मध्य प्रदेश के इंदौर में ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित एक तीन साल की बच्ची वियाना की मौत हो गई, जब उसके माता-पिता ने उसे एक आध्यात्मिक गुरू के कहने पर जैन धर्म की आमरण उपवास परंपरा में दीक्षित किया। जैन धर्म में इस दीक्षा को संथारा कह जाता है। बच्ची की मौत संथारा की दीक्षा देने और अनुष्ठान पूरा होने के करीब 40 मिनट बाद हुई। यह हैरान करने वाली घटना चर्चा का विषय बन गई है।

 

उधर इंदौर पुलिस ने इस मामले में कहा है कि उसे मामले की जानकारी नहीं मिली है। दरअसल, किसी ने पुलिस में जाकर एक घटना की शिकायत दर्ज नहीं करवाई है।

 

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जीवन के आखिरी समय में होता है 'संथारा' 

 

दरअसल, जैन धर्म में 'संथारा' को सल्लेखना के नाम से भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल पारंपरिक रूप से जैन धर्म को मामने वाले अपने जीवन के आखिरी समय में आध्यात्मिक शुद्धि के लिए करते हैं। साल 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने संथारा प्रथा को अवैध घोषित कर दिया था और इसे आत्महत्या का एक रूप बताया था। हालांकि, हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ जैन धर्म के लोगों ने विरोध किया था। विरोध को देखते हुए एक महीने बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

 

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करीबी परिवार के सदस्यों से ली सलाह

 

मृतक बच्ची के माता-पिता ने बताया कि उन्होंने यह फैसला लेने से पहले केवल करीबी परिवार के सदस्यों से सलाह ली। दंपति ने कहा कि बेटी वियाना उनकी इकलौती संतान थी। पिता पीयूष ने कहा, 'वह केवल तीन साल, चार महीने और एक दिन के लिए इस दुनिया में आई थी। जब सर्जरी के बाद उसका ब्रेन ट्यूमर फिर से उभर आया और उसकी सेहत तेजी से बिगड़ने लगी तो हमने अपने धर्म की ओर रुख करने का फैसला किया।' 

 

धार्मिक अनुष्ठान के दस मिनट बाद मौत

 

परिवार ने कहा कि वे 21 मार्च को वियाना को अपने आध्यात्मिक गुरु के पास ले गए, जिसके बाद साधु ने वियाना की सेहत का आकलन किया और भविष्यवाणी की कि वह रात को जिंदा नहीं रहेगी। इसके बाद दंपति ने रिश्तेदारों से सलाह लेकर पूरे धार्मिक अनुष्ठानों के साथ अनुष्ठान किया, लगभग 30 मिनट तक चला। उन्होंने बताया कि दस मिनट बाद वियाना की मौत हो गई।

 

पिता पीयूष ने बताया कि उनकी बेटी वियाना खुशमिजाज बच्ची थी। उन्होंने कहा कि हम शुरू से ही जैन धर्म के मूल्यों का पालन करते हैं।