भारत के ईसाई इतिहास से जुड़ा एक अहम तथ्य हमेशा लोगों के मन में आता रहता है। देश में सबसे पुराने चर्च को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं, यह चर्च कहां है, कब बना और इसके पीछे किसका योगदान है? इसी चर्चा के केंद्र में है दक्षिण भारत, जहां माना जाता है कि ईसा मसीह से प्रेरित संत थॉमस पहली बार 52 ईस्वी में पहुंचे थे। यही वजह है कि भारत के सबसे पुराने ईसाई समुदाय और चर्च-परंपरा की शुरुआत भी यहीं से मानी जाती है।

 

दिलचस्प बात यह है कि जहां केरल के पालयूर और कोडुंगल्लूर जैसे स्थान 2000 साल पुरानी ईसाई परंपरा के साक्षी माने जाते हैं, वहीं भारत में आज भी मौजूद सबसे पुरानी चर्च इमारतों में चेन्नई का सैन थोमे बेसिलिका (सेंट थॉमस बेसिलिका) चर्च का नाम शामिल हैं, जिसे 16वीं सदी में बनाया गया था।

 

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सबसे पुराना ईसाई समुदाय/ चर्च-स्थल 

क्या कहा जाता है: प्राचीन क्रिश्चियन परंपरा के अनुसार, प्रेरित संत थॉमस भारत आए थे - परंपरा कहती है कि वह लगभग सन् 52 ईस्वी के आसपास केरल के तटीय इलाकों में पहुंचे और वहां उन्होंने कई समुदायों की नींव रखी। इन्हें आम तौर पर 'मलबार (या सेंट थॉमस) क्रिश्चियन' कहा जाता है।

 

कहां-कहां के दावे हैं: पारंपरिक रूप से यह स्थान 1st-century चर्च-स्थलों में प्रमुख हैं - पालयूर, कोडुंगल्लूर/क्रंगनोर, कॉट्टक्कावु/परवूर और मायलापुर, ये सारी जगहें चेन्नई का हिस्सा हैं।

 

इसका क्या मतलब है: इन स्थानों पर ईसाई धर्म की परंपरा बहुत पुरानी मानी जाती है, यानी यहीं पर ईसाई समुदाय की स्थापना सबसे पुरानी मानी जाती है। (पहला ईसाई अनुयायी समुदाय दक्षिण भारत में)।

 

ध्यान देने वाली बात: ये परंपरागत ऐतिहासिक दावे हैं, कई विद्वान और पुरातात्त्विक सबूत सीमित होने की वजह से इनकी तारीखें परंपरा और कथा पर निर्भर हैं। कई बार पुराने मंदिर-जैसे स्थल पर बाद में चर्च बने या पुनर्निर्माण हुआ। इसलिए ठोस इमारती साक्ष्य हर जगह नहीं मिलता।

 

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सबसे पुराना बचा हुआ चर्च भवन, परिस्थिति और प्रमुख दावे

असल में भारत में कई चर्च बार-बार बन और बिगड़ चुके हैं कई पुराने स्थानों पर बाद में पुर्तगाली/डच/ब्रिटिश ने नए चर्च बनवाए। इनमें प्रमुख और सबसे पुराने चर्चों में ये चर्च माने जाते हैं।

सेंट थॉमस बेसिलिका/सेंट थोमै, मायलापुर (चेन्नई)

क्यों महत्वपूर्ण: मायलापुर की सेंट थोमै परंपरा के अनुसार, यह वही जगह है जहां संत थॉमस का मार्ग और अवशेष जुड़ा माना जाता है। आधुनिक सैन थोमे बेसिलिका की इमारत 16वीं-17वीं शताब्दी के पुर्तगालियों और बाद में अंग्रेजों की मरम्मत की देन है।

 

जो आज का रोमन-कैथोलिक बेसिलिका दिखता है, उसका मूल पुर्तगाली-निर्माण 1523 के आसपास का माना जाता है, वर्तमान गॉथिक पुर्ननिर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ है। इसलिए यह प्राचीनता के मामले में सबसे पुराना 'स्थायी यूरोपीय-निर्मित चर्च' कहा जा सकता है।

केरल के पारंपरिक पुराने चर्च 

क्यों महत्वपूर्ण: ये स्थल उन स्थानों में गिने जाते हैं जहां सेंट थॉमस ने पहली बार उपदेश किया और छोटे-छोटे समुदायों का गठन हुआ। वहां अक्सर प्राचीन पारंपरिक गिरिजाघर (या उनकी साइट) मानी जाती है।