महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने आए रामनामी संप्रदाय के अनुयायी, रामनामी संप्रदाय के लोग पूरे शरीर पर गुदवाते हैं राम नाम,निर्गुण राम के उपासक हैं रामनामी, मंदिर और मूर्ति पूजा नहीं करते

 

महाकुंभ के किसी भी एरिया में आपको लाल या गेरुए रंग से लिखे राम नाम वाले वस्त्रों और रामनामी गमछा ओढ़े कुछ श्रद्धालु मिल जाएंगे। स्नान के दौरान वह राम का नाम तो जरूर लेंगे लेकिन पूजा पाठ आरती नहीं करेंगे। इस बात पर चौंकना स्वाभाविक है। लेकिन बता दें कि यह रामनमी ओढ़े और राम नाम लिखा हुआ आदिवासी जैसा मुकुट लगाए भक्त जन रामनामी संप्रदाय के अनुयाई हैं।

 

छत्तीसगढ़ के रहने वाले रामनामी संप्रदाय के ये अनुयायी पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाने आये हैं। ध्यान से देखेंगे तो इनके पूरे शरीर में राम नाम गोदना से लिखा होता है। जो जीवन पर्यन्त उनके शरीर पर रहता है। रामनामी संप्रदाय के ये अनुयायी संगम की रेती पर राम नाम का जाप और मानस की चौपाईयों का भजन करते हुए देखे जा सकते हैं।

मूर्तिपूजा नहीं करते

बता दें कि रामनामी संप्रदाय के लोग मंदिर और मूर्ति पूजा नहीं करते वो निर्गुण राम के उपासक हैं। जैसे कबीरपंथी लोग आते हैं वैसे ही यह रामनामी भक्त भी हमारी सनातन संस्कृति का ही हिस्सा हैं। सनातन संस्कृति के महापर्व महाकुम्भ में सम्मिलित होने तरह-तरह के साधु, संन्यासी, जाति, पंथ, संप्रदाय के लोग देश विदेश के कोने-कोने से आते हैं।

 

19वीं शताब्दी में जब सनातन संस्कृति के तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों ने छत्तीगढ़ में कुछ जनजाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने और मूर्ति पूजा से वंचित किया तो जनजाति के लोगों ने अपने पूरे शरीर पर ही राम नाम अंकित कर अपनी देह को राम का मंदिर बना लिया। रामनामी संप्रदाय की शुरूआत जांजगीर चंपा के परशुराम जी से मानी जाती है। इस पंथ के अनुयायी अपने पूरे शरीर पर रामनाम का टैटू या गोदना गोदवाते हैं।

10 लाख से ज्यादा भक्त

राम नाम लिखा हुआ सफेद वस्त्र और सिर पर मोरपंख से बना मुकुट धारण करते हैं। वर्तमान में रामनामी संप्रदाय के लगभग 10 लाख से अधिक अनुयायी मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के जिलों में रहते हैं। राम नाम ही अवतार, राम नाम ही भवसागर की पतवार की बात कहने वाले रामनामी संप्रदाय के कौशल रामनामी का कहना है कि महाकुम्भ में पवित्र स्नान करने उनके पंथ के लोग जरूर आते हैं। 

 

उन्होंने कहा, ‘मौनी अमावस्या की तिथि पर राम नाम का जाप करते हुए हम सब संगम में अमृत स्नान करेंगे। छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ से आये कौशल रामनामी का कहना है पिछली पांच पीढ़ी से उनके पुरखे महाकुम्भ में सम्मिलित होने आते रहे हैं। आने वाले समय में हमारे बच्चे भी परंपरा जारी रखेंगे। 

मूलतः छत्तीसगढ़ से

उन्होंने बताया, ‘सारंगढ़, भिलाई, बालोदा बाजार और जांजगीर से लगभग 200 रामनामी हमारे साथ आये हैं। अभी और भी लोग मौनी अमावस्या से पहले प्रयागराज आ रहे हैं। हम लोग परंपरा के मुताबिक मौनी अमावस्या के दिन राम नाम का जाप करते हुए त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे।

 

राम भजन करते हुए महाकुम्भ से अपने क्षेत्रों में लौट जाएंगे। उन्होंने बताया कि वो रामनाम को ही अवतार और भवसागर की पतवार मानते हैं। वो मंदिर नहीं जाते और मूर्ति पूजा नहीं करते। केवल राम नाम का जाप ही उनका भजन है और रामनाम लिखी देह ही मंदिर।’