बिहार सरकार ने जब साल 2023 में जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए थे तो दो ताकवर जातियों की चर्चा खूब हुई। पहली जाति यादव, दूसरी पासवान। बिहार में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ी आबादी यादवों की है। 13 करोड़ की आबादी वाले इस सूबे में यादवों की आबादी 14.26 प्रतिशत है। आबादी के लिहाज से दूसरी सबसे बड़ी जाति दुसाध है। इस वर्ग की आबादी 5.31 प्रतिशत है। पासवान भी इसी समुदाय का हिस्सा हैं। बिहार में दलित वर्ग की सबसे प्रभावशाली जाति दुसाध कही जाती है। चिराग पासवान इसी वर्ग के नेता हैं।
चिराग पासवान की ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब नवंबर 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे तो चिराग पासवान नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से सीट शेयरिंग पर अनबन को लेकर अकेले ही चुनावी मैदान में उतर पड़े। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी 243 विधानसभा सीटों में 137 सीटों पर उतरी। 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। सिर्फ एक सीट पर उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी जीत दर्ज कर पाई। यह चुनाव, उनके पिता के निधन से ठीक बाद हुआ था। उनकी पार्टी को कुल चिराग पासवान की पार्टी को कुल 5.66 प्रतिशत वोट मिले।
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बिहार में कितने मजबूत चिराग पासवान? लोकसभा चुनाव गवाह है
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। टिकट बंटवारे में लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के खाते में 5 सीटें आईं। उनकी सफलता दर 100 फीसदी रही। 5 की 5 सीटों पर चिराग पासवान जीत गए। वैशाली लोकसभा सीट, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया और जमुई लोकसभा सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) की जीत हुई। बिहार में इस पार्टी का अब 6.47 प्रतिशत वोट बैंक है। चिराग पासवान ने अपने पिता के निधन के बाद अपनी पार्टी खो दी। उनके चाचा पशुपति पारस ने चिराग पासवान को पार्टी से बेदखल कर दिया था। चिराग ने खुद को साबित कर दिया कि राम विलास पासवान की विरासत के असली वारिस वही हैं।
शून्य से चिराग पासवान को करनी पड़ी थी शुरुआत
चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच अदावत 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद शुरू हुई। रामविलास की लोक जनशक्ति पार्टी की विरासत को लेकर दोनों में झगड़ा शुरू हुआ। साल 2021 में पशुपति पारस ने पार्टी पर कब्जा कर चिराग को हाशिए पर धकेल दिया। पशुपति पारस केंद्र में राम विलास पासवान की जगह कैबिनेट मंत्री भी बन गए। चिराग पासवान की पार्टी दो गुटों में बंट गई।
चिराग ने LJP (रामविलास) बनाई। 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी ने पांच सीटें जीतीं, जबकि पशुपति का गुट हार गया। दोनों के बीच संपत्ति विवाद, कार्यालय, सरकारी आवास तक को लेकर झगड़ा हो गया। अब पशुपति पारस हाशिए पर हैं और राष्ट्रीय जनता दल के उपकार के भरोसे अपनी सियासत छोड़ चुके हैं।

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अब कितनी सीटें मांग रहे हैं चिराग?
बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं। सूत्रों के मुताबिक चिराग पासवान अपनी पार्टी की सफलता और वोट प्रतिशत देखते हुए 30 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। एनडीए गठबंधन में अटकलों के मुताबिक अभी 100 सीटें बीजेपी, 100 सीटें जेडीयू और 20 से 25 सीटें चिराग के खाते में जाती नजर आ रही हैं। बाकी बची हुई सीटें, एनडीए गठबंधन के सहयोगियों को मिलेगी।
कभी नाराज, कभी ऐतराज, बीजेपी की आंख मूदकर नहीं सुनते चिराग
चिराग पासवान, कभी-कभी सार्वजनिक मंचों पर एनडीए से अलग भी बोलते नजर आते हैं। चिराग पासवान के पिता की नीति अल्पसंख्यक और दलित वर्ग पर केंद्रित थी। चिराग खुद को कट्टर हिंदू बताते हैं लेकिन सभी वर्गों को साथ लेकर आगे बढ़ने की वकालत करते हैं। वह बिहारी फर्स्ट की राजनीति करते हैं, बिहार को शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन और विकास का केंद्र बनाना चाहते हैं। वह मुख्यमंत्री बनने की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी जता चुके हैं।
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कब-कब BJP से अलग राग अलापे चिराग?
- लेटरल एंट्री का विरोध: 2024 में चिराग ने केंद्र सरकार के लेटरल एंट्री नीति का खुलकर विरोध किया। चिराग ने कहा कि इसे रद्द किया जाए।
- जातिगत जनगणना पर अलग रुख: जातिगत जनगणना पर अरसे तक चिराग पासवान की राय, एनडीए और बीजेपी के आधिकारिक रुख से अलग रही।
- एससी-एसटी आरक्षण: चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी आरक्षण से संबंधित फैसले के खिलाफ विपक्ष का समर्थन किया।
- वक्फ बोर्ड संशोधन बिल: चिराग पासवान की राय भी वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर भी बीजेपी से थोड़ी अलग थी। एनडीए सरकार के मंत्री होने के बाद भी उन्होंने अलग राय रखी।
- मांस बैन पर अलग राय: चिराग पासवान हिंदू-मुस्लिम की राजनीति पर अलग रुख रखते हैं। उन्होंने खुलकर मार्च में कहा था कि किसी भी राजनीतिक दल को नमाज या मांस की दुकानों को बंद कराने का अधिकार नहीं है।
जिस विरासत को संभाल रहे चिराग, ताकत समझ लीजिए
साल 1989 में पहली बार राम विलास पासवान केंद्रीय मंत्री बने। सरकार किसी की भी हो, केंद्र का एक मंत्रालय उनके पास ही रहता था। उन्हें गठबंधन का फॉर्मूला अच्छे से पता था। वह 7 प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में मंत्री रहे हैं। वह कांग्रेस से लेकर बीजेपी सरकार तक, मंत्री जरूर रहे। उनके आलोचक, इसी वजह से उन्हें मौसम वैज्ञानिक भी कहते हैं। एक नजर उस विरासत पर, जिसे चिराग पासवान संभाल रहे हैं-
राम विलास पासवान कब-कब केंद्रीय मंत्री रहे?
- 1989-1990: श्रम और कल्याण मंत्रालय
- 1996-1998: रेल मंत्रालय
- 1999-2001: संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय
- 2001-2002: कोयला और खान मंत्रालय
- 2004-2009: रसायन और उर्वरक मंत्रालय; इस्पात मंत्रालय\
- 2014-2020: उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
2010 से 2020 तक, कैसा रहा है लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन
- 2010 बिहार विधानसभा चुनाव
गठबंधन: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ
सीटें जीतीं: 3
वोट शेयर: 6.75% - 2015 बिहार विधानसभा चुनाव
गठबंधन: NDA के साथ
सीटें जीतीं: 2
वोट शेयर: 4% लगभग - 2020 बिहार विधानसभा चुनाव
गठबंधन: स्वतंत्र
सीटें जीतीं: 1
चिराग पासवान बिहार में इतने मजबूत क्यों हैं?
चिराग, पासवान समाज के बड़े नेता बन चुके हैं। वह पिता की विरासत संभाल रहे हैं। 5 प्रतिशत वोट बैंक, अन्य दलित वर्गों का समर्थन और युवा बिहारी वाली छवि भी उनकी सियासी मजबूती की एक वजह है। साल 2020 में उन्होंने भीषण हार का स्वाद चखा, 2024 में एनडीए के समर्थन से बिहार की बड़ी ताकत बनकर सामने आए। पासवान समुदाय, बिहार में यादव के बाद दूसरे सबसे प्रभावी समुदाय है।
एक और दिलचस्प बात यह है कि चिराग पासवान ने खुद को सिर्फ एक जाति का नेता नहीं रखा है। वह न तो जातीय बयान देते हैं, न सांप्रदायिक। बिहार में उदारवादी तबका उन्हें पसंद करता है। चिराग पासवान, अपने पिता की तरह बिहार की सियासत को समझ चुके हैं। गठबंधन बिना लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) बहुत दूर तक जा नहीं सकती है और कोई गठबंधन इस पार्टी को नजर अंदाज करे, यह भी अभी तक नहीं हुआ है।
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बिहार के सामाजिक ताने-बाने में कितने अहम हैं पासवान?
बिहार में पासवान समुदाय की आबादी 2023 की जातिगत जनगणना के अनुसार 5.31% है। यह समुदाय दलित समुदायों में सबसे प्रभावशाली है। पासवान योद्धा रहे हैं। यह सैनिक समुदाय रहा है। ब्रिटिश सेना में भी यह समुदाय सक्रिय था। ज्यादातर पासवान समाज के लोग किसान हैं, छोटे व्यवसायों पर निर्भर हैं। बिहार में पासवान समुदाय के वोटर हाजीपुर, समस्तीपुर, वैशाली, मुजफ्फरपुर, और गया जैसे क्षेत्रों में बहुत मजबूत हैं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का इस समुदाय पर दमदार असर है।