उत्तराखंड के बद्रीनाथ में स्थानीय लोग बीते 15 दिनों से धरने पर बैठे हैं। प्रदर्शनकारी बद्रीनाथ मास्टर प्लान प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं। प्रदर्शन में स्थानीय लोग, प्रसाद विक्रेता और कई होटल-रेस्टोरेंट संचालक भी उतरे हैं। लोगों ने विरोध में करीब 3 घंटे तक अपनी दुकानें बंद कर रहे हैं। उत्तराखंड की धामी सरकार ने केदरानाथ की तरह, बद्रीनाथ में भी मास्टर प्लान लागू किया है, जिसका लोग विरोध कर रहे हैं।|
धामी सरकार ने बद्रीनाथ मास्टर प्लान के लिए कुछ घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनकी आजीविका पर हमला किया जा रहा है। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना से पुरोहित वर्ग भी नाराज है। प्रदर्शनकारियों के हाथों में तख्तियां हैं, जिन पर लिखा है, 'सबका साथ सबका विकास, खाते रहो पुरोहित आवास।' कुछ ऐसा ही दुकानों के बारे में भी लिखा गया है।
क्यों सिर मुंडाने लगे प्रदर्शनकारी?
सरकार की इस योजना पर प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि अलकनंदा तट पर धड़ल्ले से हो रहा निर्माण, नदी के कटाव की वजह बन सकता है। रास्ते से कई शिलाओं को हटाया जा रहा है, जिन पर लोगों की आस्था है। उत्तराखंड सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में स्थानीय नागरिक, पुजारी, व्यापारी और सामाजिक संगठन तक आ गए हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि संस्कृति, पर्यावरण और आजीविका को तबाह कर रही हैं।
यह भी पढ़ें: पंच बदरी: बद्रीनाथ से वृद्ध बद्री तक, ये हैं भगवान विष्णु के 5 रूप
क्या चाहते हैं उत्तराखंड के लोग?
उत्तराखंड के बद्रीनाथ मास्टर प्लान पर स्थानीय लोग भी चिंता जता रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि योजना पर सरकार ने तो किसी से सलाह दी है, न ही पारदर्शिता का ख्याल रखा गया है। सरकार जिन घरों को तोड़ रही है, उनके लिए कोई पुनर्वास नीति तक तैयार नहीं हुई है। लोगों की दुकानों और घरों को प्रभावित किया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों ने विरोध में अपने सिर मुंडावा लिए।
लुसुन तोंडरिया, संयोजक, उत्तराखंड मूल निवास भू कानून समन्यवय संघर्ष समिति:-
बद्रीनाथ धाम में प्रस्तावित मास्टर प्लान की वजह से स्थानीय निवासियों और हक हकूकधारियों को सुनियोजित तरीके से बद्रीपुरी से हटाने की साजिश की जा रही है। उचित मुआवजे और ठोस पुनर्वास नीति के बगैर ही वहां के मूल निवासियों और तीर्थ पुरोहितों को हटाया जा रहा है।

शिलाओं को तोड़ने का भी हो रहा है विरोध
स्थानीय लोग इसलिए भी नाराज हैं कि सैकड़ों साल पुराने प्रतीकों को तोड़ा जा रहा है। बद्रीनाथ धाम मास्टर प्लान की रूट में पड़ने वाली सुग्रीव शिला को भी तोड़ दिया गया है। स्थानीय लोगों ने कहा था कि यहां लोगों ने मनाही की थी कि यहां विकास न करें। अब सुग्रीव शिला तोड़ी जा रही है। मान्यता है कि यहां त्रेता युग में लंका युद्ध के दौरान भागवान राम के मित्र सुग्रीव ने यहां तप किया था। यह शिला उसी स्मृति से जुड़ी है।
यह भी पढ़ें: चार धाम यात्रा केदारनाथ धाम; रजिस्ट्रेशन से पूजा फीस तक सब जानें
दीपक नेगी, अधिवक्ता:-
बद्रीनाथ का विनाशक मास्टरप्लान। कल यहां भी प्राकृतिक आपदा को न्योता देता डबल इंजन प्रशासन। आप यह क्यों नहीं समझते की भगवान ने यह दुर्गम स्थान चुना था। यह स्थान चुनने का कोई तो कारण रहा होगा। आपकी आस्था व्यापारिक हो सकती है, हम लोगों की नहीं।
बद्रीनाथ मास्टर प्लान क्या है?
बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यह धआम 3,133 मीटर की ऊंचाई पर है और चारधाम यात्रा का एक अहम पड़ाव है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। बद्रीनाथ में उत्तराखंड सरकार 181 करोड़ रुपये में नया शहर बसाना चाह रही है। इसे मिनी सिटी की तरह विकसित करने की योजना है। 85 हेक्टेयर में म्यूजियम, आर्ट गैलरी और देव दर्शन स्थल बनाने की तैयारी है। सरकार ने साल 2020 में इसका ऐलान किया था। सरकार केदारनाथ धाम की तरह इसे विकसित करना चाहती है।
सरकार की योजना है कि सभी पौराणिक और आध्यात्मिक जगहों को जोड़ दिया जाए, हिल कॉरिडोर बन जाए जिससे लोगों को आवाजाही में दिक्कत न हो। होम स्टे की व्यवस्थाएं शुरू हों, शीशनेत्रा और बद्रीश झील का विकास किया जाए। धाम के 5 वर्ग किलोमीटर के दायरे में आने वाले सभी तालाबों और एतिहासिक धर्मस्थलों का सुंदरीकरण किया जाए।
यहां अलकनंदा रिवर फ्रंट, प्लाजा, सामुदायिक क्लोकरूम, सड़कें और पार्किंग की व्यवस्था की जा रही है, जिससे लोग नाराज हैं। दशकों से बसे लोगों को हटाया जा रहा है, उनका कहना है कि उचित मुआवजा भी नहीं मिल रहा है। स्थानीय लोग मुआवजे और पुनर्वास से असंतुष्ट हैं।

पर्यावरणीय चिंताएं क्या हैं?
उत्तराखंड पर काम कर रहे भू वैज्ञानिकों ने कई बार आगाह किया है कि ऐसे कदम, विनाशकारी साबित हो सकते हैं। वैज्ञानिकों को डर है कि ग्लेशियल मिट्टी पर बसा इस शहर में कोई भी बड़ा निर्माण विनाशकारी साबित होता। जलवायु परिवर्तन की वजह से आए दिन बादल फट रहे हैं, भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। 1970 के दशक में सुंदर लाल बहुगुणा और अन्य सामाजिक संगठनों के आंदोलनों की वजह से ऐसी निर्माण योजनाएं रुकी थीं। अब एक बार फिर वही कवायद शुरू हुई है।
क्या उत्तराखंड को एक और सुंदर लाल बहुगुणा की जरूरत है?
पर्यावरण प्रेमियों को अब सुदंर लाल बहुगुणा की याद आ रही है। 21 मई 2021 को उनका निधन हुआ था। सुंदर लाल बहुगुणा को प्रकृति का रक्षक लोग बुलाते थे। उन्होंने दुनिया चिपको आंदोलन के लिए याद करती है। उन्होंने टिहरी बांध बनने का विरोध किया था। साल 1986 में उन्होंने टिहरी बांध विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। 1989 में भागीरथी नदी के किनारे कुटिया बनाकर वह रहने लगे थे। साल 1995 में उन्होंने 45 दिनों तक टिहरी बांध के खिलाफ उपवास किया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को उनकी बात सुननी पड़ी थी। टिहरी बांध के प्रभावों पर अध्ययन के लिए एक समिति भी बनी थी। उन्होंने एक बार 84 दिनों तक लगातार चलने वाले अनशन में हिस्सा लिया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक वह अनशन पर रहे, अपना सिर मुंडवाया और जेल तक गए। वह उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों में बढ़ते औद्योगीकरण के धुर विरोधी थे। वह अपने आंदोलनों की वजह से जेल भी गए थे। उनके कई सुझावों को सरकार ने भी माना था।