कश्मीर के श्रीनगर में स्थित रौजाबल इमारत ईसाई धर्म के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र माना जाता है। यह वही जगह है जिसके बारे में वर्षों से दावा किया जाता रहा है कि यहां ईसा मसीह की कब्र मौजूद है। आधिकारिक रिकॉर्ड इसे एक मुस्लिम संत यूजा आसफ का मजार बताते हैं लेकिन कई विदेशी लेखक, रिसर्चर और पर्यटक मानते हैं कि सूली से बचने के बाद ईसा मसीह ने अपनी आखिरी जिंदगी कश्मीर में बिताई थी। विवादों और मान्यताओं के बीच यह साधारण-सी इमारत अब रहस्य, आस्था और उत्सुकता का केंद्र बन चुकी है, जहां हर साल अनगिनत लोग इस दावे की सच्चाई जानने पहुंचते हैं।

 

क्या ईसा मसीह की कब्र कश्मीर में है? यह सवाल कई वर्षों से लोगों के बीच चर्चा का विषय है। यह मजार श्रीनगर के पुराने इलाके में मौजूद रौजाबल नाम से जाना जाता है। यह इलाका सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील रहता है इसलिए यहां अक्सर सेना की गश्त लगती रहती है और कई बार पत्थरबाजी या मुठभेड़ की घटनाएं भी हो जाती हैं।

 

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क्या है ईसा मसीह की कब्र मानी जाने वाली इमारत की खासियत?

रौजाबल कोई भव्य जगह नहीं, बल्कि पत्थरों से बनी बहुत साधारण-सी इमारत है। यह देखने में एक साधारण से घर की तरह लगता है। अंदर लकड़ी से बना एक कमरा है, जिसमें जालीदार खिड़कियों के बीच हरे कपड़े से ढकी एक कब्र दिखाई देती है।

आखिर यह दावा क्यों होता है?

कुछ ईसाई लेखक और 'द विन्ची कोड' जैसे सिद्धांतों पर विश्वास करने वाले लोग कहते हैं कि यह कब्र नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह की है। उनका मानना है कि सूली से बचने के बाद वह भारत आए और यहां आकर कश्मीर में बस गए लेकिन आधिकारिक रूप से यह मजार एक मुस्लिम संत यूजा आसफ का माना जाता है। रौजाबल की देखभाल करने वाले परिवार भी इसी बात पर जोर देते हैं कि यह कब्र ईसा की नहीं, बल्कि एक सूफी संत की है।

लोकप्रियता कैसे बढ़ी?

स्थानीय लोग बताते हैं कि एक विदेशी प्रोफेसर ने इस जगह को ईसा मसीह की कब्र बताया था, जिसके बाद दुकानदारों ने इसे पर्यटकों को आकर्षित करने का जरिया मान लिया। स्थिति तब और बदल गई जब प्रसिद्ध ट्रैवल गाइड Lonely Planet ने इसका जिक्र कर दिया। इसके बाद यहां बड़ी संख्या में विदेशी आने लगे और कई लोग इसे अपनी 'मस्ट-विजिट' जगहों की लिस्ट में शामिल करने लगे।

 

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ईसा मसीह से जुड़े स्थानीय किस्से

कश्मीर और हिमालयी इलाकों में ईसा मसीह को लेकर कई किस्से पहले से प्रचलित थे। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ियों पर मौजूद एक पुराने बौद्ध स्थल के बारे में कुछ लोग दावा करते हैं कि लगभग 2000 साल पहले वहां एक बौद्ध सम्मेलन हुआ था, जिसमें ईसा भी शामिल हुए थे। हालांकि, इतिहासकार इन दावों को सही नहीं मानते।

 

यह सारी कहानियां 19वीं सदी के उन प्रयासों का हिस्सा थीं, जब कुछ विद्वान बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म के बीच समानताएं खोजने की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा ईसा मसीह की 12 से 30 वर्ष की उम्र तक की जिंदगी के बारे में बाइबिल में कम जानकारी होने की वजह से कई लोग मानते हैं कि वह उस समय भारत आए होंगे। हालांकि, ये बातें केवल मान्यताएं हैं, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सका है।