक पुस्तक लिखना शुरू किया। 2022 में एक पुस्तक प्रकाशित होकर आ गई और 2023 में उन्होंने दूसरी पुस्तक लिखी। अभी तीसरी पुस्तक पर वह काम कर रहे हैं। इस पुस्तक का शीर्षक 'जीवन चेतन विकास' है।
साइकिल से घूमा देश
साइकिल से उन्होंने वैष्णो देवी, गुजरात, चेन्नई, जगन्नाथ पुरी आदि का भ्रमण किया। विज्ञान मिशन के योग गुरु प्रज्ञा भेद से उन्होंने गुरु मंत्र लिया।
अचानक से नवंबर 2025 में वह महाकुंभ के देवराहा बाबा आश्रम में आ गए। गुरुभाई संत रामदास जी, संत राम बाहुबली जी का सानिध्य मिला और इसके बाद वह एक बड़े उद्देश्य को पूरा करने में लगे गए।
संत साधक जामवंत ने बातचीत के दौरान बताया कि लाखों वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषियों मुनियों ने शास्त्रार्थ की परम्परा शुरू की थी, जिसको समय-समय पर राजा महाराजाओं के सहयोग से बहुत ऊंचाई मिली। लेकिन मुगलों के शासन काल में शास्त्रार्थ की परम्परा लगभग समाप्त हो गई। आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित कुंभ मेले में भी इसका असर हुआ।
एक महीने होगा शास्त्रार्थ
अब महाकुंभ 2025 में फिर से इस परम्परा को महा संत देवरहा बाबा के स्थाई शिविर अखंड ज्योति सेक्टर 19 में फिर से प्रारंभ किया गया है।महाकुंभ में पूरे एक माह तक शास्त्रार्थ का आयोजन चल रहा है। 5 जनवरी 2025 से 4 फरवरी 2025 के मध्य आयोजित शास्त्रार्थ में प्रत्येक दिन कार्यशाला और चर्चाओं का आयोजन है।
इस संबंध में शास्त्रार्थ के संयोजक संत जामवंत ने बताया महाकुंभ 2025 में आयोजित शास्त्रार्थ में विषय के रूप में शिक्षा, राष्ट्र निर्माण, शास्त्र ज्ञान, दर्शन, स्वास्थ्य, योग साधना पर्यावरण संरक्षण, विज्ञान, इतिहास और कर्म होगा। यह शास्त्रार्थ का आयोजन जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले या स्वयं के अनुभव से उस क्षेत्र की विशेषता रखने वाले लोगों के लिए ही है। इसलिए प्रत्येक क्षेत्र में अनुभवशील कार्यरत या कार्य की इच्छा से जानने की इच्छा रखने वाले सभी महानुभावों को आमंत्रित किया गया है। यह शास्त्रार्थ महाकुंभ मेले में आयोजित है जिसमें पूरे देश दुनिया के विद्वान जन आते हैं ऐसे सभी महानुभव आमंत्रित हैं जो इन विषयों में शास्त्रार्थ की योग्यता रखते हैं।
डिजिटल शास्त्रार्थ
जिस प्रकार से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ 2025 को डिजिटल महाकुंभ के रूप में स्थापित करने की शुरुआत की। उसी क्रम में सौ साल बाद फिर से शुरू हुआ शास्त्रार्थ भी डिजिटल होगा। जिसे वेबसाइट और फेसबुक व यूट्यूब पर विशेष ऐप Bharat Talk पर देखा सुना जा सकेगा।
महाकुंभ 2025 में आयोजित एक माह के शास्त्रार्थ कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में बताते हुए साधक संत जामवंत ने बताया कि 5 जनवरी को शुभारंभ के बाद प्रत्येक दिन सुबह 10:00 से शाम 6:00 बजे तक शास्त्रार्थ का समय निर्धारित है। जिसमें सुबह 10:00 से 12:00 तक कार्यशालाओं और चर्चाओं का आयोजन होता है। शाम 4:00 बजे से 6:00 बजे तक विद्वत एवं कार्यरत गोष्ठी का सत्र चलता है। इसके साथ ही मुख्य विषय से जुड़ी है प्रदर्शनी उससे संबंधित पुस्तक की यह कार्यशाला भी आयोजित की जाती है।
6 जनवरी से 12 जनवरी के मध्य शिक्षा और राष्ट्र निर्माण विषय पर चर्चा हुई। फिर 13 जनवरी से 19 जनवरी तक शास्त्र ज्ञान और दर्शन का महत्व इसके बाद अब 20 जनवरी से 25 जनवरी के मध्य स्वास्थ्य और योग साधना पर शास्त्रार्थ होगा। वही 26 जनवरी से 31 जनवरी के बीच पर्यावरण संरक्षण और विज्ञान विषय पर शास्त्रार्थ आयोजित होगा। 1 फरवरी से 4 फरवरी के बीच इतिहास और विज्ञान विषय पर प्रतियोगियों एवं आयोजकों का अनुभव साझा किया जाएगा।