चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक और देश के चर्चित रामकथा प्रवक्ता रामभद्राचार्य एक बार फिर सुर्खियों के केंद्र में हैं। उन्होंने वाइफ की नई परिभाषा बताई जिस पर बवाल हो गया। उन्होंने वाइफ का पूरा नाम 'वंडरफुल इंस्ट्रूमेंट फॉर एंजॉय' बता दिया। उन्होंने वाइफ को मनोरंजन का साधन बता दिया। सिर्फ यही नहीं हाल ही में हुए राम मंदिर के ध्वजारोहण में उन्हें न्योता नहीं मिला तो नाराज हो गए। रामभद्राचार्य ने प्रधानमंत्री मोदी से नाराजगी जताई है।  जन्म से नेत्रहीन होने के बावजूद अपनी स्मरण-शक्ति, संस्कृत शास्त्रों पर गहरी पकड़ और ओजपूर्ण प्रवचनों से लाखों अनुयायियों को प्रेरित करने वाले रामभद्राचार्य को सनातन परंपरा का मजबूत स्तंभ माना जाता है। 

 

अयोध्या, दिल्ली, लखनऊ से लेकर तमिलनाडु तक, रामभद्राचार्य के बयान धर्म की रक्षा, रामचरितमानस की गरिमा, जातीय संदर्भों की व्याख्या, आरक्षण प्रणाली पर टिप्पणी और सनातन विरोधी राजनीति के प्रतिरोध से जुड़े रहे हैं। यही वजह है कि समाज के अलग-अलग वर्ग, राजनीतिक दल और संत समाज का एक हिस्सा भी कई मौकों पर उनके बोल को लेकर आमने-सामने आया है।

 

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रामंदिर ध्वजारोहण में क्यों नहीं गए रामभद्राचार्य?

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के बाद आज 25 नवंबर को ध्वजारोहण किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धर्म ध्वज को मंदिर के शिखर पर फहराया है। पीएम मोदी के अलावा संघ प्रमुख मोहन भागवत और कई क्षेत्रों के लगभग 8 हजार से ज्यादा लोग इस समारोह में शिरकत किए। इस कार्यक्रम में बाबरी मस्जिद के पूर्व पक्षकार रहे इकबाल अंसारी को भी बुलाया गया लेकिन जगतगुरु रामभद्राचार्य को निमंत्रण नहीं दिया गया जिस पर उन्होंने अपनी नाराजगी जताई। 

 
एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में रामभद्राचार्य ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मंदिर के निर्माण के लिए हम लोगों ने बलिदान दिया लेकिन आज जो लोग सवाल उठा रहे हैं उन्होंने आंदोलन में कभी हिस्सा नहीं लिया। पीएम मोदी ने धर्म ध्वज फहराया है। रामभद्राचार्य, खुद को प्रधानमंत्री मोदी का दोस्त बताते हैं। दोस्त के कार्यक्रम में न बुलाने को लेकर उन्होंने नाराजगी जाहिर की। 

 

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रामभद्राचार्य से जुड़े बयान

शूद्रों को लेकर दिए बयान पर विवाद

 

उन्होंने एक भाषण में शूद्र समाज को लेकर टिप्पणी की, जिसे कुछ दलित संगठनों ने अपमानजनक बताया। इसे लेकर दलित और सामाजिक संगठनों के साथ तीखी बहस हुई। आलोचकों ने कहा कि उनका बयान जातिगत भेद को बढ़ाता है, जबकि समर्थक बोले, उन्होंने शास्त्र संदर्भ में बात कही, किसी समाज को नीचा दिखाने के लिए नहीं।

रामचरितमानस को लेकर राजनीतिक टकराव

जब कुछ नेताओं (जैसे यूपी के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य) ने रामचरितमानस को 'द्वेष फैलाने वाला ग्रंथ' कहकर उस पर प्रतिबंध जैसी टिप्पणी की, तब रामभद्राचार्य ने उनका खुलकर विरोध किया और कड़े शब्दों में आलोचना की।

इससे धर्म बनाम राजनीति की बहस शुरू हुई थी।

सनातन धर्म विरोधी बयान पर विवाद

तमिलनाडु के मंत्री उदय निधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर टिप्पणी की तो रामभद्राचार्य ने उन्हें सार्वजनिक मंचों से धर्म विरोधी सोच फैलाने वाला बताया।

जवाब में कुछ राजनीतिक समूहों ने कहा कि वह राजनीति में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जबकि वह खुद संत हैं।

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में 'सेकेंड लाइन' सीट पर नाराजगी

2024 में अयोध्या राम मंदिर समारोह के दौरान, उन्हें मंच के मुख्य हिस्से में न बिठाए जाने की चर्चा हुई। मीडिया में इसे 'अपमान' के रूप में चलाया गया। समर्थक बोले कि यह व्यवस्था त्रुटि थी, आलोचकों ने इसे संतों के बीच पद-प्रतिष्ठा की राजनीति से जोड़ दिया।

कथित तौर पर ‘मुस्लिम समाज को लेकर’ विवादित बयान की चर्चाएं

अलग-अलग मौकों पर उनके कुछ बयान को मुस्लिम संगठनों ने आपत्तिजनक कहा है।