शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती भारत के चार प्रमुख शंकराचार्य पीठों में से एक- पुरी स्थित गोवर्धन मठ के वर्तमान और 145वें जगद्गुरु शंकराचार्य हैं। इस पीठ की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी और यह पूर्व दिशा की आध्यात्मिक जिम्मेदारी निभाने वाला मठ है। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी वर्ष 1992 से इस पद पर प्रतिष्ठित हैं।
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का जन्म 30 जून 1943 को बिहार राज्य के मधुबनी जिले के हरिपुर बक्शीतोल गांव में हुआ था। उनका जन्म नाम नीलाम्बर झा था। उनके पिता पंडित लालवंशी झा एक विद्वान संस्कृतज्ञ थे और दरभंगा राजघराने के राज-पंडित भी रह चुके थे। मां का नाम गीता देवी था, जिन्होंने उन्हें धार्मिक वातावरण में संस्कारित किया।
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बचपन से ही अध्यात्म के प्रति झुकाव
बचपन से ही उनका झुकाव वेद, शास्त्र और भारतीय परंपरा की ओर था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के बाद दिल्ली के टिब्बिया कॉलेज में आयुर्वेद का अध्ययन किया। मात्र 16 वर्ष की आयु में वे सांसारिक जीवन से विरक्त हो गए और स्वामी नारदानंद सरस्वती से ब्रह्मचारी दीक्षा लेकर ‘ध्रुवचैतन्य’ नाम प्राप्त किया।
वेदों और दर्शन का गहन अध्ययन उन्होंने काशी, हरिद्वार, प्रयाग, श्रींगेरी, वृंदावन और पुरी जैसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों पर किया। बाद में उन्हें स्वामी करपात्री जी महाराज का सान्निध्य मिला और 1974 में हरिद्वार में उन्हें संन्यास की दीक्षा प्राप्त हुई, तब उनका नाम हुआ- निश्चलानंद सरस्वती।
साल 1966 में जब देश में गौहत्या के विरोध में आंदोलन चला, तब उन्होंने धर्मसंघ के साथ सक्रिय भाग लिया और 52 दिन तिहाड़ जेल में भी रहे। उनका उद्देश्य सदैव भारतीय संस्कृति की रक्षा और सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में रहा।
शंकराचार्य के रूप में प्रतिष्ठा
1982 से 1987 तक स्वामी जी ने तत्कालीन पुरी शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी के संरक्षण में रहकर धर्म की गहन सेवा की। गुरु की इच्छा और निर्देश पर ही स्वामी निश्चलानंद सरस्वती को 9 फरवरी 1992 को औपचारिक रूप से पुरी गोवर्धनपीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया।
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती एक महान वेदांताचार्य हैं। वह केवल आध्यात्मिक ज्ञान में ही नहीं, बल्कि गणित, भौतिकी, खगोल और आयुर्वेद जैसे आधुनिक विज्ञानों में भी गहन दृष्टि रखते हैं। वह अपने प्रवचनों में विज्ञान और शास्त्र के सामंजस्य की बात करते हैं। पुरी में प्रतिदिन ‘समुद्र आरती’ की परंपरा उन्होंने शुरू की, जो एक अनुपम धार्मिक आयोजन है। इसके माध्यम से उन्होंने समुद्र की शक्तियों और प्रकृति से संवाद की परंपरा को जीवित किया है।
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सामाजिक और राजनीतिक पक्ष
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती मानते हैं कि भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ के रूप में स्वीकार करना चाहिए, जहां सभी धर्मों को समान सम्मान मिले, पर सनातन संस्कृति को मूलभूत स्थान दिया जाए। उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंचों से राजनीति और धर्म के स्वस्थ दूरी की बात कही है। वह भ्रष्टाचार, जातिवाद और सांप्रदायिक भेदभाव के विरुद्ध मुखर रहते हैं। राम मंदिर शिलान्यास के समय उन्होंने वैदिक परंपरा के कुछ मतभेदों के कारण उपस्थित न होने का निर्णय लिया, जो उनके वैदिक शुद्धता के प्रति आग्रह को दर्शाता है।
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने पुरी में चल रहे जगन्नाथ मंदिर हेरिटेज कॉरिडोर प्रोजेक्ट पर भी कई सवाल उठाए और सरकार से स्पष्टता की मांग की। उनके अनुसार, तीर्थ स्थलों का आधुनिकीकरण करते समय उनकी पवित्रता और परंपरा का ध्यान रखना आवश्यक है। उनकी सुरक्षा भी चर्चा में रही है और हाल ही में उनकी सुरक्षा को Z+ श्रेणी में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई।