दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम में महाकुंभ मेला सबसे अधिक महत्व रखता हैं। हर 12 साल पर आयोजित होने महाकुंभ में करोंड़ो की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंचते हैं। वर्ष 2025 में प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में महाकुंभ मेले का आयोजन होगा। जिसकी तैयारियां जोरों पर है। इस महा समागम में विभिन्न धार्मिक अखाड़े भी हिस्सा लेते हैं। यह अखाड़े साधु-संतों और महात्माओं का एक बड़ा समूह होता है, जो धार्मिक परंपरा को बनाए रखने का कार्य करते हैं।
अखाड़े शब्द के कई अर्थ हैं, जिसमें आमतौर इसका अर्थ कुश्ती का अखाड़ा समझा जाता है। हालांकि, अखाड़ा शब्द संस्कृत के शब्द ‘अखंड’ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ कभी न विभजित होने वाला है। अखाड़ा का एक मतलब बहन का स्थान भी होता है। महाकुंभ में जब साधु-संत एक स्थान पर एकत्रित होते हैं तो वहां धर्म अध्यात्म पर चर्चा होती है।
कब हुई थी अखाड़ों की शुरुआत?
हिंदू धर्म में अखाड़ों की शुरुआत का इतिहास प्राचीन और गहराई से धार्मिक-आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। अखाड़ों का मूल उद्देश्य धर्म, साधना और ज्ञान की रक्षा करना था। हिंदू धर्म में अखाड़ों की परंपरा की शुरुआत का श्रेय आदिगुरु शंकराचार्य को दिया जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म के चार प्रमुख मठों (ज्योतिष्पीठ, शारदापीठ, द्वारका पीठ, गोवर्धन पीठ) की स्थापना की थी। वहीं सबसे पहला अखाड़ा जूना अखाड़ा माना जाता है, जिसकी स्थापना 8वीं शताब्दी में हुई थी।
प्रमुख अखाड़े और उनके नाम
हिंदू परंपरा में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिन्हें तीन संप्रदायों में बांटा गया है: शैव, वैष्णव और उदासीन। शैव परंपरा के अनुयायी भगवान शिव के भक्त होते हैं और योग, ध्यान और तपस्या पर जोर देते हैं। वैष्णव परंपरा के अनुयायी भगवान विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति करते हैं। उदासीन परंपरा का झुकाव निर्गुण भक्ति की ओर होता है, और यह गुरु नानक देव के सिद्धांतों से प्रभावित है।
- जूना अखाड़ा शैव परंपरा का पालन करता और यह सबसे प्राचीन अखाड़ा माना जाता है और नागा साधुओं का प्रमुख अखाड़ा है। यह अखाडा योग, तपस्या, और शिव भक्ति पर आधारित है।
- महानिर्वाणी अखाड़ा का संबंध शैव परंपरा से है और इसमें तांत्रिक व योग साधना में विशेष। भगवान शिव के साथ-साथ अन्य देवताओं की पूजा करते हैं।
- आनंद अखाड़े में भी शैव परंपरा का पालन किया जाता है। यहां भगवान शिव और शक्ति साधना की जाती है। साथ ही यहां तांत्रिक साधना और वैराग्य बहुत ही महत्वपूर्ण है।
- अटल अखाड़ा शैव परंपरा से संबंध रखता है और यह तपस्या, ध्यान व योग के लिए प्रसिद्ध है। यह अखाड़ा भगवान शिव के भक्तों और नागा साधुओं का प्रमुख केंद्र है।
- निरंजनी अखाड़ा का संबंध शैव परंपरा से है और यह अखाड़ा तपस्वियों व योगियों का अखाड़ा है। यह अखाड़ा तांत्रिक साधना और वैदिक ज्ञान पर आधारित है।
- आवाहन अखाड़ा शैव परंपरा पर आधारित है। यहां शिव और शक्ति की संयुक्त आराधना करते हैं। इसमें गहरे ध्यान और तपस्या का महत्व है।
- वैष्णव परंपरा का पालन करने वाले अखाड़े में दिगंबर अखाड़ा विशेष महत्व रखता है। यहां भगवान विष्णु और उनके अवतारों की उपासना की जाती है। यह वैष्णव परंपरा का प्रमुख अखाड़ा है।
- निर्वाणी अखाड़ा भी वैष्णव परंपरा पर आधारित है। यहां विष्णु और राम-कृष्ण जैसे अवतारों की पूजा की जाती है। इन्हें भक्ति और सेवा परंपरा में अग्रणी माना जाता है।
- बैजू निर्वाणी अखाड़े में वैष्णव परंपरा का पालन किया जाता है और इसमें भक्ति, ध्यान व भगवान विष्णु की विशेष उपासना की जाती है। यह साधु-संतों का विशेष संगठन है।
- निर्मल अखाड़ा भी वैष्णव परंपरा का पालन करता है। यहां सिख धर्म और वैष्णव परंपरा का संगम है। इस अखाड़े में गुरु नानक देव जी के विचारों को मानते हैं।
- बड़ा उदासीन अखाड़े में नाम के अनुरूप उदासीन परंपरा का पालन किया जाता है। यहां निर्गुण भक्ति और गुरु नानक के विचारों पर विशेष जोर दिया जाता है। यहां सामाजिक सेवा और साधना में सक्रियता आवश्यक है।
- निर्मल उदासीन अखाड़ा भी उदासीन परंपरा का पालन करता है और यहां भक्ति व सेवा के साथ निर्गुण साधना को महत्व देते हैं। समाज सुधार के कार्यों में भाग लेते हैं।
- अंत में अग्नि अखाड़ा है, जिसमें शैव परंपरा का पालन किया जाता है। यह तपस्वियों का अखाड़ा है, जो योग, ध्यान और अग्नि साधना में विशेषज्ञता रखते हैं।
जूना अखाड़ा करता है सबसे पहले नगर प्रवेश
कुंभ मेले में सबसे पहले नगर प्रवेश और शाही स्नान का अधिकार जून अखाड़े को दिया जाता है। जून अखाड़ा सबसे प्राचीन और प्रमुख अखाड़ा माना जाता है। इसके बाद अन्य अखाड़े अपने निर्धारित क्रम में नगर प्रवेश और शाही स्नान करते हैं। आमतौर पर शैव अखाड़ों को पहले प्रवेश दिया जाता है, फिर वैष्णव अखाड़ों और अंत में उदासीन अखाड़ों का क्रम आता है। शाही जुलूस के दौरान, अखाड़ों के साधु-संत अपनी-अपनी विशिष्ट झांकियों, झंडों और परंपरागत हथियारों के साथ नगर में प्रवेश करते हैं, जो भक्तों के लिए एक अद्भुत दृश्य होता है।