पश्चिम बंगाल में एक 15 साल के बच्चे को आखिरकार अपने सौतेले पिता का सरनेम इस्तेमाल करने की इजाजत मिल ही गई। हालांकि, इसके लिए बच्चे की मां को अदालत तक जाना पड़ा। बच्चे के माता-पिता उसके पैदा होने के बाद ही अलग-अलग हो गए थे। 


सितंबर 2016 में उनकी शादी को अदालत ने भंग भी कर दिया था। मार्च 2020 में बच्चे की मां ने दूसरी शादी की। बाद में बच्चे की देखभाल उसकी मां और सौतेले पिता ने ही की। चूंकि अलग होने के बाद बच्चे का अपने बायोलॉजिकल पिता से कोई जुड़ाव नहीं रहा, इसलिए मां ने बच्चे का सरनेम सौतेले पिता के सरनेम से बदलने की मांग की। 

 

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नगर निगम ने किया था विरोध

मां और सौतेले पिता ने कोलकाता नगर नगिम में बच्चे और मां का सरनेम बदलने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी। महिला के पहले पिता यानी बच्चे के बायोलॉजिकल पिता के वकील ने भी कहा कि अगर सरनेम बदला जाता है तो इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, कोलकाता नगर निगम ने इसका विरोध किया।


नगर निगम ने 1969 के रजिस्ट्रेशन ऑफ बर्थ एंड डेथ ऐक्ट की धारा 15 और कोलकाता म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ऐक्ट की धारा 454 और 455 का हवाला देते हुए कहा कि बच्चे के बर्थ रिकॉर्ड में नाम या सरनेम नहीं बदला जा सकता।


कोलकाता नगर निगम के वकील ने दलील दी थी कि नाम की स्पेलिंग गलत होने य उसमें कुछ फैक्चुअल एरर होने पर भी सिर्फ करेक्शन ही किया जा सकता है। नगर निगम का कहना था कि गोद लेने के मामले में एक अलग से रजिस्टर मैंटेन किया जाता है और सारे वैलिड दस्तावेज होने के बाद ही कोई बदलाव किया जाता है।

 

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हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?

कोलकाता नगर निगम के खिलाफ मां ने कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने कहा कि कोलकाता म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ऐक्ट की धारा 454 के तहत बायोलॉजिकल मां को अपने बच्चे के नाम में बदलाव करने का अधिकार है और खासकर तब बायोलॉजिकल पिता को इस पर कोई आपत्ति न हो।


हालांकि, कोर्ट ने बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट से बायोलॉजिकल पिता का नाम हटाने की मांग को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बच्चे का सरनेम तो बदला जा सकता है लेकिन बर्थ सर्टिफिकेट में पिता का नाम नहीं बदला जा सकता, क्योंकि एडॉप्शन के वैलिड दस्तावेज नहीं हैं। जस्टिस कौशिक चंदा ने कहा कि सौतेले पिता जब बच्चे को एडॉप्ट कर लेंगे तो सर्टिफिकेट में पिता का नाम भी बदला जा सकता है।

 

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सरनेम बदलने की मिली इजाजत

जस्टिस कौशिक चंदा ने कहा, 'धारा 454 को पढ़ने पर साफ हो जाता है कि निगम के पास बच्चे का नाम बदलने का अधिकार है। धारा 454 में 'नाम' का जिक्र है, जिसमें नाम और सरनेम दोनों शामिल हैं। इसलिए यह नगर निगम को बच्चे के पूरे नाम और सरनेम को बदलने का अधिकार देता है, बशर्ते कि आवेदन बर्थ रजिस्ट्रेशन के 60 महीने के भीतर हो।'


कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा, 'हालांकि, इस 60 महीने की सीमा को प्रतिबंध के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। अगर माता-पिता या गार्जियन वैलिड दस्तावेज देते हैं तो 60 महीने बाद भी बदलाव किया जा सकता है।'


हाई कोर्ट ने मां के पक्ष में आदेश देते हुए कहा कि कोलकाता नगर निगम के सामने मां को अपना और नाबालिग बच्चे का सरनेम बदलने का आवेदन करने का अधिकार है, ताकि रिकॉर्ड में उसका सरनेम दर्ज हो सके।