महाकुंभ का हिन्दू संस्कृति में विशेष महत्व है। बता दें कि 12 साल के अंतराल पर महाकुंभ का आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से पवित्र डुबकी लगाते हैं। इस साल 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। इस महा आयोजन को सफल बनाने के लिए प्रशासन ने भी पुख्ता तैयारी की है, जिसमें घाटों का निर्माण, मंदिरों का जीर्णोद्धार, सुरक्षा व्यवस्था शामिल है।
प्रयागराज में इन मंदिरों का हुआ है जीर्णोद्धार
ऋषि भारद्वाज आश्रम
प्रयागराज को तीर्थराज की उपाधि प्राप्त है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां संगम सहित कई तीर्थस्थल जिनका संबंध पौराणिक किंवदंनितयों से जुड़ता है। इन्हीं में से भारद्वाज आश्रम। इस स्थान के लिए कहा जाता है कि यहां वनवास जाते समय भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी आए थे। फिर ऋषि भारद्वाज ने उन्हें चित्रकूट का मार्ग बताया था।
नागवासुकी मंदिर
प्रयागराज के दारागंज क्षेत्र में स्थित नागवासुकी मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। यह मंदिर नाग देवता को समर्पित है, जिन्हें शेषनाग के भाई वासुकी के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि यहां नागवासुकी ने तपस्या की थी, और उनकी आराधना से भक्तों को सांपों के भय से मुक्ति मिलती है। नाग पंचमी के अवसर पर यहां विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है।
अलोप शंकरी मंदिर
प्रयागराज में स्थित यह मंदिर देवी शक्ति को समर्पित है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह स्थान सती के शरीर के अंगों के गिरने वाले शक्तिपीठों में से एक है। यहां सती का हाथ गिरा था, जो बाद में अदृश्य (अलोप) हो गया। यही कारण है कि यहां देवी को अलोप शंकरी कहा जाता है। मंदिर में देवी का कोई मूर्ति रूप नहीं है, बल्कि पूजा स्थल पर एक लकड़ी का झूला स्थापित है।
मनकामेश्वर मंदिर
यमुना तट पर स्थित मनकामेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का नाम इस विश्वास से पड़ा कि यहां शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि यहां भगवान राम ने लंका विजय के बाद आकर भगवान शिव की पूजा की थी।
द्वादश माधव
प्रयागराज में द्वादश माधव भगवान विष्णु के बारह रूपों के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक माधव मंदिर का अलग महत्व और कथा है। इन मंदिरों की स्थापना भक्तों को मोक्ष और पुण्य प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। मुख्य रूप से ये मंदिर त्रिवेणी संगम के आसपास स्थित हैं और यहां की यात्रा का धार्मिक महत्व है।
पड़िला महादेव मंदिर
पड़िला महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। पौराणिक मान्यता है कि यहां शिवलिंग की स्थापना ऋषि पाराशर ने की थी। यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है। भक्त मानते हैं कि यहां पूजा करने से उनकी सारी बाधाएं दूर होती हैं। खासतौर पर सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
संगम के पास अन्य प्रसिद्ध मंदिर
शंकर विमान मंडपम्
यह मंदिर वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है, जो चार दिशाओं में फैला हुआ है। इसे चारधाम यात्रा का प्रतीक माना जाता है। यह स्थान उन भक्तों के लिए विशेष रूप से पवित्र है, जो शंकर भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। मंदिर का शांत वातावरण ध्यान और आत्मचिंतन के लिए उपयुक्त माना जाता है।
श्री बड़े हनुमान जी मंदिर
यह मंदिर संगम क्षेत्र के पास स्थित है और अपनी विशाल हनुमान प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थित हनुमान जी की मूर्ति स्वयंभू है और यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। संगम स्नान के बाद भक्त यहां दर्शन करने आते हैं, जिससे उनके पापों का नाश होता है।
शिवकुटी मंदिर
शिवकुटी मंदिर का पौराणिक महत्व त्रेतायुग से जुड़ा है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने अपने भक्तों को दर्शन दिए थे। यहां शिवलिंग स्थापित है और भक्त यहां जल चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। महाशिवरात्रि के समय यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है।
तक्षकेश्वर नाथ मंदिर
इस मंदिर का संबंध नागों के राजा तक्षक से है। यह मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ने तक्षक नाग को अपने वरदान से आशीर्वाद दिया था। मंदिर में नाग देवता की पूजा की जाती है, जो विशेष रूप से नागपंचमी के दिन भव्य रूप से मनाई जाती है।
अक्षयवट
अक्षयवट को अमरता का प्रतीक माना जाता है। यह वृक्ष पवित्रता और अनन्तता का प्रतीक है। कहा जाता है कि जो भक्त इस वृक्ष के दर्शन करते हैं, उनके पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। यह स्थान धार्मिक यात्रियों और साधुओं के लिए अत्यंत महत्व का है।
लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर
यह मंदिर अपनी अनोखी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें हनुमान जी विश्राम की मुद्रा में दिखाई देते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां हनुमान जी ने लंका विजय के बाद विश्राम किया था। यहां आने वाले भक्त अपनी बाधाओं और दुखों से छुटकारा पाने की प्रार्थना करते हैं।
क्या महाकुंभ 2025 में खास?
इस साल होने जा रहे महाकुंभ में करीब 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया जा रहा है। साथ ही साधु-संत भी संगम पर पहुंचने शुरू हो चुके हैं। बता दें कि स्नान के लिए 12 किलोमीटर लंबे अस्थायी घाटों का निर्माण किया गया है। इसके साथ 8 किलोमिटर का रिवर फ्रन्ट रोड भी तैयार किया गया है। इसके साथ मेला क्षेत्र में 1.5 लाख टेंट भी बनाए गए हैं और 11 कॉरिडर का विकास भी किया गया है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।