भारत में विभिन्न प्रकार की संस्कृति और परंपराएं देखने को मिलती हैं, जिनका अपना एक विशेष महत्व है। इन सभी में देश के कुछ ऐसे भी क्षेत्र जहां परंपराएं और मान्यताएं चौकने पर मजबूर कर देती है और इन्हीं में से एक है हिमाचल प्रदेश में स्थित मलाणा गांव की परंपरा। कहा जाता है कि इस स्थान ओर देवताओं के आदेश का पालन किया जाता है। आइए जानते हैं, मलाणा गांव से जुड़ी संस्कृति और परंपराएं।

मलाणा का इतिहास और परंपरा

मलाणा गांव को ‘प्राचीन लोकतंत्र का उदाहरण’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां की प्रशासन व्यवस्था हज़ारों साल पुरानी है और जमलू देवता के मार्गदर्शन में चलती है। बता दें कि मलाणा का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। यहां की स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह गांव महाभारत के समय से अस्तित्व में है। कहा यह भी जाता है कि इस गांव की स्थापना ऋषि जमलू ने की थी, जो एक सिद्ध तपस्वी थे। माना जाता है कि उन्होंने ही गांव के नियम-कायदे बनाए, जो आज भी पूरी तरह से पालन किए जाते हैं।

 

स्थानीय परंपरा के अनुसार, जमलू देवता को इस गांव का मुख्य शासक माना जाता है। इसके साथ इस गांव को सिकंदर के सैनिकों से भी जोड़ा जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसके कुछ सैनिक मलाणा में बस गए। इसी कारण, मलाणा के निवासियों के शारीरिक और सांस्कृतिक पहलुओं में ग्रीक सभ्यता का प्रभाव देखा जाता है।

जमलू देवता है सर्वोच्च शासक

मलाणा गांव में जमलू देवता सर्वोच्च शासक हैं। गांव के लोग यह मानते हैं कि जमलू देवता आज भी उनके जीवन को नियंत्रित करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। यहां का प्रशासन देवता के नाम पर चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से चलता है। गांव में दो मुख्य निकाय हैं- गुर, जो देवता के पुजारी हैं और चौधरी। ये निकाय देवता से सलाह लेकर गांव के मामलों का निपटारा करते हैं।

मलाणा गांव के सख्त नियम

मलाणा गांव के कानून बहुत सख्त हैं और बाहरी लोग गांव में कुछ नियमों का पालन किए बिना प्रवेश नहीं कर सकते। जिसमें एक नियम यह है कि गांव के मंदिर, जमलू देवता के स्थान, और पवित्र स्थलों को छूने की सख्त मनाही है। अगर कोई व्यक्ति गलती से भी इन स्थानों को छू लेता है, तो उसे दंड के रूप में जुर्माना भरना पड़ता है।

 

इसके साथ गांव के निवासी बाहरी लोगों के साथ शारीरिक संपर्क से बचते हैं। यहां बाहरी लोग सामान खरीद सकते हैं लेकिन उन्हें स्वयं सामान लेना होता है। गांव के प्रशासन में बाहरी लोगों का हस्तक्षेप पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यहां के निवासी अपनी अनोखी संस्कृति और परंपराओं को आधुनिकता से दूर रखते हुए संरक्षित रखते हैं। इन नियमों के पीछे गांव की पवित्रता और आत्मनिर्भरता को बनाए रखना मुख्य उद्देश्य है। बता दें कि यहां के लोग अपनी भाषा कनाशी बोलते हैं, जो दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक मानी जाती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।