सीता से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं भारतीय धर्म, संस्कृति और समाज में बहुत गहरी और श्रद्धा से जुड़ी हुई हैं। वह केवल भगवान राम की पत्नी ही नहीं, बल्कि संपूर्ण स्त्री जाति की प्रतीक मानी जाती हैं। उनके जन्म, आचरण और चरित्र को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं और कथाएं हैं, जो विभिन्न पुराणों जैसे रामायण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और अन्य लोककथाओं में वर्णित हैं। सीता को पृथ्वी की पुत्री कहा गया है, इसलिए उन्हें 'भूमिपुत्री' और 'जानकी' भी कहा जाता है। उनके जन्म की सबसे प्रसिद्ध कथा वाल्मीकि रामायण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है।
सीता का जन्म न केवल एक राजकन्या के रूप में हुआ था। बल्कि उनका जन्म ही यह सिद्ध करता है कि वह धरती की शुद्धता, सहनशीलता और स्नेह की मूर्ति हैं। चाहे वह वाल्मीकि रामायण की कथा हो या ब्रह्मवैवर्त पुराण की, सीता का प्राकट्य हर दृष्टि से दिव्य, प्रेरणादायक और मानवता के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता का जन्म
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, मिथिला में एक समय अकाल पड़ा था, जिससे राजा जनक का संपूर्ण राज्य जल के अभाव में मरुस्थल बन गया था। राजा जनक ने अपनी प्रजा की सहायता के लिए अपना कोष खोल दिया था। ऋषियों ने राजा जनक को सलाह दी कि वह स्वर्ण हल से खेत जोतें तो इंद्रदेव की कृपा उनके राज्य पर होगी। राजा जनक ने ऐसा ही किया और जब वह हल से खेत जोत रहे थे, तब उनका हल एक मंजूषा (छोटा बक्सा) से टकराया। जब उन्होंने उस बक्से को खोला तो उन्हें एक सुंदर कन्या मिली।
राजा जनक को उस समय कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस कन्या (सीता) को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया। सीता को जानकी जी, मैथिली और भूमिजा के नाम से भी पुकारा जाता है। भूमि से जन्म लेने के कारण उनका नाम भूमिजा पड़ा। कहा जाता है कि सीता के प्रकट होते ही मिथिला राज्य में जमकर वर्षा हुई और वहां का अकाल समाप्त हो गया था।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सीता का जन्म
ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार, सीता वेदवती नामक एक स्त्री का पुनर्जन्म थीं, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वेदवती ने भगवान विष्णु को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक दिन रावण वेदवती को देखा और मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने का प्रस्ताव दिया लेकिन वेदवती ने स्पष्ट मना कर दिया। रावण यह सुनकर क्रोधित हो गया और वेदवती के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा।
ऐसे में वेदवती ने स्वयं को भस्म कर लिया और रावण को श्राप दिया कि वह अगले जन्म में उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। उसके बाद मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया लेकिन रावण ने उसे सागर में प्रवाहित कर दिया। उस कन्या को सागर की देवी वरुणी ने धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया था। बाद में वही कन्या मिथिला के राजा जनक को हल जोतते समय प्राप्त हुई, उसके बाद राजा जनक और उनकी पत्नी सुनयना ने उस कन्या को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया। राजा जनक ने माता सीता का लालन-पालन किया और उनका विवाह प्रभु श्रीराम से हुआ। वनवास के दौरान रावण ने माता सीता का अपहरण किया और उनसे विवाह करने की इच्छा जाहिर की। उसके बाद प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया और इस प्रकार माता सीता रावण के मृत्यु का कारण बनीं।
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पुराण की मान्यता के अनुसार वह कन्या कोई और नहीं बल्कि वेदवती थीं। जिन्होंने रावण का अंत करने के लिए माता सीता के रूप में रावण की पत्नी मनदोदरी की कोख से दोबारा जन्म लिया था। रामायण के अनुसार, रावण ने कहा था कि अगर उसके मन में अपनी पुत्री से विवाह की इच्छा उत्पन्न होती है, तो उसकी पुत्री ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। मान्यता है कि इसी बात को सही साबित करने के लिए वेदवती ने सीता के रूप में मंदोदरी की कोख से जन्म लिया था।
माता सीता को क्यों कहा जाता है 'भूमिजा'
पुराणों में यह वर्णन है कि रावण के अत्याचार से त्रस्त होकर पृथ्वी माता ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की। तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वह पृथ्वी पर अधर्म का नाश करने के लिए अवतार लें। भगवान विष्णु ने यह वचन दिया कि वह राम के रूप में अयोध्या में राजा दशरथ के पुत्र बनेंगे और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी यानी सीता के रूप में अवतरित होंगी।
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देवी लक्ष्मी ने वर प्राप्त किया कि वह इस बार धरती पर जन्म नहीं लेंगी, बल्कि सीधे पृथ्वी से उत्पन्न होंगी, जिससे उनका शरीर पवित्र और दिव्य बना रहे। इसलिए वह धरती की कोख से प्रकट हुईं, जो दर्शाता है कि उनका जन्म पूरी तरह से दिव्य और अलौकिक था। इस कथा के अनुसार, सीता का जन्म किसी स्त्री की कोख से नहीं हुआ था बल्कि वह धरती से प्रकट हुईं, जो उन्हें 'भूता आत्मजा' यानी 'पृथ्वी की बेटी' बनाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण पर आधारित है।


