प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में हर दिन हजारों की संख्या में इस मेले में लाखों श्रद्धालु, साधु-संत व अखाड़ों के सन्यासी एकत्रित होते हैं और पवित्र संगम में डुबकी लगाते हैं। बता दें कि कुंभ मेला तीन प्रकार का होता है एक 3 साल पर, 6 साल पर और अंतिम 12 साल पर। वर्तमान समय में प्रयागराज में कुंभ मेला 12 साल के बाद आयोजित हो रहा है। धार्मिक दृष्टि से यह मेला सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
महाकुंभ के दौरान अखाड़े और उनके सन्यासी प्रमुखता से दिखाई देते हैं। हालांकि, कई लोग यह जानने के इच्छुक होते हैं कि महाकुंभ समाप्त होने के बाद ये अखाड़े और उनके सन्यासी कहां जाते हैं और क्या करते हैं।
अखाड़ों का महत्व और उनका जीवन महाकुंभ के बाद
महाकुंभ के दौरान अखाड़ों के सन्यासी न केवल धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, इसके साथ वह समाज की भलाई और अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में भी योगदान देते हैं। हालांकि, महाकुंभ समाप्त होने के बाद, अखाड़ों के संत और महंत अपने-अपने मठों और आश्रमों में लौट जाते हैं। ये मठ और आश्रम पूरे भारत में फैले हुए हैं, जो किसी न किसी अखाड़े से जुड़े होते हैं। वहां जाकर ये साधु-संत अपने नियमित कार्यों और आध्यात्मिक साधना में लग जाते हैं।
महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र रहने वाले नागा साधु महाकुंभ के बाद पहाड़ की कंदराओं में या आश्रमों में निवास कर तपस्या करते हैं। नागा साधुओं के लिए यह कहा जाता है कि वह सिर्फ कुंभ में दिखाई देते हैं और वापस कहां जाते हैं, यह कोई नहीं जानता है। वह अपना जीवन बहुत ही गुप्त रखकर ध्यान करते हैं।
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महाकुंभ के बाद अखाड़ों के कार्य
अखाड़ों के संत और सन्यासी धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते हैं। वे गांव-गांव और शहर-शहर जाकर कथा, प्रवचन और सत्संग का आयोजन करते हैं। इन प्रवचनों में गीता, वेद, पुराण और उपनिषदों की शिक्षाओं को सरल भाषा में लोगों तक पहुंचाया जाता है।
अखाड़ों के साधु महाकुंभ के बाद अपने मठों में साधना और तपस्या में लीन हो जाते हैं। वे नियमित रूप से योग, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठानों का अभ्यास करते हैं। उनका उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना होता है।
कई अखाड़ों में गौशालाएं चलती हैं, जहां साधु गायों की सेवा करते हैं। इसके अलावा, कई आश्रमों में कृषि कार्य भी किए जाते हैं, जहां साधु खेती-किसानी के माध्यम से अपने दैनिक जरूरतों को पूरा करते हैं ।
अखाड़े महाकुंभ के बाद भी विभिन्न धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं। इनमें अर्धकुंभ, कल्पवास और अन्य प्रमुख धार्मिक मेलों का आयोजन शामिल होता है। इसके अलावा, तीर्थ स्थलों पर आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा और सहायता भी अखाड़ों के साधुओं का एक महत्वपूर्ण कार्य है। साथ ही कुंभ समाप्त होने के बाद, सन्यासी शास्त्रों का अध्ययन करते हैं।