बिहार की 13 करोड़ आबादी में भूमिहार समुदाय की आबादी 2.86 प्रतिशत है लेकिन इस समुदाय का दबदबा 25 सीटों पर है। एक जमाने में बिहार में हो रही जातीय हिंसा की वजह से यह समुदाय विवाद के केंद्र में रहा। जातिगत हिंसा का शिकार भी हुआ। सवर्णों की रणवीर सेना कुख्यात रही है, जिस पर जातीय नरसंहार तक के गंभीर आरोप लगे। भूमिहार समुदाय से ही लोग इस सेना को लोग जोड़कर एक अरसे तक देखते ही रहे। भूमिहार समाज के ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई में इस संगठन ने कई समुदायों के लोगों को मारा। यह सशस्त्र सवर्ण जातियों का एक समूह था, जिसकी स्थापना 1995 में भोजपुर जिले के बेलाऊर गांव में हुई थी। बिहार के सवर्ण और बड़े और मध्यम वर्गीय किसानों के खिलाफ भड़के नक्सली आंदोलन के बचाव में इस संगठन की शुरुआत हुई थी। संगठन अब प्रतिबंधित संगठन है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) और रणवीर सेना की खूनी रंजिश में सैकड़ों लोग मारे गए। संगठन के बारे में कहा गया कि यह भूमिहारों का संगठन है, जिसका काम दलितों और पिछड़ों को सताना है। बिहार में इस संगठन को लेकर लालू यादव से लेकर राबड़ी देवी तक की सरकारों पर सवाल उठे। लालू यादव जातीय हिंसा के खिलाफ मुखर रहे हैं, उनकी पार्टी के नेतृ्त्व वाली सरकार वर्षों तक रही लेकिन संगठन समानांतर अपना काम करता रहा। अब न तो यह संगठन अस्तित्व में है, न ही बिहार में इस तरह के नरसंहार भी हुए। इस दाग से अब समाज उबर चुका है, बिहार में वैसी हिंसक घटनाओं का दौर भी बीत गया है।
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बिहार में सियासी तौर पर कितना मजबूत है भूमिहार समुदाय?
बिहार में भूमिहार समुदाय की आबादी करीब 2.86 प्रतिशत है। बिहार में कई चर्चित नेता इस समुदाय से आते हैं। कुछ बाहुबली नेता भी इसी समुदाय से हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भूमिहार समाज से आते हैं। बाहुबली और मोकामा से विधायक अनंत सिंह भी इसी समाज से हैं। बाहुबली सूरजभान सिंह, आनंद मोहन सिंह भी भूमिहार समाज से ही आते हैं। बिहार में भूमिहार बाहुल सीटें 20 से 25 हैं। यहां भूमिहार समुदाय की आबादी भले ही न ज्यादा हो लेकिन यह समुदाय बेहद प्रभावी है।
बिहार की किन सीटों पर है भूमिहारों का असर?
वैशाली, सारण, मुजफ्फरपुर, पटना साहिब, बेगूसराय, औरंगाबाद और बक्सर जैसी लोकसभा सीटों पर भूमिहार वर्ग का दबदबा माना जाता है। यहां इनकी आबादी कम हो या ज्यादा, एक बात तय है कि ये वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने की स्थिति में रहे हैं।
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विधानसभा चुनाव में कितना असरदार है यह फैक्टर?
भूमिहार एकता मंच के सदस्य स्वतंत्र राय बताते हैं कि बिहार में करीब 20 सीटें ऐसी हैं, जहां भूमिहार वोटर जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं। शाहपुर, बिहारशरीफ, हाजीपुर, महुआ, बेगूसराय, आरा, संदेश, डुमरांव, मोहनिया, मोकामा जैसे क्षेत्रों में भूमिहार का प्रभुत्व है। अब भूमिहार वोटरों को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही है। लगभग 2.87% आबादी वाली यह सवर्ण जाति, बिहार की राजनीति में प्रभावशाली रही है। 2005 के बाद से भूमिहारों का झुकाव मुख्य रूप से एनडीए (जेडीयू-बीजेपी) की ओर रहा है। हाल के वर्षों में उनके वोट आरजेडी और अन्य दलों में भी बंटे हैं।
भूमिहार मुंगेर, बेगूसरा, लखीसराय और नवादा में भी प्रभावी हैं। आरा, बक्सर, सीवान और वैशाली में भी अच्छी स्थिति में हैं। मिथिलांचल में भी कुछ जगहों पर भूमिहार वोटरों की संख्या प्रभावी है। भूमिहार एकता मंच के सदस्य हिमांशु राय बताते हैं कि अगर 2025 के चुनाव में भूमिहार एकजुट होकर नवादा, मुंगेर, बेगूसराय जैसे सवर्ण-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में दम दिखाएं तो चुनाव में उनका दबदबा और बढ़ सकता है।
2020 में भूमिहार प्रतिनिधित्व कितना था?
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भूमिहार समाज के 15 सदस्यों को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट दिया था। बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा भी भूमिहार समुदाय से आते हैं, लखीसराय से विधायक हैं। साल 2020 के चुनाव में कुल 21 भूमिहार समुदाय के विधायक चुनाव में जीते थे। बीजेपी ने 14 भूमिहार प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिनमें 8 जीते, जेडीयू ने 8 टिकट दिया था, जिनमें से 5 ने जीत हासिल की। एनडीए के 14 विधायक भूमिहार समुदाय से आते हैं। महागठबंधन से करीब 6 विधायक भूमिहार समुदाय से हैं। साल 2015 में बीजेपी से 9, जेडीयू से 4 और कांग्रेस से 3 भूमिहार विधायक चुने गए थे।
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बिहार में चर्चित भूमिहार नेता?
- विजय कुमार सिन्हा, भारतीय जनता पार्टी (BJP), उपमुख्यमंत्री और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष
- अनिल कुमार, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM), प्रदेश अध्यक्ष
- अखिलेश सिंह, कांग्रेस, प्रदेश अध्यक्ष
- ललन सिंह, जनता दल यूनाइटेड (JDU), केंद्रीय मंत्री
- गिरिराज सिंह, भारतीय जनता पार्टी (BJP), केंद्रीय मंत्री
- महाचंद्र सिंह, भारतीय जनता पार्टी (BJP), अध्यक्ष सवर्ण आयोग
चर्चित भूमिहार नेता, जो बाहुबली भी हैं
- अनंत सिंह: अनंत सिंह बिहार के चर्चित बाहुबली विधायकों में से एक हैं। वह साल 2005 से मोकामा से विधायक चुने जाते रहे। साल 2010, 2015, और 2020 के चुनावों में भी उनकी जीत हुई।
आरोप: हत्या, अपहरण, और हथियार रखने जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2019 में उनके पैतृक घर से AK-47 और ग्रेनेड बरामद हुए, जिसके बाद उन पर UAPA के तहत केस दर्ज किया गया। उनकी पत्नी नीलम देवी ने 2022 के मोकामा उपचुनाव में RJD के टिकट पर जीत हासिल की। - सूरजभान सिंह: सूरजभान सिंह राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता हैं। उनकी छवि बाहुबली की रही। अब वह सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं।
आरोप: अपराध की दुनिया से राजनीति में आए और सांसद तक बने। उन पर आरोप लगे कि वह गुंडा-बदमाशों को शरण देते हैं, यूपी के गैंगस्टर भी उनके संपर्क में हैं। उनका दबदबा बिहार से पूर्वांचल तक रहा। - मुन्ना शुक्ला: मुन्ना शुक्ला 1990 के दशक में सबसे विवादित चेहरों में से एक रहे हैं। वह राष्ट्रीय जनता दल के नेता हैं।
आरोप: मुन्ना शुक्ला राबड़ी सरकार में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में आजीवन कारावास काट रहे हैं। उनके भाई छोटन और भुटकुन शुक्ला भी अपराध जगत में सक्रिय रहे। जेल के बाहर भी उनका दबदबा है।
रणवीर सेना क्या थी?
रणवीर सेना का गठन 1994 में भोजपुर जिले के बेलाऊर गांव में ब्रहमेश्वर मुखिया के नेतृत्व में हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य भाकपा (माले) जैसे नक्सली संगठनों के प्रभाव का मुकाबला करना और जमींदारों के हितों की रक्षा करना था। यह संगठन कई नरसंहारों की वजह से कुख्यात रहा। खोपिरा, सरथुआ, भोजपुर, बथानी टोला, हैबासपुर, एकवारी, शंकरबिघा, नारायणपुर, सांदनी और कई अन्य नरसंहारों के पीछे इस संगठन को जिम्मेदार ठहराया गया। बिहार सरकार ने इसे जुलाई 1995 में प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन इसकी गतिविधियां जारी रहीं। 2012 में ब्रहमेश्वर मुखिया की हत्या के बाद यह संगठन कमजोर पड़ गया और व्यावहारिक रूप से खत्म हो गया।
