हिमाचल प्रदेश अपने सेबों के लिए मशहूर है। इस छोटे से पहाड़ी राज्य की कमाई में सेब के बागानों का हिस्सा काफी बड़ा है। खराब मौसम, बेमौसम बारिश जैसी समस्याओं के चलते सेब की खेती कई बार प्रभावित भी होती है। इस बार देखने को मिला है कि सेब के बागानों पर नई आफत टूट पड़ी है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में बर्फबारी न होने के चलते लोग ऊंचाई वाली जगहों से बर्फ उठाकर ला रहे हैं और उसे अपने सेब के पेड़ों पर डाल रहे हैं। यह पूरी कवायद इसलिए है ताकि सेब के बागान बचे रहें और उनमें फल आ सकें।
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किन्नौर जिले में सेब की खेती करने वाले किसान ऊंचाई वाले इलाकों से बर्फ को गाड़ियों में भरकर ला रहे हैं और उसे सेब के तने पर डाल रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत-तिब्बत बॉर्डर के पास किन्नौर की रोपा वैली में इस बार बर्फबारी बहुत कम हुई है। सेब की खेती के लिए कम बर्फबारी का मतलब है कि उत्पादन कम हो जाएगा। ऐसे में नुकसान से बचने के लिए ये किसान इस जुगाड़ वाली 'बर्फबारी' का सहारा ले रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय किसान बताते हैं कि पिछले दो दशक में जलवायु परिवर्तन की वजह से खेती प्रभावित हुई है। इस क्षेत्र में सिंचाई के संसाधन कम होने की वजह से यहां के किसान बर्फबारी और बारिश पर ही निर्भर हैं। बर्फबारी कम होने के चलते किसानों की चिंताएं और बढ़ रही हैं। एक स्थानीय किसान बताते हैं कि सेब की खेती के लिए लंबे समय तक नमी की जरूरत होती है जबकि यहां पर आखिरी के दो-तीन दिन में बर्फबारी होती है।
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क्या कर रहे हैं किसान?
किसान सुरेश बोरिश ने डाउन टू अर्थ को बताया, 'इस समस्या से निपटने के लिए किसान ऐसे इलाकों से बर्फ उठाकर ला रहे हैं, जहां सूरज की सीधी रोशनी कम पहुंचती है। ऐसी जगहों पर बर्फ लंबे समय तक पड़ी रहती है। हम बर्फ को ट्रक में भरकर ले आते हैं और पेड़ के तने के पास इसे रख देते हैं। इससे लंबे समय तक नमी बनी रहती है और सेब के पौधे बचे रहने की संभावना बढ़ जाती है।' मौसम में हो रहे इस बदलाव से बचने के लिए यहां के किसान किस्मों में भी बदलाव कर रहे हैं ताकि ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।
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भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में अक्तूबर से दिसंबर के बीच औसत से 41 प्रतिशत कम बारिश हुई। वहीं, किन्नौर में अक्तूबर से दिसंबर के बीच 41 पर्सेंट तो जनवरी से फरवरी के बीच 90 प्रतिशत कम बारिश हुई। वहीं, फरवरी में अब तक 84 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इसका सीधा असर सेब के बागानों पर पड़ रहा है।
हिमाचल की सेब इकॉनमी
साल 2023-24 के हिमाचल प्रदेश के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश ने साल 2023 में हिमाचल प्रदेश में 4.84 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ। हालांकि, 2022 में की तुलना में यह 28 प्रतिशत कम था। रोचक बात है कि हिमाचल प्रदेश में कुल जितने क्षेत्रफल पर फलों की खेती है उसमें आधार हिस्सा सेब के बागानों का ही होता है। हिमाचल प्रदेश के फल उत्पादन में सेब का हिस्सा लगभग 80 पर्सेंट से भी ज्यादा है। बीते कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन और मौसम से जुड़ी अन्य घटनाओं के चलते सेब का उत्पादन प्रभावित हुआ है और राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ा है।
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पिछले चार साल के आंकड़ों को देखें तो 2020 में हिमाचल प्रदेश में कुल 2.40 करोड़ पेटी, 2021 में 3.5 करोड़, 2022 में 3.36 करोड़ और 2023 में 2.11 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था। हिमाचल प्रदेश हर साल लगभग 4 से 5 हजार करोड़ का कारोबार सिर्फ सेब के बलबूते करता है। ऐसे में इस तरह मौसम के चलते फसलें प्रभावित होने की वजह से प्रदेश के कारोबारियों और किसानों पर भी असर पड़ेगा।
बता दें कि सेब की अच्छी फसल के लिए सर्दियों में अच्छी बर्फबारी जरूरी है। इससे सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स की संभावना बढ़ जाती है। अच्छी क्वालिटी के सेब के लिए 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है। वहीं सामान्य सेब के लिए भी 700 से 800 चिलिंग आवर्स जरूरी हैं। जलवायु परिवर्तित होने और कम बर्फबारी के चलते यह सब मिलना मुश्किल हो गया है।