*ब्रिटिश हुकूमत के किंग का गंगा जल से हुआ था राज्याभिषेक फिर भी कुंभ मेला पर लगाई थी बंदिश*
महाकुंभ 2025 अपनी भव्यता, दिव्यता और नयेपन को लेकर विश्व स्तर पर दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम के रूप में स्थापित होने की ओर अग्रसर है लेकिन इसकी ऐतिहासिकता भी बहुत रोचक है। आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू हुआ कुंभ मेला कई तरह की आपदा-विपदा, विदेशी आक्रांता और मुगलों के तुगलकी फरमानों, ब्रिटिश शासन काल में अनेक बंदिशो से भी गुजरा है।
भले ही संगम से चांदी के कलशों में 8000 लीटर गंगाजल भरकर महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय 1902 में लंदन पहुंचे थे, जहां यूनाइटेड किंगडम के किंग एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक गंगाजल से किया गया था।
लगाया तीर्थ यात्रा कर
उन्होंने ब्रिटिश काल में गंगाजल, संगम और कुंभ की महत्ता पूर्ण रूपेण स्थापित थी फिर भी ब्रिटिश शासन काल में कुंभ मेले के आयोजन पर अनेक बंदिशें लगाई गई थीं क्योंकि अंग्रेजी शासन को लगता था कि कुंभ मेला एक धार्मिक आयोजन ही नहीं यह आजादी के आंदोलन के प्रचार प्रसार का केंद्र बिंदु भी है। ब्रिटिश सरकार ने शुरुआती दौर में कुंभ मेले में जाने से रोकने के लिए तीर्थ यात्रा कर तक लगाया था।
लेकिन जब महारानी विक्टोरिया की मृत्यु हुई तब एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक होना था। राजतिलक में जयपुर के महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय को शामिल होना था लेकिन विद्वानों ने उस समय को समुद्र यात्रा के लिए वर्जित बताया। उपाय के तौर पर उनके जहाज ओलंपिया पर अन्य सामग्रियों के साथ चांदी की कलशों में 8000 लीटर गंगाजल भी रखा गया।
धार्मिक सलाहकारों की बात मानकर महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय ने चांदी के सिक्के गलाकर बड़े-बड़े चांदी के कलश बनवाए और उसमें हजारों लीटर गंगाजल जल भरावा था, जिन्हें लंदन लेकर गए थे और उसी गंगा जल से एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक हुआ था।
लेकिन गंगाजल और गंगा नदी की इतनी महत्ता के बाद भी अंग्रेजों ने 1810 ईस्वी की रेगुलेशन के अंतर्गत एक तीर्थ यात्रा कर लगाया हालांकि उसे बाद में हटा दिया गया। फिलहाल इतिहासकारों के अनुसार 1815 में ईस्ट इंडिया गजेटियर इलाहाबाद के अनुसार माघ मेले में 1812- 13 में इलाहाबाद आने वाले यात्रियों की संख्या 2,18,792 हो गई थी। कुछ अंग्रेज विद्वान अफसर भी गंगा की महत्व को मानने लगे थे।
कुंभ को माना सामाजिक खतरा
लेकिन कुंभ मेला आयोजन अंग्रेजी हुकूमत के लिए एक चिंता का विषय था। जहां धर्म और स्वतंत्रता की चेतना का संगम होते अंग्रेजों ने देखा। उन्हें लगा कि यह भीड़ केवल तीर्थ यात्रियों का हुजूम नहीं बल्कि भारतीयों के सामूहिक मनोबल का प्रतीक है। अंग्रेजों ने कुंभ को एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक खतरे के रूप में देखा।
कुंभ मेले में लगातार बढ़ती भीड़ को देख अंग्रेजी सरकार ने 1918 के कुंभ मेले में तत्कालीन रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष आर डब्लू गिलान ने संयुक्त प्रांत के उपराज्यपाल जेम्स मेस्टन को पत्र लिखकर कहा कि कुंभ मेले के लिए जाने वाली ट्रेनों की संख्या कम कर दी जाए। टिकट की बिक्री बंद कर दी जाए।
महात्मा गांधी ने किया विरोध
जिसके पीछे का उद्देश्य यही था कि कुंभ में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या धीरे-धीरे कम हो जाए। अंग्रेजी हुकूमत के प्रति विरोध की भावना और तेज हो गई। इतिहासकारों का कहना है कि 1918 के कुंभ में महात्मा गांधी ने भी संगम में पहुंचकर आस्था की डुबकी लगाई थी। महात्मा गांधी ने केवल संगम में स्नान ही नहीं किया था बल्कि मेले में रह कर लोगों से मुलाकात की थी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए उन्हें प्रेरित किया था।