पंचायती अखाड़ा निरंजनी ने म्यामांर में सनातन धर्म और संस्कृति के प्रचारक विवेकानंद गिरि को महामंडलेश्वर का पद दिया है। महाकुंभ में धार्मिक आध्यात्मिक और सनातन संस्कृति के समागम में लाखों की संख्या में साधु संतों को पद दिए जाते हैं। इन पदों में महामंडलेश्वर, पीठाधीश्वर, कथावाचक श्री महंत और अखाड़ों के अध्यक्ष शामिल हैं।
महाकुंभ में हजारों की संख्या में लोग साधु सन्यासी बनते हैं, वहीं पीठाधीश्वर और महामंडलेश्वर की उपाधि भी दी जाती है। श्रीपंचायती अखाड़ा निरंजनी ने म्यांमार में भारतीय सनातन संस्कृति धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए वहां के संत का पट्टाभिषेक कर उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया।
महामंडलेश्वर की पदवी मिलने के बाद उनकी जहां उनकी जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है। वहीं भारतीय सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार में उन्हें अब और अधिक सहूलियत और शक्ति भी प्राप्त हो गई। सनातन को मानने वाले ऐसे लोग जो दूसरे धर्मों को अपना चुके हैं, उनकी घर वापसी के लिए अब वह कोशिश करेंगे।
महामंडलेश्वर का पद क्यों मिला?
पंचायती अखाड़ा निरंजनी में म्यांमार से आए भारतीय मूल के संत स्वामी विवेकानंद गिरी का पट्टाभिषेक किया गया है। उन्हें महामंडलेश्वर की पदवी दी गई। महामंडलेश्वर बने संत विवेकानंद गिरि संस्कृत हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही नेपाली और म्यांमार की भाषा में भी प्रवचन करते हैं।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि दूसरे देशों में भी सनातन धर्म के प्रचार प्रसार करने के लिए विदेशों में रहने वाले संतों-महंतों को अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया जाता है। म्यांमार से महाकुंभ क्षेत्र आए स्वामी विवेकानंद गिरी ने बताया कि वह 35 साल से सनातन धर्म के लिए कार्य कर रहे हैं।
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कौन हैं विवेकानंद गिरि?
विकेनंद गिरि की पढ़ाई लिखी भारत में हुई है। 12वीं तक की पढ़ाई की है। वाराणसी आकर उन्होंने वैदिक शिक्षा ग्रहण की। वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की। उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा भागवत भूषण की उपाधि भी प्रदान की गई है। महामंडलेश्वर बने स्वामी विवेकानंद गिरि म्यांमार में रहने वाले अपने शिष्यों को भी वैदिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेजते रहते हैं।
विवेकानंद गिरि 12 साल की अवस्था में ही घर से विरक्त हो मंदिर में जाकर रहने लगे थे। वहीं से वेद-पुराण और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया। मंगलवार को आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद महाराज और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी के साथ अखाड़े से जुड़े संत-महंत समेत सैकड़ों भक्तों के बीच पट्टाभिषेक का कार्यक्रम किया गया।
म्यामांर के पहले महामंडलेश्वर हैं विवेकानंदर गिरि
महामंडलेश्वर विवेकानंद गिरी ने बताया कि वह म्यांमार के पहले महामंडलेश्वर बनाए गए हैं। अखाड़े की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए सनातन का प्रचार-प्रसार करेंगे। म्यांमार में रहने वाले करीब 10 लाख से अधिक भारतीयों को सनातन धर्म के प्रति जागरूक करेंगे। हिंदू देवी-देवताओं के साथ सनातन धर्म संस्कृति का म्यांमार में विस्तार करेंगे। वहां के लोगों को सनानत की शक्ति से अवगत कराएंगे।
म्यांमार में जगा रहे सनातन की अलख
महामंडलेश्वर बनने से पहले भी विवेकानंद गिरि वहां के मंदिर के साथ ही वेद विद्यालय और दूसरे धार्मिक संस्थान संचालित कर धर्म का प्रचार कर रहे हैं। अब महाकुंभ 2025 में संगम की रेती पर आकर सनातन के प्रचार प्रसार में लगे हैं। साथ ही संतों और गुरुजनों ने जो जिम्मेदारी उन्हें सौंपी है, उसे वे पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ निभाएंगे।
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किन्हें मिलता है महामंडलेश्वर का पद?
महामंडलेश्वर का पद सम्मानजनक और महत्वपूर्ण होता है। यह सम्मान उन संतों को दिया जाता है जो अपने धार्मिक जीवन सेवा और साधना में उच्चतम मानक स्थापित कर लेते हैं।
इस संबंध में आनंद अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि ने कहा कि अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनाने की प्राचीन परंपरा है। जो विशेष रूप से हिंदू साधु-संतों के बीच प्रचलित है।
अखाड़े के पंचपरमेश्वरों की ओर से तय किया जाता है कि किसे महामंडलेश्वर का पद दिया जाएगा। महामंडलेश्वर का पद सम्मानजनक और महत्वपूर्ण होता है, जो साधु-संतों के बीच विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यह सम्मान उन संतों को दिया जाता है जो अपने धार्मिक जीवन, सेवा और साधना में उच्चतम मानक स्थापित कर लेते हैं।