महाकुंभ 2025 का पहला शाही स्नान 14 जनवरी को हो चुका है। प्रयागराज के पवित्र संगम तट पर, लाखों श्रद्धालुओं और साधु-संतों ने विशेष स्नान किता। यह धार्मिक आयोजन सदियों से अपनी भव्यता और आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, इतने बड़े आयोजन में अखाड़ों के बीच संघर्ष की संभावनाएं भी रहती हैं, विशेष रूप से शाही स्नान के दौरान। इसलिए इस बार उत्तर प्रदेश सरकार और कुंभ मेला प्रशासन ने कई अहम कदम उठाए हैं ताकि शांति और व्यवस्था बनाए रखी जा सके।
अखाड़ों के बीच स्नान का क्रम और सहमति
महाकुंभ में 13 प्रमुख अखाड़े (शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदाय) भाग लेते हैं। हर अखाड़ा अपने शाही स्नान के समय अपनी परंपराओं के अनुसार संगम में डुबकी लगाता है। इस बार प्रशासन ने अखाड़ों के प्रमुखों के साथ बैठकर स्नान का क्रम पहले ही तय कर लिया है।
स्नान का क्रम
शाही स्नान के दौरान पहले जूना अखाड़ा स्नान करेगा, इसके बाद क्रमशः निरंजनी अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा और अन्य अखाड़े अपने-अपने निर्धारित समय पर स्नान करते हैं। समय की बात करें तो जूना और निरंजनी अखाड़ा को 45 मिनट मिलेंगे साथ-साथ अन्य अखाड़ों को 35-35 मिनट दिए गए थे। अखाड़ों को उनकी परंपरा और मान्यता के अनुसार समय दिया गया है।
सहमति का प्रयास
अखाड़ों के बीच किसी भी प्रकार की असहमति को टालने के लिए महंतों और साधु-संतों के साथ कई बैठकें आयोजित की गईं। प्रशासन ने सभी अखाड़ों को आश्वासन दिया है कि उनकी परंपराओं और मान्यताओं का पूरा सम्मान किया जाएगा।
कुंभ में हुए संघर्ष
इस आयोजन के इतिहास में ऐसे कुछ अवसर भी आए हैं, जब अखाड़ों के बीच संघर्ष देखने को मिला। यह संघर्ष आमतौर पर शाही स्नान, धार्मिक वर्चस्व और मान-सम्मान को लेकर होता रहा है।
1690 का हरिद्वार कुंभ मेला
कुंभ मेले के इतिहास में सबसे पहला बड़ा संघर्ष हरिद्वार में 1690 में हुआ। यह विवाद नागा साधुओं के दो प्रमुख गुटों के बीच था। दोनों पक्षों ने शाही स्नान के अधिकार और अपने अनुयायियों के लिए सर्वोच्च स्थान की मांग की। इस झगड़े में हथियारों का भी उपयोग हुआ, जिससे कई साधु घायल हो गए।
1796 का प्रयागराज कुंभ मेला
1796 के कुंभ में भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें नागा साधु और बैरागी साधु आमने-सामने आ गए। यह विवाद इस बात को लेकर था कि संगम में पहले स्नान का अधिकार किसे मिलेगा। प्रशासन की कमजोरी और प्रबंधन की कमी के चलते यह संघर्ष बड़ा हो गया, जिसमें कई साधुओं की जान गई।
1850 का उज्जैन कुंभ मेला
उज्जैन के कुंभ में भी नागा साधुओं के गुटों के बीच झगड़ा हुआ। यह झगड़ा संपत्ति और धार्मिक अधिकारों को लेकर था। इस दौरान हथियारों का खुला प्रदर्शन हुआ, जिससे मेले की पवित्रता को ठेस पहुंची।
1989 का हरिद्वार कुंभ मेला
हाल के वर्षों में 1989 का हरिद्वार कुंभ मेला भी विवादों से भरा रहा। शाही स्नान के दौरान अखाड़ों के बीच पहले स्नान को लेकर तनाव बढ़ गया। हालांकि, पुलिस और प्रशासन के हस्तक्षेप के कारण यह झगड़ा बहुत बड़ा रूप नहीं ले पाया।
अखाड़ों के अनुयायियों की व्यवस्था
अखाड़ों के अनुयायियों और साधुओं के लिए अलग-अलग मार्ग बनाए गए हैं, ताकि भीड़ का दबाव कम हो और किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो।
सुरक्षा और निगरानी के इंतजाम
महाकुंभ 2025 में संघर्ष और अव्यवस्था रोकने के लिए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। इसके लिए कुंभ क्षेत्र में हजारों सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन लगाए गए हैं, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
साथ ही अखाड़ों के मार्ग और स्नान क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। इनके अलावा, पीएसी और आरएएफ के जवान भी संवेदनशील स्थानों पर तैनात रहेंगे। इसके साथ हर अखाड़े के लिए एक अलग समन्वय केंद्र बनाया गया है, जहां प्रशासनिक अधिकारी अखाड़े के प्रमुखों के साथ तालमेल बनाए रखेंगे।
स्नान के समय का निर्धारण
स्नान के समय को लेकर भी विशेष ध्यान दिया गया है। शाही स्नान के लिए हर अखाड़े को निश्चित समय सीमा के अंदर स्नान करने की अनुमति दी गई है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी अखाड़े शांतिपूर्वक और व्यवस्थित तरीके से अपनी परंपराओं का पालन कर सकें।
धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का सम्मान
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। प्रशासन ने इस बार विशेष रूप से अखाड़ों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने पर जोर दिया है। अखाड़ों की सांस्कृतिक झांकियों और शोभायात्राओं के दौरान किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो, इसके लिए अलग-अलग मार्ग और समय तय किए गए हैं।
स्वयंसेवकों और सेवकों की भूमिका
महाकुंभ में बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों की मदद ली जा रही है। ये स्वयंसेवक अखाड़ों के अनुयायियों और साधु-संतों को सही मार्गदर्शन देंगे और किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान करेंगे।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।