देश की प्रमुख जनजातियों में थारू की गिनती होती है। यह समुदाय उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार और नेपाल के तराई इलाके में बसा है। जीवन खेती-किसानी पर निर्भर है। 2012 में यूपी में अखिलेश यादव सरकार के समय इस समुदाय के कई लोगों को पुलिसिया कार्रवाई का सामना करना पड़ा। एक दशक से अधिक का समय बीत चुका है। आज भी बहुत से लोगों को पेशी पर जाना पड़ता है। अकेले लखीमपुर खीरी जिले में साल 2012 में थारू समुदाय के खिलाफ चार हजार से अधिक वन अपराध से जुड़े मामले दर्ज हैं।
लखीमपुर खीरी की पलिया विधानसभा से बीजेपी विधायक रोमी साहनी का कहना है कि साल 2012 में थारू संघ ने अपने वन अधिकारों को कानूनी मान्यता देने की मांग की। संघ ने जब एक याचिका दाखिल की तो उनके खिलाफ बड़े पैमाने पर केस दर्ज किए गए थे। पिछले महीने लखनऊ में सात थारू गांवों के प्रधानों ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। उनसे मामले में दखल देने की अपी की गई थी। सीएम ने भी मामले की जांच का आश्वासन दिया था।
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प्रधान के खिलाफ 29 मामले दर्ज
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सरिया पाराह गांव में 375 लोगों के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया, जबकि गांव की आबादी 1500 से कम है। अकेले गांव के प्रधान राम बहादुर के खिलाफ ही 29 मामले दर्ज हैं।
नेत्रहीन पर हिरण के शिकार का आरोप
हद तो तब हो गई जब पुलिस ने 40 वर्षीय सूरदास राम भजन के खिलाफ हिरण का शिकार करने का मामला दर्ज किया, जबकि उन्हें जन्म से ही दिखाई नहीं देता है। सूरदास के छोटे भाई रज्जन की उम्र 37 साल है। वह मानसिक तौर पर विकलांग है। उसे बचपन से बेड़ियों पर जकड़ रखा गया है। पुलिस ने उसके खिलाफ पेड़ काटने का मामला दर्ज किया था।
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जो चल नहीं सकता, उस पर पेड़ पर चढ़ने का आरोप
55 साल के हरदयाल के खिलाफ पेड़ पर चढ़कर घोंसले नष्ट करने का आरोप है। गजब बात यह है कि हरदयाल रीढ़ की हड्डी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। वह अपने पैरों पर बमुश्किल से खड़े हो पाते। सूरदास राम भजन का कहना है कि मैंने कभी जंगल नहीं देखा। मैं अपनी 70 साल की मां की सहायता से चलता हूं। हरदयाल का कहना है कि मैं शायद पिछले जन्म में पेड़ पर चढ़ा था।


