देशभर होली के लिए तैयार है। ब्रज से लेकर काशी तक, घाट-घाट पर होली की तैयारियां शुरू हो गई हैं। कहीं रंग-पिचकारी से सजी दुकानें नजर आ रही हैं, कहीं लोग गांव-गांव 'फागुआ' गा रहे रहे हैं। सबके सिर पर फगुनहट सवार है। लोगों को होली का जिक्र छिड़ते ही बरसाना, वृंदावन और काशी याद आती है लेकिन क्या आपको पता है कि कानपुर की होली भी बेहद खास होती है। कनपुरिया होली भी ब्रज की होली से जरा भी कम नहीं है। यहां होली सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि 7 दिनों तक बड़े ही उल्लास से खेली जाती है। आइए जानते हैं कनपुरिया होली किसने शुरू की और इसका इतिहास।
क्यों मनाई जाती है कनपुरिया होली?
कानपुर में होली सिर्फ एक दिन का त्योहार नहीं है, बल्कि यह पूरे सात दिनों तक धूमधाम से मनाई जाती है। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य समाज में भाईचारा बढ़ाना और हर वर्ग के लोगों को एक साथ जोड़ना है। कानपुर की होली में भव्य आयोजनों के साथ-साथ पारंपरिक होली मिलन समारोह भी होते हैं।
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यहां की होली खास इसलिए भी मानी जाती है क्योंकि यह केवल रंगों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें संगीत, भव्य जुलूस, ठिठोली, कवि सम्मेलनों और गंगा घाट पर विशेष आयोजन भी शामिल होते हैं। यह त्योहार कानपुरियों के दिन में एक खास स्थान रखता है और इसे पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
किसने शुरू की यह होली?
कहा जाता है कि कानपुर में इस अनोखी होली की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम के दौर में हुई थी। जब 1857 की क्रांति के बाद कानपुर ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, तब यहां के लोगों ने रंगों के त्योहार को क्रांति और एकजुटता के प्रतीक के रूप में मनाना शुरू किया। हालांकि, इस होली के शुरुआत के पीछे की कहानी और भी दिलचस्प है। बता दें कि अंग्रेजों के दौर में कानपुर के हटिया क्षेत्र के गुलाबचंद सेठ हर साल होली का भव्य आयोजन करवाते थे। साल 1942 में अंग्रेज अधिकारीयों ने इस होली को बंद करने का आदेश। जब गुलाबचंद सेठ ने मना किया तो उन्हें और उनके साथ कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस गिरफ्तारी ने जनता में आक्रोश पैदा कर दिया और धीरे-धीरे यह पूरे शहर में फैल गई। इसके बाद स्थानीय लोग, जिनमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों शामिल थे, ने मिलकर होली खेली। आंदोलन के इस अनोखे तरीके से अंग्रेज घबरा गए और गिरफ्तारी के 8 दिन बाद ही गुलाबचंद सेठ सहित सभी लोगों को छोड़ दिया। इसके बाद इस होली को हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा। इसके साथ कानपुर के प्रसिद्ध व्यवसायी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस होली को खास बनाने में योगदान दिया। इस शहर में होली का आयोजन न केवल मस्ती और उल्लास का माध्यम है, बल्कि यह लोगों को एक मंच पर लाकर समाज में समरसता भी बनाए रखता है।
होली सात दिन तक क्यों मनाई जाती है?
कानपुर की होली सिर्फ एक दिन में खत्म नहीं होती, बल्कि सात दिनों तक इसका आनंद लिया जाता है। हर दिन का एक अलग महत्व और अंदाज होता है।
- पहला दिन: होलिका दहन किया जाता है, जिसमें लोग लकड़ियां और उपले जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं।
- दूसरा दिन: रंगों की होली खेली जाती है, जहां लोग एक-दूसरे पर रंग और गुलाल डालते हैं।
- तीसरा दिन: पारंपरिक ठिठोली (मजाक और हंसी-ठिठोली) होती है, जिसमें लोग एक-दूसरे के ऊपर चुटकुले और हास्य व्यंग्य करते हैं।
- चौथा दिन: शहर में भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते चलते हैं।
- पांचवां दिन: कवि सम्मेलन और हास्य कवि सम्मेलन होते हैं, जहां हास्य से भरपूर कविताएं सुनाई जाती हैं।
- छठा दिन: गंगा घाट पर विशेष आयोजन होते हैं, जहां गंगा आरती के साथ होली का आनंद लिया जाता है।
- सातवां दिन: अंतिम दिन बड़े पैमाने पर सामूहिक भोज और होली मिलन समारोह आयोजित किए जाते हैं।
इस तरह, सात दिन तक चलने वाली यह होली कानपुर की पहचान बन चुकी है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
गंगा घाट पर होली का विशेष आयोजन
कानपुर की होली को खास बनाने में गंगा घाटों की भी अहम भूमिका है। कानपुर के सिद्धनाथ घाट, बूढ़ी घाट और सत्ती चौरा घाट पर हजारों लोग एकत्र होकर होली का आनंद लेते हैं, इसलिए इस होली को गंगा मेला के नाम भी जाना जाता है।
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यहां की होली का एक अलग ही आकर्षण है, जहां लोग गंगा में स्नान करके रंग खेलते हैं और फिर भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। घाटों पर होली खेलने का यह अंदाज कानपुर को एक विशेष पहचान देता है। गंगा घाट पर होलिका दहन के समय भव्य आरती का आयोजन भी किया जाता है, जो इस त्योहार को और भी पवित्र और दिव्य बना देता है।
कानपुर की होली का ऐतिहासिक महत्व
कानपुर की होली के पीछे एक रोचक ऐतिहासिक कहानी भी जुड़ी हुई है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, क्रांतिकारियों ने इस त्योहार का इस्तेमाल लोगों को एकजुट करने के लिए किया था। वे होली के अवसर पर एकत्र होकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की रणनीति बनाते थे।
1857 की क्रांति के बाद, कानपुर में होली का त्योहार और भी खास बन गया। इसे केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की भावना का प्रतीक माना जाने लगा। कानपुर की होली ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में एकता और साहस भरने का काम किया।