भारत साल 1947 में आजाद हो गया था। तब भारत का रूप, स्वरूप और आकार वैसा नहीं था जैसा कि आज है। कई राज्य भारत का हिस्सा नहीं बने थे और कुछ साथ आने को तैयार थे। नतीजा यह हुआ कि भारत अपने व्यापक स्वरूप में आता गया और आज एक समृद्ध देश के सामने सबके सामने खड़ा है। जब भारत आजाद हुआ तब मणिपुर भी भारत का हिस्सा नहीं बना। अंग्रेजों का शासन खत्म होने के बाद मणिपुर पर वहां के महाराजा बुधाचंद्र का शासन रहा। हालांकि, समय के साथ मणिपुर भारत में शामिल हुआ और उसने भारत के संविधान को स्वीकार करने का भी फैसला लिया।
लंबे समय से मणिपुर पर अलग-अलग राजाओं का शासन था। अंग्रेजों ने पूरे देश पर कब्जा किया तो मणिपुर भी उनके निशाने पर आ गया। 1891 में खोंगजोम युद्ध के बाद मणिपुर भी ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया था। आखिर में देश की आजादी के साथ ही चर्चाएं शुरू हो गईं कि अब मणिपुर को भी भारत के साथ आ जाना चाहिए। समय के साथ तय हुआ कि मणिपुर भी भारत के साथ आएगा। मणिपुर के महाराजा बुधाचंद्र ने 21 सितंबर 1949 को विलय पर हस्ताक्षर किए और उसी साल 15 अक्तूबर को मणिपुर भारत का हिस्सा बन गया। शुरुआत में 1956 से 1972 तक मणिपुर केंद्र शासित प्रदेश रहा। 21 जनवरी 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया और तब से वह भारत का एक राज्य है।
कैसे भारत में शामिल हुआ मणिपुर?
कहा जाता है कि मणिपुर को भारत का हिस्सा बनाने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कई बार कोशिशें कीं। मणिपुर के शासक बुधाचंद्र सिंह के प्रयासों से साल 1941 में ही नई सरकार के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए कमेटी बनाई गई। यह काम 1947 में पूरा हो गया और उसी के हिसाब से साल 1948 में चुनाव भी हुए। इसी चुनाव में जीत के बाद एम के प्रियोबर्ता मणिपुर के पहले मुख्यमंत्री बने और राज्य में विधानसभा बन गई। हालांकि, तब तक मणिपुर भारत का हिस्सा नहीं था।
मणिपुर के महाराजा ने शिलॉन्ग में भारत के प्रतिनिधियों से बातचीत की। कई दिनों तक यह चर्चा चली और आखिर में 21 सितंबर 1949 को भारत में विलय के लिए आधिकारिक तौर पर दस्तखत कर दिए गए। इस समझौते के तहत भारत ने मणिपुर के महाराजा को विशेषाधिकार दिया, प्रथागत अधिकार दिए और 3 लाख रुपये की प्रिवी पर्स की भी गारंटी दी। इसके बार मणिपुर की तत्कालीन विधानसभा भंग कर दी गई और रावल अमर सिंह ने रावल अमर सिंह ने मणिपुर के चीफ कमिश्नर के रूप में कार्यभार संभाल लिया।