हिंदू धर्म में मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व है। शास्त्रों में मकर संक्रांति का विस्तार से उल्लेख मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रांति कहा जाता है। देशभर में मकर संक्रांति के दिन पूजा-पाठ, धार्मिक आयोजन और पवित्र स्नान किया जाता है। उत्तर प्रदेश में स्थित गोरखनाथ मंदिर का भी इस पर्व से विशेष संबंध है।

 

गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दिन उत्सव मनाया जाता है और खिचड़ी का भोग तैयार किया जाता है। इस दिन खिचड़ी मेले का भी आयोजन होता है, जो करीब एक महीने तक चलता है। इस अवसर पर बाबा गोरखनाथ मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन करने और प्रसाद ग्रहण करने के लिए आते हैं।

कौन थे बाबा गोरखनाथ?

बाबा गोरखनाथ को गुरु की उपाधि प्राप्त थी, और कहा जाता है कि उन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थीं। उन्होंने नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित देवीपाटन, जो प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है, में तपस्या की थी। उनके अनुयायी उन्हें भगवान शिव का अवतार मानते हैं। नाथ परंपरा और हठयोग परंपरा की शुरुआत का श्रेय भी बाबा गोरखनाथ को दिया जाता है। उनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ भी सिद्धियों से संपन्न थे। यह भी माना जाता है कि देवी-देवताओं के साबर मंत्र का निर्माण गुरु गोरखनाथ ने ही किया था।

मकर संक्रांति और खिचड़ी का संबंध

लोककथाओं के अनुसार, जिस स्थान पर गुरु गोरखनाथ का आश्रम था, वहां मुगल आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया था। इस कारण आश्रम के योगी खाना नहीं पका पाते थे, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। तब बाबा गोरखनाथ ने योगियों को चावल, दाल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह भोजन जल्दी तैयार हो जाता था और इससे उनका स्वास्थ्य पुनः सुधरने लगा। इस भोजन को बाबा ने खिचड़ी का नाम दिया। तभी से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का भोग तैयार किया जाता है और खिचड़ी मेले का आयोजन होता है।

गोरखनाथ मंदिर का इतिहास और खास बातें

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर की अनोखी परंपराएं हैं। यह नाथ मठवासी मंदिर का हिस्सा है, जिसका नाम बाबा गोरखनाथ के नाम पर रखा गया है। मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ, इस पर इतिहासकारों में मतभेद है, लेकिन यह नाथ संप्रदाय के योगियों का प्रमुख केंद्र रहा है। मुख्य मंदिर में गुरु गोरखनाथ की समाधि और उनकी पूजा के लिए एक विशाल प्रांगण है।

 

मंदिर की गतिविधियां केवल पूजा तक सीमित नहीं हैं। यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में भी कार्य किए जाते हैं। मंदिर प्रबंधन द्वारा संचालित विद्यालय और चिकित्सालय समाज सेवा के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मंदिर परिसर में एक पवित्र तालाब भी है, जिसे 'मंसादेवी तालाब' कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर मुगल काल और ब्रिटिश काल में कई चुनौतियों का सामना करता रहा, लेकिन यह हमेशा नाथ योगियों की साधना और दृढ़ता का केंद्र बना रहा।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।