देशभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। हर साल यह त्योहार देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता था लेकिन इस बार तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के एक दिन बाद मनाया जाएगा। तुलसी विवाह के दिन देवी तुलसी और भगवान शालिग्राम (विष्णुजी के प्रतीक) का विवाह परंपरागत विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। इस दिन को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल 2 नवंबर 2025 के दिन तुलसी विवाह का त्योहार मनाया जाएगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह का संबंध देवी वृंदा और भगवान विष्णु से जुड़ा है। कथा के अनुसार, देवी वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप देकर उन्हें शालिग्राम पत्थर बनने का वरदान दिया था, जिसके बाद स्वयं तुलसी के रूप में पृथ्वी पर प्रकट होकर उन्होंने विष्णु जी से विवाह किया। तभी से हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है।
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तुलसी विवाह 2025 में कब मनाया जाएगा?
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाया जाने वाला त्योहार साल 2025 में 2 नवंबर के दिन मनाया जाएगा। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस तिथि की शुरुआत 2 नवंबर के दिन सुबह 7:35 मिनट से होगी और इसका समापन 3 नवंबर 2025 के दिन सुबह 5:10 मिनट पर होगा।
तुलसी विवाह की पौराणिक मान्यता
पुराणों के अनुसार, देवी तुलसी भगवान विष्णु की अत्यंत प्रिय हैं। उनका एक रूप वृंदा भी कहलाता है, जो दैत्यराज जलंधर की पत्नी थीं। जलंधर बहुत शक्तिशाली था और किसी भी देवता से पराजित नहीं हो सकता था, क्योंकि उसकी शक्ति उसकी पत्नी वृंदा की पवित्रता में निहित थी।
भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए जलंधर का वध करने के लिए वृंदा की परीक्षा ली। जब वृंदा को सच्चाई का पता चला, तो उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दिया कि वह शालिग्राम पत्थर बन जाएंगे और मैं तुलसी के पौधे के रूप में पृथ्वी पर विराजमान रहूंगी।
बाद में भगवान विष्णु ने वृंदा के इस त्याग और तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें तुलसी के रूप में स्वीकार किया और विवाह का वरदान दिया। तभी से तुलसी और शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) का विवाह करने की परंपरा चली आ रही है।
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तुलसी विवाह की विशेषता
- तुलसी विवाह का दिन विवाह समारोहों की शुरुआत का प्रतीक है।
- इस दिन घरों में मांगलिक संगीत, विवाह गीत और पूजा के साथ देवी तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम (विष्णुजी के प्रतीक) से कराया जाता है।
- यह विवाह धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
पूजा और विधि
- सुबह नहाकर घर के आंगन या छत पर स्थित तुलसी चौरा को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है।
- तुलसी के पौधे को नए कपड़े (लाल या पीले रंग के), गहने और चुनरी से सजाया जाता है।
- शालिग्राम या भगवान विष्णु की मूर्ति को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है।
- दोनों के बीच मंडप बनाकर विधिवत पंडित या घर के बड़े सदस्य विवाह का संकल्प लेते हैं।
- पूजा में दीपक, फूल, तुलसीदल, अक्षत, रोली, मिठाई और पंचामृत का इस्तेमाल किया जाता है।
- विवाह मंत्रों के साथ तुलसी और शालिग्राम का मिलन कराया जाता है, फिर आरती उतारी जाती है और प्रसाद बांटा जाता है।
