महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ को देव ग्रंथ भी कहा जाता है। इसमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इस सभी के विषय में विस्तार से बताए गए हैं। महाभारत कथा में भगवान श्री कृष्ण, पांडव और कौरवों की कथा और उनके बीच हुए बीच हुए भीषण युद्ध का वर्णन किया गया है। बता दें कि कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत युद्ध में पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, दुर्योधन, कर्ण और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों की मृत्यु हो गई थी। 

 

महाभारत ग्रंथ में एक कथा यह भी है कि युद्ध के 15 वर्ष के बाद कुरुक्षेत्र में मारे गए सभी महारथी वापस जीवित हुए थे। यह कथा स्वयं महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत ग्रंथ में आश्रमवासिक पर्व में लिखा है। आइए जानते हैं-

जीवित हो गए थे महाभारत युद्ध में मारे गए सभी योद्धा

महाभारत ग्रंथ के आश्रमवासिक पर्व में यह बताया गया है कि पांडवों और कौरवों के बीच हुए महाभारत युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बन गए थे। युधिष्ठिर धृतराष्ट्र, गांधारी और माता कुंती की सेवा में जुटे रहते थे और इसी क्रम में 15 साल बीत गए। तब धृतराष्ट्र को एक दिन यह विचार आया कि उन्हें वृद्धावस्था में वन में रहना चाहिए। धृतराष्ट्र के विचारों से गांधारी भी सहमत थी। इसके बाद धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ विदुर और संजय भी वानप्रस्थ आश्रम के लिए चल पड़े। माता कुंती ने भी धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ वन में जाने का निर्णय लिया।

 

वन में रहते हुए धृतराष्ट्र, गांधारी और माता कुंती को लगभग 1 वर्ष हो गए। एक दिन महर्षि वेदव्यास धृतराष्ट्र से मिलने वन में आए। उन्होंने कहा कि आज में आप सभी को अपनी तपस्या का प्रभाव दिखाऊंगा। आप सभी की जो भी इच्छा है, वह मांग लीजिए। तब धृतराष्ट्र और गांधारी ने युद्ध में मृत अपने पुत्रों को देखने की इच्छा प्रकट की, वहीं कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा रखी। ऐसा कहकर महर्षि ने सभी को गंगा के तट पर चलने के लिए कहा और सभी रात होने का इंतजार करने लगे। रात होने के बाद महर्षि वेदव्यास जी ने गंगा में प्रवेश किया और पांडव व कौरव पक्ष के सभी मृत परिजनों का आवाहन किया। 

 

महर्षि वेदव्यास की तपस्या से दुर्योधन, पितामह भीष्म, कर्ण, दुशासन, अभिमन्यु, धृतराष्ट्र के सभी पु,त्र द्रोपदी के पांचो पुत्र, दृष्टद्युम्न, शकुनी, शिखंडी आदि सभी पुनर्जीवित होकर जल से बाहर आए। इन सभी महारथियों के मुख पर कोई अहंकार या क्रोध की भावना नहीं थी। इसके बाद महर्षि वेदव्यास जी ने धृतराष्ट्र व गांधारी को दिव्य नेत्र दिए, जिससे उन्होंने अपने सभी परिजनों को और पुत्रों को देखा। इससे उनका मन प्रसन्नता से भर गया और सारी रात उन्होंने अपने परिजनों के साथ बिताए और बातें की। अपने पुत्र, भाई और संबंधियों से मिलकर सभी का संताप दूर हो गया।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता.