गोस्वामी, वृंदावन:-
वृंदावन धाम ठाकुरजी का निज धाम है, तीर्थ नहीं है। भगवान कहते हैं कि पंचकोसीय ब्रज मेरा हृदय है। उनकी कुदृष्टि श्रीबांके बिहारी मंदिर और यहां की 600 साल पुरानी परंपराओं को विकास के नाम पर नष्ट करने की है। वृंदावन की कुंज गलियां, वृंदावन की आत्मा हैं, इन्हें तोड़ने की कोशिश हो रही है। यह हमारी आत्मा पर प्रहार है।
काशी विश्वनाथ और विंध्याचल कॉरिडोर की तरह उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, अब वृंदावन में बांगे बिहारी कॉरिडोर बनाना चाहती है। वृंदावन, नंदगांव से लेकर बरसाना तक, इस प्रस्तावित कॉरिडोर से लोग नाराज हैं। लोगों का कहना है कि वृंदावन की इन संकरी गलियों में भगवान आत्मा बसती है, उसे विकास के नाम पर तोड़ने की साजिश रची जा रही है। वृंदावन शहर की प्राचीनता, पुराने भवन, मंदिर और ब्रज के लोग ही वृंदावन की महत्ता बढ़ाते हैं, सरकार इन्हें ही हटाने की कोशिश कर रही है। श्रीजी मंदिर से लेकर बांके बिहारी मंदिर तक से जुड़े लोगों और सेवायतों ने इस कॉरिडोर का विरोध किया है।
बाकें बिहारी मंदिर के गोस्वामी परिवार की महिलाएं मंदिर पर प्रदर्शन कर रही हैं। उनकी हाथों में तख्तियां हैं, उनका कहना है कि कॉरिडोर नहीं चाहिए। बृज की सांस्कृतिक विरासत के लिए हम लड़ेंगे। कैसा विकास है जो सबका विनाश कर रहा है।
गोस्वामी परिवार का कहना है कि वृंदावन कॉरिडोर प्रोजेक्ट को किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जाएगा। यह स्थानीय हितों के खिलाफ है। अगर इसके लिए बलिदान देना पड़ा तो वह भी देंगे। सरकार जमीन अधिग्रहण करना चाहती है, अगर इस मांग पर सरकार अडिग है तो पहले हमें इच्छामृत्यु दे दे। सरकार ठाकुर जी छीन रही है, ठाकुर जी के बिना गोस्वामी परिवार का अस्तित्व नहीं है।
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वृंदावन कॉरिडोर क्या है?
वृंदावन कॉरिडोर या बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर अब यूपी सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। कॉरिडोर के केंद्र में बांके बिहारी मंदिर है। मंदिर के आस पास कुंज गलियां हैं, जिन्हें कॉरिडोर बनाने के लिए तोड़ा जाएगा। परियोजना का मकसद काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर गलियारा तैयार करना है, जिससे भीड़ नियंत्रित रहे, श्रद्धालुओं को सुविधा मिले और धार्मिक पर्यटन ज्यादा सुगम हो।
कॉरिडोर कैसा होगा?
- कॉरिडोर लगभग 5 एकड़ क्षेत्र में बनाया जाएगा।
- दो मंजिला संरचना होगी, तीन प्रवेश द्वार होंगे।
- यह मंदिर को यमुना नदी से जोड़ेगा।
- परियोजना में 37,000 वर्ग मीटर की पार्किंग होगी।
- काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह गलियारा बनेगा।
कैसे बनेगा कॉरिडोर?
उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए 502 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया है। मंदिर के कोषागार से 500 करोड़ रुपये का इस्तेमाल जमीन अधिग्रहण के लिए किया जाएगा। कॉरिडोर का प्रबंधन एक ट्रस्ट की ओर से किया जाएगा। सरकार ने इसका गठन एक अध्यादेश के तहत किया है।
कॉरिडोर बनने के तर्क क्या हैं?
मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। होली और जन्माष्टमी पर यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है। वृंदावन की गलियां तंग हैं, भीड़भाड़ ज्यादा हो जाती है, भगदड़ की आशंका बनी रहती है, पुलिस के सामने सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने की भी चुनौती होती है। योगी सरकार का दावा है कि कॉरिडोर से भगवान का दर्शन सुलभ होगा, तीर्थयात्रियों को आसानी होगी, अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। धार्मिक पर्यटन को नई गति मिलेगी।
गोस्वामी परिवार नाराज क्यों है?
गोस्वामी परिवार, बांके बिहारी के सेवायत हैं। वे बांके बिहारी मंदिर को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। उनके साथ स्थानीय निवासी, व्यापरी भी कॉरिडोर का विरोध कर रहे हैं। गोस्वामी परिवार का कहना है कि अगर नई व्यवस्था आई तो वह ठाकुर की सेवा से वंचित हो जाएंगे। प्राचीन कुंज गलियां नष्ट हो जाएंगी। उनका मानना है कि वृंदावन की इन गलियों का अस्तित्व युगों से है। गलियां भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हैं, इनके मूल स्वरूप को नहीं छेड़ा जाना चाहिए। लोग इन्हें, वृंदावन की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का हिस्सा मानते हैं।
सरकार या गोस्वामी परिवार, किसके हैं ठाकुर जी?
गोस्वामी परिवार का एक तर्क यह भी है कि वृंदावन का इतिहास 5,500 साल से ज्यादा पुराना है, यहां की धरोहर को नष्ट करना ठीक नहीं है। गोस्वामी समुदाय का बाकें बिहारी मंदिर पर हक है। मंदिर उनकी निजी संपत्ति है। सरकार निजी संपत्ति में हस्तक्षेप कर रही है, यह अनुचित है। गोस्वामी परिवार का यह भी कहन है कि अगर सरकार मंदिर और मंदिर की संपदा चाहती है तो वे इसे दान में दे देंगे लेकिन अपने ठाकुर जी को लेकर चले जाएंगे।
बांके बिहारी मंदिर की संपत्ति को लेकर गोस्वामी समाज और यूपी सरकार के बीच विवाद चल रहा है। गोस्वामी परिवार, संत स्वामी हरिदास के वंशज हैं। वे मंदिर को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। मंदिर की मूर्ति करीब 500 साल पुरानी है। ऐसी मान्यता है कि 'श्री बांके बिहारी' की मूर्ति, उनकी तपस्या की वजह से विराजमान हुई थी। राधा रानी भी इसी स्वरूप में विराजती हैं। संत हरिदास के भाई के तीन बेटे हुए। परिवार बढ़ा तो बंटवारा हुआ। बांके बिहारी के सुबह का ऋंगार भोग, दोपहर के राजभोग और शाम के शयनभोग सेवा का भी बंटवारा हो गया।

हरिदास के बाद जो संतानें हुईं, उन्हें गोस्वामी कहा गया। इन्हें गोस्वामी कहा गया। ये बांके बिहारी की सेवायत हैं। इन्हीं सेवायतों ने विरोध किया है। जिस पुत्र की संतानों को ऋंगारभोग की जिम्मेदारी मिली थी, उनका वंश खत्म गया था। अब राजभोग और शयनभोग के सेवायत मिलकर ऋंगारभोग लगाते हैं। गोस्वामी परिवा का दावा है कि मंदिर की जमीन और पूजा-पाठ पर उनका ऐतिहासिक अधिकार है। दूसरी ओर, सरकार मंदिर को सार्वजनिक सुविधा के लिए विकसित करना चाहती है।
साल 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर की 1.15 एकड़ जमीन बिहारी जी सेवा ट्रस्ट के नाम दर्ज की थी। यह जमीन गोविंददेव के नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है। साल 2025 में सरकार ने 'श्री बांके बिहारी मंदिर न्यास' बनाया और अभी केस सुप्रीम कोर्ट में है। कुछ दस्तावेजों में जिक्र है कि मंदिर 151 साल पहले राजा बदन सिंह बाग के बाग में बना था। परंपरा के हिसाब से ठाकुर जी, गोस्वामी परिवार के हैं।
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कैसे चलता है मंदिर का कामकाज?
मंदिर प्रबंधन में 7 सदस्यीय समिति शामिल है है। गोस्वामी लोग समिति में दो राजभोग सेवा अधिकारी और शयन भोग सेवा अधिकारी चुनते हैं। चार सदस्य तीन दूसरे गैर गोस्वामी सदस्यों को चुनते हैं। साल 2016 में एक सदस्य के इस्तीफे के बाद कोर्ट में एक और विवाद चल रहा है। अभी मथुरा की ओर से नियुक्त एक प्रशासक के कंधों पर प्रबंधन की जिम्मेदारी है।
वृंदावन कॉरिडोर को लेकर लोग क्यों डरे हैं
- कॉरिडोर के लिए 5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होगा
- 300 से ज्याद मंदिरों, घरों और दुकानों को तोड़ना पड़ेगा
- स्थानीय लोग बेघर होंगे, व्यापारियों की आजीविका प्रभावित होगी
- मुआवजे के वादे को लेकर वहां के लोग संशय में हैं
'परंपरा' पर भी खतरा महसूस कर रहा है गोस्वामी समाज
गोस्वामी समाज को डर है कि अगर ट्रस्ट का गठन हो गया तो मंदिर में उन्हें ठाकुर जी की सेवा से वंचित कर दिया जाएगा। प्रबंधन अधिकार छिन जाएंगे और सरकार, अपने मन से प्रबंधकों और पुजारियों की नियुक्ति करेगी। मंदिर में ठाकुर जी का पूजन गोस्वामी परंपरा से होता है, अगर राधा वल्लभ या किसी और संप्रदाय के संत को ये जिम्मेदारियां दी गईं तो सदियों की परंपराएं खत्म हो जाएंगी। गोस्वामी परिवार का कहना है कि बिना उनकी सहमति के ही यह योजना थोपी जा रही है।
कॉरिडोर के विरोध में क्या कर रहा है परिवार?
गोस्वामी परिवार की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग धरने पर हैं। हाथों में तख्तियां हैं, कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक केस पहुंच गया है। गोस्वामी परिवार के ही लोगों ने आत्मदाह की धमकी दी है। साल 2023 में जब कॉरिडोर की कवायद शुरू हुई थी, तब भी सीएम योगी को लोगों ने चिट्ठियां लिखी थीं।
विपक्षी दलों के नेता भी गोस्वामी परिवार के समर्थन में बातें कह रहे हैं। यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा है कि बीजेपी धार्मिक स्थल तोड़ रही है।
वृंदावन कॉरिडोर की जरूरत क्यों पड़ी?
19 अगस्त 2022। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा था। अचानक भारी भीड़ हुई तो भगदड़ मच गई। मंगला आरती से पहले मंदिर में क्षमता से 10 गुना ज्यादा श्रद्धालु जमा हो गए, जिसकी वजह से हालात बेकाबू हो गए। भीड़ और गर्मी की वजह से लोग बेहोश होने लगे, 2 लोगों की भगदड़ में मौत हो गई, कई घायल हुए। मांग उठी कि वृंदावन में ऐसी स्थिति दोबारा न होने पाए, इसके लिए कॉरिडोर बनना चाहिए।
वृंदावन प्रशासन पर सवाल उठे तो आंच योगी आदित्यनाथ तक भी पहुंची। विपक्ष ने उन्हें हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराया। सीएम योगी ने जांच के लिए पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह की अध्यक्षता में 2 सदस्यीय कमेटी बनाई। रिपोर्ट सामने आई तो भीड़ कुप्रबंधन और मंदिर परिसर की क्षमता पर सवाल उठे। कमेटी ने कॉरिडोर बनाने की सिफारिश की, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया।
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कोर्ट का रुख क्या है?
वृंदावन कॉरिडोर पर इलाहाबाद हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाएं दायर की गई हैं। साल 2022 में
20 दिसंबर 2022 को हाई कोर्ट ने कॉरिडोर के लिए सर्वेक्षण का आदेश दिया था। मथुरा के जिलाधिकारी ने 8 सदस्यों की कमेटी बनाकर 200 से अधिक भवनों का सर्वे किया था। 8 नवंबर 2023 को हाई कोर्ट ने यूपी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को मंजूरी दी लेकिन मंदिर की निधि के इस्तेमाल पर रोक लगाई।
सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या है?
15 मई 2025 को सुप्रीम ने हाई कोर्ट के 8 नवंबर 2023 के आदेश को संशोधित किया और मंदिर के खजाने से 500 करोड़ रुपये का इस्तेमाल, जमीन अधिग्रहण के लिए करने की इजाजत दी। शर्त यह रखी है कि जमीन ठाकुर बांके बिहारी जी के नाम पर ही रहे। कोर्ट ने सरकार से 26 मई के अध्यादेश की कॉपी और हलफनामा मांगा है। अगली सुनवाई 29 जुलाई 2025 को होगी।
गोस्वामी समाज के वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि मंदिर की निजी संपत्ति और पूंजी का इस तरह उपयोग नहीं किया जा सकता। फैसले के बाद कपिल सिब्बल ने कहा कि उनका पक्ष सुने बिना फैसला लिया गया है।