इजरायल में सबसे ज्यादा जनसंख्या यहूदी धर्म को मानने वाले लोगों की है। जहां एक तरफ यहूदी धर्म, ईसाई और इस्लाम धर्म की तरह एक ईश्वर को मानने वाला प्राचीन धर्म है जिसे एकेश्वरवादी कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर इसकी मान्यताएं, धार्मिक ग्रंथ, पूजा पद्धति और परंपराएं इन दोनों धर्मों से कई मायनों में अलग हैं। यहूदी धर्म की शुरुआत करीब 4000 साल पहले मध्य पूर्व में हुई थी, जब इब्राहीम (अब्राहम) को यहूदियों का पहला पैगंबर माना गया। यही इब्राहीम बाद में ईसाई और इस्लाम धर्म में भी महत्वपूर्ण माने गए, इसलिए इन तीनों धर्मों को ‘अब्राहमिक धर्म’ भी कहा जाता है। पर इनकी धार्मिक दृष्टि, रीतियां और इतिहास अलग-अलग दिशा में विकसित हुए।
यहूदी धर्म में किस ईश्वर की उपासना होती है?
यहूदी धर्म में ईश्वर को 'याहवेह' (Yahweh) कहा जाता है, जो एक निराकार, अद्वितीय, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक ईश्वर हैं। यहूदी परंपरा में ईश्वर का नाम इतनी श्रद्धा से लिया जाता है कि अक्सर उसे सिर्फ 'अडोनाई' (प्रभु) या 'हाशेम' (नाम) कहकर संबोधित किया जाता है। यहूदी धर्म में मूर्तिपूजा नहीं की जाती है। वह ईश्वर को सिर्फ प्रार्थना और कर्म के माध्यम से स्मरण करते हैं। ईसाई धर्म में ईश्वर को परमपिता, पुत्र (यीशु) और पवित्र आत्मा के रूप में पूजा जाता है। वहीं इस्लाम धर्म में ईश्वर को 'अल्लाह' के नाम से पुकारा जाता है और यह भी सख्ती से एकेश्वरवाद का पालन करता है लेकिन पैगंबर मुहम्मद को उनका आखिरी मेसेंजर माना गया है।
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यहूदी धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ को 'तनख' कहा जाता है, जो तीन भागों में बंटा है – तोराह (धर्मशास्त्र), नवईम (नबी की बातें) और केतुवीम (दूसरे लेख)। इस पूरे संग्रह को आमतौर पर 'हिब्रू बाइबिल' भी कहा जाता है। इनमें सबसे प्रमुख ग्रंथ तोराह है, जिसमें ईश्वर द्वारा मूसा को दिए गए नियम और आदेश बताए गए हैं। ईसाई धर्म में 'बाइबिल' प्रमुख ग्रंथ है, जो दो हिस्सों में बंटा होता है- पुराना नियम (Old Testament), जो यहूदियों के तनख के समान है, और नया नियम (New Testament), जो यीशु मसीह के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित है। इस्लाम धर्म में सबसे प्रमुख ग्रंथ कुरान है, जो अरबी में अल्लाह द्वारा पैगंबर मुहम्मद को दिए गए संदेशों का संकलन है।
यहूदी धर्म में पूजा पद्धति
पूजा पद्धति की बात करें तो यहूदी लोग प्रार्थना के लिए 'सिनेगॉग' (Synagogue) जाते हैं, जिसे यहूदी मंदिर भी कहा जाता है। यहां एक धार्मिक गुरु जिसे ‘रब्बी’ कहते हैं, वह धार्मिक शिक्षाएं देता है। प्रार्थना मुख्य रूप से हिब्रू भाषा में होती है और सप्ताह का सबसे पवित्र दिन 'सब्बाथ' (शनिवार) होता है। शुक्रवार सूर्यास्त से शनिवार सूर्यास्त तक यहूदी लोग विश्राम करते हैं, प्रार्थना करते हैं और कोई भी काम नहीं करते। यह दिन ईश्वर की ओर लौटने और आत्मनिरीक्षण का समय माना जाता है।
ईसाई धर्म में पूजा रविवार को चर्च में होती है, जहां बाइबिल का पाठ होता है और यीशु मसीह के बलिदान को याद किया जाता है। वहीं इस्लाम धर्म में जुम्मा यानी शुक्रवार की नमाज़ विशेष मानी जाती है, जो मस्जिद में सामूहिक रूप से अदा की जाती है। यहूदी पूजा में गायन, स्तुति और सामूहिक पाठ होता है लेकिन इसमें किसी मूर्ति, चित्र या प्रतीक की पूजा नहीं होती। यहूदी धर्म में रीति-रिवाजों में नियमों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। तोराह में 613 धार्मिक नियम दिए गए हैं, जिनका पालन यहूदी श्रद्धालु जीवन भर करते हैं।
यहूदी धर्म में परंपराएं
यहूदी जीवन में कुछ प्रमुख संस्कारों की भी अहम भूमिका होती है, जैसे जन्म के आठवें दिन लड़के का खतना (ब्रिट मिलाह), युवावस्था में 'बार मिट्ज्वा, जिसमें 13 साल का लड़का धार्मिक रूप से जिम्मेदार बनता है। यह एक प्रकार का अध्यात्म की ओर बढ़ने का इशारा होता है। शादी, मृत्यु और त्योहारों की भी अलग-अलग परंपराएं हैं। प्रमुख त्योहारों में 'पेसाच' (Passover), 'योम किप्पुर' (प्रायश्चित का दिन) और 'हनुक्का' (प्रकाश उत्सव) अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।
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वहीं, ईसाई धर्म में baptism, भोज (Holy Communion) और शादी जैसी परंपराएं हैं जो खासतौर पर चर्च में या घरों पर की जाती हैं। इस्लाम धर्म में भी जन्म के बाद अजान, खतना, निकाह और जनाजा जैसी प्रमुख परंपराएं हैं लेकिन यहूदी परंपराओं से अलग शैली और नियमों के साथ। इस्लाम में रोजा, हज और जकात को धर्म के स्तंभ के रूप में देखा जाता है, जो यहूदी रिवाजों से भिन्न हैं।
यहूदी धार्मिक पहचान के प्रतीक भी अलग होते हैं। यहूदी पुरुष प्रार्थना के समय सिर पर ‘यमुल्का’ (छोटी गोल टोपी) पहनते हैं, जबकि कट्टर यहूदी काले कपड़े, टोपी और दाढ़ी रखते हैं। इस्लाम में टोपी, दाढ़ी और नमाज की पहचान अलग है, वहीं ईसाई धर्म में विशेषकर पादरी सफेद कपड़ा और क्रॉस पहनते हैं। इसके साथ यहूदी धर्म कोई प्रचार या धर्मांतरण नहीं करता। यह एक जातीय और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ा हुआ धर्म है, जिसमें व्यक्ति का जन्म यहूदी परिवार में होना ही पर्याप्त माना जाता है। इसके विपरीत ईसाई और इस्लाम धर्म दोनों ही मिशनरी धर्म हैं, जो प्रचार और धर्मांतरण को धर्म सेवा का हिस्सा मानते हैं।