हिंदू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य देव एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उस दिन को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। बता दें कि साल में 12 संक्रांति पर्व मनाएं जाते हैं, जिनका अपना एक विशेष स्थान हैं। पंचांग के अनुसार, जाब सूर्य मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस दिन को वृषभ संक्रांति कहा जाता है। यह संक्रांति हर वर्ष मई महीने में आती है और धार्मिक रूप से अत्यंत पावन मानी जाती है। इस दिन सूर्य का राशि परिवर्तन न केवल खगोलीय दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है, बल्कि इसका आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व भी गहरा होता है।

वृषभ संक्रांति का धार्मिक महत्व

वृषभ संक्रांति को दक्षिण भारत में विशेष रूप से पेरू संक्रांति और रिषभ संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह संक्रांति कृषि, दान-पुण्य और सूर्य उपासना से जुड़ी हुई मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य, स्नान और तप का विशेष फल मिलता है। यह समय गर्मी के मौसम की तीव्रता के साथ आता है, इसलिए शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए जल, अन्न और वस्त्र का दान करने की परंपरा है।

 

यह भी पढ़ें: रिटायरमेंट के बाद विराट कोहली को प्रेमानंद बाबा ने क्या संदेश दिया?

वृषभ संक्रांति की पूजा विधि

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी या घर पर ही गंगाजल मिले पानी से स्नान करना शुभ माना जाता है। स्नान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाया जाता है और 'ॐ सूर्याय नमः' मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दिया जाता है।

 

इसके पश्चात भगवान विष्णु, सूर्य देव और पितरों की पूजा की जाती है। धूप-दीप, पुष्प, तिल और गंध से पूजा करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को अन्न, जल, वस्त्र, छाता, चप्पल और पंखा आदि गर्मी से राहत देने वाली वस्तुओं का दान करना पुण्यकारी माना गया है।

 

यह भी पढ़ें: शनि शिंगणापुर मंदिर का इतिहास, जहां स्वयं शनि देव कहे जाते हैं रक्षक

पालन करने योग्य नियम

  • सत्कर्म करें- इस दिन अपशब्द का इस्तेमाल, झूठ बोलना, क्रोध और किसी को अपमानित करने से बचना चाहिए।
  • दान अवश्य करें- विशेष रूप से जल, सत्तू, फल, खड़ाऊं, छाता, कपड़ा, तिल, घी और शरबत जैसे ठंडे पदार्थों का दान करना बहुत शुभ होता है।
  • शुद्ध आहार लें- व्रत रखने वाले इस दिन सात्विक भोजन करें और अनावश्यक खानपान से बचें।
  • सूर्य उपासना करें- सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ-साथ सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • पितृ तर्पण- पितरों के निमित्त जल अर्पण और भोजन का दान करना भी उत्तम होता है।

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।