महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाई जाएगी। प्रदेश सरकार ने मंगलवार को एक संशोधित आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कि मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में 1 से कक्षा 5 तक हिंदी तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाई जाएगी। सरकार के इस फैसले का विरोध भी होने लगा है। कांग्रेस और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने मोर्चा खोल दिया है। वहीं मंत्री दादा भुसे ने सरकार के फैसले का बचाव किया। महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को नया आदेश जारी किया। इसमें हिंदी को अनिवार्य भाषा नहीं बनाया गया, लेकिन उसे आमतौर पर तीसरी भाषा माना गया है। कांग्रेस ने सीएम देवेंद्र फडणवीस पर मराठी लोगों की छाती में छुरा घोंपने का आरोप लगाया।

क्या है महाराष्ट्र सरकार का नया आदेश?

महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा विभाग ने मंगलवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत 'स्कूल शिक्षा के लिए राज्य पाठ्यक्रम रूपरेखा 2024' से जुड़ा सरकारी संकल्प जारी किया। मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में हिंदी तीसरी भाषा होगी। मगर यह सिर्फ 1 से 5 कक्षा तक लागू होगा। अगर स्कूल के हर कक्षा के 20 छात्रों ने हिंदी के इतर कोई और भाषा पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उन्हें वह भाषा पढ़ाई जाएगी। विभाग शिक्षक की व्यवस्था कराएगा या ऑनलाइन पढ़ाई का विकल्प उपलब्ध करवाएगा। खास बात यह है कि मराठी हर स्कूल में अनिवार्य होगी। 

 

 

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फैसले का विरोध करने वालों का दावा है कि सरकार का नया आदेश स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे के पहले के बयान के अलग है, जिसमें उन्होंने प्राथमिक कक्षाओं के लिए हिंदी अनिवार्य नहीं करने की बात कही थी। इसी साल महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। मगर उस वक्त भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा था। बाद में 22 अप्रैल को स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने कहा था कि कक्षा 1 से 5 तक हिंदी अब अनिवार्य नहीं होगी।

कांग्रेस ने जनता को धोखा देने का लगाया आरोप

महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने सरकार के नए आदेश को हिंदी थोपने की एक सुनियोजित साजिश करार दिया। आरोप लगाया कि सीएम फडणवीस ने मराठी लोगों की छाती में छुरा घोंपा है। एक पर अपनी एक पोस्ट में हर्षवर्धन ने लिखा, 'जनता को यह कहकर धोखा दिया गया कि तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य नहीं किया जाएगा. लेकिन सरकारी संकल्प में क्या कहा गया है?' सपकाल का कहना है, 'हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक आरएसएस और भाजपा का 'एक राष्ट्र, एक भाषा, एक संस्कृति' का एजेंडा खारिज नहीं हो जाता।'

 

उन्होंने आगे लिखा, 'हिंदी अनिवार्य तीसरी भाषा होगी। अगर कोई अन्य भाषा सीखनी है तो कम से कम 20 छात्रों की जरूरत होगी। यह एक विकल्प देने का दिखावा है और हिंदी थोपने की सुनियोजित साजिश है। यह भाजपा का महाराष्ट्र विरोधी एजेंडा है और मराठी भाषा, मराठी पहचान व मराठी लोगों को खत्म करने की साजिश है।'

 

सपकाल का आरोप है कि फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार की वफादारी महाराष्ट्र या मराठी लोगों के प्रति नहीं, बल्कि दिल्ली के लोगों के साथ है। शिंदे गुट, जो बार-बार बालासाहेब ठाकरे का नाम लेता है, शिक्षा मंत्रालय अपने पास रखता है। उसने मराठियों को उसी तरह मारने की पहल की है, जैसे उन्होंने शिवसेना को चाकू मारा था। हर्षवर्धन सपकाल ने अजीत पवार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'अजित पवार सत्ता के लिए इतने बेताब हैं कि उन्हें महाराष्ट्र, मराठी भाषा, मराठी लोगों के जीने और मरने से कोई लेना-देना नहीं है। अजीत पवार की नीति केवल वित्त मंत्रालय हासिल करने की रही है।'

हिंदी को थोपने की जरूरत क्या है: राज ठाकरे

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने सरकार के फैसले का विरोध किया। उन्होंने बुधवार को पूछा कि छात्रों पर हिंदी थोपने की क्या जरूरत है। उन्होंने महाराष्ट्र के स्कूलों से सरकार के जानबूझकर भाषाई विभाजन पैदा करने के एजेंडे को विफल करने की अपील की। राज ठाकरे का कहना है कि हिंदी कुछ उत्तरी राज्यों की राज्य भाषा है और इसे महाराष्ट्र पर थोपना गलत है। पत्रकारों से बातचीत में राज ठाकरे ने कहा कि अगर सरकार स्कूलों पर दबाव डालती है तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना उनके साथ चट्टान की तरह खड़ी रहेगी। उन्होंने अंग्रेजी और मराठी के दो भाषा फॉर्मूले को जारी रखने की मांग और चेतावनी दी कि परिणामों के लिए सरकार जिम्मेदार होगी। 

 

 

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हिंदी को पिछले दरवाजे से थोपने का आरोप

मुंबई स्थित मराठी भाषा अभ्यास केंद्र के दीपक पवार ने दावा किया, 'सरकार का नया आदेश हिंदी को पिछले दरवाजे से थोपने के अलावा कुछ और नहीं है। उन्होंने कहा, "सरकार ने मराठी लोगों को धोखा दिया है। अगर हम अब चुप रहे तो यह संघीय ढांचे और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की विरासत को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।"  

 

शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष क्या बोले

महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसंत कल्पांडे का कहना है कि भाजपा शासित गुजरात और असम में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी अनिवार्य नहीं है। उनका दावा है कि एक कक्षा में 20 छात्रों को गैर-हिंदी भाषा का विकल्प चुनते हुए देखना असंभव है। शिक्षक को ऑनलाइन उपलब्ध कराने का प्रावधान भी हिंदी के अलावा किसी अन्य भाषा के विकल्प को हतोत्साहित करने जैसा है। कल्पांडे ने कहा कि मराठी और हिंदी की लिपि समान हैं। मगर इतनी कम उम्र के छात्रों के लिए लिपियों के बीच की बारीकियों और अंतरों को सीखना आसान नहीं है।

 

मंत्री ने सरकार के फैसले का किया बचाव

स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने बुधवार को सरकार के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि इसका (हिंदी) रोजाना की बातचीत में व्यापक तौर पर इस्तेमाल होता है और यह कक्षा 12 के छात्रों को उच्च शिक्षा में मदद करेगा। उन्होंने मराठी नहीं पढ़ाने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्त एक्शन की चेतावनी दी। मंत्री का दावा है कि हिंदी सीखने से छात्रों को फायदा होगा।