महाकुंभ में विभिन्न अखाड़े हिस्सा लेते हैं भारत में हिंदू धर्म के संतों और साधुओं का संगठन अखाड़ों के जरिए संचालित होता है। इनमें से एक प्रमुख अखाड़ा है महानिर्वाणी अखाड़ा, जो प्राचीन परंपराओं और गौरवशाली इतिहास का प्रतीक होता है। यह अखाड़ा न केवल अपनी आध्यात्मिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह तीसरा सबसे बड़ा शस्त्रधारी अखाड़ा भी है। इसकी स्थापना, कार्य प्रणाली और इसके पदों का महत्व इसे अन्य अखाड़ों से अलग बनाता है।

महानिर्वाणी अखाड़े का इतिहास

महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना लगभग 11वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य के समय हुई मानी जाती है। यह अखाड़ा भगवान शिव की उपासना और सनातन धर्म की रक्षा के लिए स्थापित किया गया था। इसके स्थापना का उद्देश्य साधु-संतों को एकत्रित करना, धर्म की रक्षा करना और समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना था।

महानिर्वाणी अखाड़ा वैदिक परंपरा और शैव दर्शन का पालन करता है। इस अखाड़े का नाम ‘महानिर्वाणी’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य आत्मा को संसार के बंधनों से मुक्त कर महानिर्वाण (मोक्ष) की ओर ले जाना है। यह अखाड़ा उन साधुओं और संतों का घर है जो सांसारिक जीवन का त्याग कर ईश्वर की खोज में संलग्न रहते हैं।

संन्यासी बनने के लिए उमड़े संत। (Photo Credit: PTI)



पद और संरचना

 

महानिर्वाणी अखाड़े की प्रशासनिक और धार्मिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए साधुओं को विभिन्न पद दिए गए हैं-

महामंडलेश्वर

यह अखाड़े का सर्वोच्च पद है। महामंडलेश्वर को अखाड़े का नेतृत्व सौंपा जाता है। वे धार्मिक कार्यों और अखाड़े की प्रशासनिक व्यवस्था की देखरेख करते हैं।

महंत

महंत अखाड़े की शाखाओं का संचालन करते हैं। वे स्थानीय स्तर पर साधुओं और संतों की देखभाल करते हैं।

कोतवाल

यह पद अखाड़े के अनुशासन को बनाए रखने के लिए होता है। कोतवाल साधुओं की गतिविधियों और नियमों का पालन सुनिश्चित करते हैं।

भंडारी

भंडारी का कार्य अखाड़े की संपत्ति और वित्तीय मामलों की देखरेख करना होता है।

नागा साधु

महानिर्वाणी अखाड़ा नागा साधुओं का प्रमुख केंद्र है। नागा साधु अखाड़े की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं का पालन करते हैं।

तीसरा सबसे बड़ा शस्त्रधारी अखाड़ा बनने की कहानी

महानिर्वाणी अखाड़ा अपनी शस्त्रधारी परंपरा के लिए भी प्रसिद्ध है। अखाड़े में साधु-संत न केवल आध्यात्मिक साधना करते हैं, बल्कि शस्त्र विद्या में भी निपुण होते हैं। यह अखाड़ा इतिहास में उस समय और अधिक प्रसिद्ध हुआ जब मुगलों और विदेशी आक्रमणकारियों के समय साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाए।

 

महानिर्वाणी अखाड़े के संतों ने शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण लिया और धर्म के खिलाफ होने वाले किसी भी आक्रमण का जवाब दिया। अखाड़े की यह शस्त्र परंपरा आज भी जारी है। कुंभ मेले के दौरान अखाड़े के नागा साधु अपने शस्त्र कौशल का प्रदर्शन करते हैं। अखाड़े की यह परंपरा इस बात का प्रतीक है कि साधु केवल ध्यान और तप में निपुण नहीं हैं, बल्कि वे शारीरिक रूप से भी तैयार हैं।

अखाड़े की वर्तमान प्रतिष्ठा

महानिर्वाणी अखाड़ा आज भी भारत के प्रमुख अखाड़ों में से एक है। यह अखाड़ा प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के कुंभ मेलों में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। अखाड़े के संत सामाजिक कार्यों, शिक्षण और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।