भारत में देवी-देवताओं के कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनसे जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक हैं शनि देव। हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय देवता के रूप में पूजा जाता है और देश के विभिन्न हिस्सों में उनके कई प्रसिद्द मंदिर स्थापित हैं। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के स्थित प्राचीन शनि मंदिर।
उत्तरकाशी के खरसाली गांव में स्थित शनि देव के इस मंदिर को सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। यह मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्द है, बल्कि अपनी अनूठी स्थापत्य कला और पौराणिक कथाओं के लिए जाना जाता है। खरसाली गांव यमुना नदी के पास स्थित है और यह मंदिर यमुनोत्री धाम के रास्ते में पड़ता है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।
मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
भगवान शनि देव का यह मंदिर प्राचीन काल से यहां स्थित है। मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। लेकिन कुछ इतिहासकार बताते हैं कि इस शनि मंदिर का निर्माण 7वीं या 8वीं शताब्दी में होने का अनुमान है। यह मंदिर हिमालयी स्थापत्य शैली में बना है, जिसमें लकड़ी और पत्थरों का विशेष उपयोग किया गया है। पांच मंजिला इस मंदिर अत्यधिक भूकंप-रोधी माना जाता है और इसे आज तक किसी प्राकृतिक आपदा से कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।
इस प्राचीन मंदिर में शनि देव की काले पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित है। उनके साथ नाग देवता और देवी यनुमान की मूर्ति रखी जाती है। इसके साथ इस मंदिर में एक अखंड ज्योति भी प्रज्वलित है, जिससे जुड़ी एक मान्यता है कि शनिवार के दिन इस अखंड ज्योति के दर्शन से व्यक्ति के भी कष्ट दूर हो जाते हैं।
भाई से मिलने आती हैं बहन यमुना
मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख कथा यह है कि जब यमुना देवी यमुनोत्री क्षेत्र में निवास करती हैं, तो उनके भाई शनि देव खरसाली गांव में विराजमान होते हैं। हर साल अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने से पहले, यमुना देवी की डोली खरसाली गांव लाई जाती है। शनि मंदिर में देवी की विशेष पूजा-अर्चना होती है और फिर उनकी यात्रा शुरू होती है। मान्यता यह भी है कि खरसाली में शनि देव हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और जो लोग पूर्णश्रद्धा भाव से उनकी उपासना करते हैं, उन्हें भय, बाधाओं और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।