हिंदू धर्म में कुंभ मेला सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जिसमें देशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान के लिए एकत्रित होते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ मेले का शुभारंभ होने जा रहा है। अनुमान है कि 12 वर्षों के बाद होने जा रहे इस कुंभ मेले में 45 करोड़ से अधिक साधु-संत और श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा होंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुल जाता है।

 

बता दें कि कुंभ की अवधि में कई प्रकार के अनुष्ठान भी किए जाते हैं। जिसमें कल्पवास भी एक है। कल्पवास एक प्राचीन वैदिक परंपरा है, जो आध्यात्मिक और आत्मिक शुद्धि के उद्देश्य से की जाती है। इस परंपरा का पालन मुख्य रूप से प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर माघ मास और कुंभ मेले के दौरान होता है। यह परंपरा कुंभ मेले और माघ मेले में विशेष महत्व रखती है, जहां भक्त महीने भर संगम के तट पर साधना, पूजा, तपस्या और भक्ति करते हैं। आइए जानते हैं कल्पवास का महत्व और इसके नियम।

कल्पवास का पौराणिक महत्व

पवित्र स्थानों पर कल्पवास का पालन आदिकाल से किया जा रहा है। इसका संबंध सृष्टि के रचयता भगवान ब्रह्मा से जुड़ता है। कहा जाता है कि एक ‘कल्प’ का ब्रह्मा जी के एक दिन के बराबर होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, ब्रह्मा जी के एक दिन में हजारों मानव युग समाहित होते हैं। धर्म-ग्रंथों में यह बताया गया है कि ब्रह्मा जी के एक दिन में 28 मन्वंतर होते हैं यानी दिन व रात 14-14 मन्वंतर में विभाजित हैं। वहीं एक मन्वंतर में 71 महायुग होते हैं. एक महायुग में चार युग होते हैं - सत्य, त्रेता, द्वापर, और कलियुग। ब्रह्मा जी के 100 वर्ष बीतने पर प्राकृतिक प्रलय आता है, जिसे द्विपार्थ कहा जाता है। इस दौरान, धरती जल में डूब जाती है और जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में, और आकाश महतत्व में प्रवेश कर जाता है। वहीं कल्पवास का वर्णन महाभारत और रामचरितमानस जैसे महत्वपूर्ण धर्म-ग्रंथों में भी विस्तार से किया गया है।

वर्तमान में कल्पवास का अर्थ

'कल्प' का अर्थ है एक निश्चित अवधि और 'वास' का अर्थ है निवास। इस प्रकार, कल्पवास का तात्पर्य है किसी पवित्र स्थान पर एक निश्चित अवधि के लिए निवास करना और उसके नियमों का पालन करना है। कल्पवासियों को संयमित जीवन जीना होता है, जिसमें भोग-विलास से दूर रहकर पूजा-पाठ, दान और तपस्या की जाती है।

कल्पवास के नियम

कल्पवास का मुख्य नियम यह है कि कल्पवासी को माघ मास अथवा कुंभ मेले के दौरान संगम तट पर रहना होता है। इस दौरान उन्हे एक साधारण जीवन जीना चाहिए। कल्पवासी केवल सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें तामसिक और राजसिक पदार्थों का सेवन वर्जित होता है। भोजन सादा, हल्का और धार्मिक रूप से पवित्र होना चाहिए।

 

इसके साथ इस अवधि में स्नान का विशेष महत्व है और कल्पवासी को प्रतिदिन सूर्योदय से पहले संगम में स्नान करते हैं। स्नान के बाद वह भगवान की आराधना और ध्यान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, कल्पवासी को नियमित रूप से पूजा, यज्ञ, भजन, कीर्तन और वेदों का पाठ करना होता है।

 

कल्पवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन भी अनिवार्य है। संयमित जीवनशैली के तहत सांसारिक सुख-सुविधाओं और वस्त्र-आभूषण का त्याग करना होता है। कल्पवासी अपने मन, वाणी और कर्म को पवित्र रखते हुए ईश्वर के प्रति समर्पित रहते हैं।

 

कल्पवास का एक नियम यह भी है कि कल्पवासी को सत्य बोलना होगा, निवास के दौरान दान-पुण्य करना होगा और जरूरतमंदों की सेवा करना भी अनिवार्य होता है। इस दौरान किए गए दान और सेवा को बहुत शुभ माना जाता है।

प्रयागराज और कुंभ में कल्पवास का महत्व

प्रयागराज को तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता है। संगम को भक्ति व अध्यात्म का केंद्र माना जाता है। कहा जाता है कि कुंभ मेले के अवधि में संगम के तट पर कल्पवास करने से उसका फल कई गुना अधिक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, संगम पर कल्पवास से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ मेले में कल्पवास की भूमिका

कुंभ मेले के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। यह मेला हर 12 वर्षों में आयोजित होता है और इसमें संगम पर स्नान का अत्यधिक महत्व होता है। कुंभ मेले में बड़ी संख्या में साधु-संत एकसाथ एक स्थान पर आते हैं और प्रवचन, धार्मिक अनुष्ठान व भजन-कीर्तन करते हैं। ऐसे में इस अवधि में कल्पवास का महत्व और बढ़ जाता है। इसके साथ कल्पवास हर साल माघ महीने में भी किया जाता है।

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।