हिंदू धर्म में अमावस्या व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। वैशाख अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है, जो अमावस्या के रूप में जानी जाती है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ और फलदायक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ करने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं, कब है वैशाख अमावस्या और इस दिन का महत्व।

वैशाख अमावस्या तिथि 2025

वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि 27 अप्रैल सुबह 04 बजकर 45 मिनट पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 28 अप्रैल रात्रि 01 बजकर 05 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में वैशाख अमावस्या व्रत 27 अप्रैल 2025, रविवार के दिन रखा जाएगा। इस अश्विनी नक्षत्र और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है, जिसे पूजा-पाठ के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है। 

 

यह भी पढ़ें: यमुनोत्री धाम: चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव, देवी यमुना और यमराज की कथा

वैशाख अमावस्या पूजा

वैशाख अमावस्या का संबंध पितृ देवता, भगवान विष्णु और पीपल वृक्ष से जोड़ा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है।

पूजा-पाठ कैसे की जाती है?

स्नान और दान का महत्व: इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा, यमुना या किसी भी तीर्थ स्थल पर स्नान करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। स्नान के बाद जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जल, गौ दान, तिल और दक्षिणा देने का विशेष महत्व है।

 

पितरों का तर्पण: इस दिन जल में तिल मिलाकर पितरों का तर्पण किया जाता है और उन्हें श्रद्धा से स्मरण कर शांति की प्रार्थना की जाती है।

 

यह भी पढ़ें: पंच बदरी: बद्रीनाथ से वृद्ध बद्री तक, ये हैं भगवान विष्णु के 5 रूप

 

विष्णु पूजा: भगवान विष्णु को तुलसी पत्र, जल और पंचामृत से स्नान कराकर पूजा की जाती है। ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करना शुभ होता है।

 

पीपल पूजन: पीपल के वृक्ष की पूजा कर उसकी परिक्रमा करने से सौभाग्य, स्वास्थ्य और सुख-शांति मिलती है। महिलाएं इस दिन पीपल वृक्ष को जल चढ़ाकर कच्चा सूत बांधती हैं।

वैशाख अमावस्या का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितरों की आत्मा को तर्पण प्रदान करने से शांति मिलती है, जिससे पितृ दोष दूर होता है और कुल में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही यह दिन दान-पुण्य के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है। खासतौर पर तिल और जल का दान करने से सौ गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है। एक मान्यता यह भी है कि इस खास दिन पर विष्णु पूजा और तीर्थ स्नान से आत्मा को शुद्धि मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्खुल जाता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।