मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से शनिवार को मुंबई लगभग ठहर-सी गई। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल ने आज़ाद मैदान में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है, जो अब दूसरे दिन में पहुंच चुकी है। हज़ारों की संख्या में समर्थक उनके साथ डटे हुए हैं और पूरे शहर में आंदोलन का असर साफ दिखाई दे रहा है।

 

शनिवार सुबह से ही शहर की सबसे व्यस्त सड़कों पर ट्रैफिक की स्थिति बिगड़ गई। ईस्टर्न फ्रीवे पर लंबा जाम लग गया, जिसके चलते मुंबई ट्रैफिक पुलिस को सलाह जारी करनी पड़ी कि लोग इस रास्ते का इस्तेमाल न करें। पुलिस का कहना है कि करीब 50 से 60 हज़ार प्रदर्शनकारी लगभग 11 हज़ार वाहनों में मुंबई पहुंचे हैं। इनमें से अधिकांश लोग दक्षिण और मध्य मुंबई में अलग-अलग जगहों पर डटे हुए हैं।

 

यह भी पढ़ेंः चुनाव में मान गए मनोज जरांगे पाटिल फिर धरना देने मुंबई क्यों आ गए?

 

ट्रैफिक जाम का सबसे ज्यादा असर सीएसएमटी, क्रॉफर्ड मार्केट और आस-पास के इलाकों में दिखा, जहां गाड़ियों की लंबी कतारें लग गईं। बेस्ट बसों की सेवाएं भी प्रभावित हुईं और यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ा। दूसरी ओर, वाशी ब्रिज और सियोन-पनवेल हाईवे पर भी यातायात लगभग ठप हो गया, जिससे नवी मुंबई की ओर आने-जाने वाले यात्रियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

कारोबारियों पर पड़ा असर

आंदोलन का असर मुंबई की आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा। क्रॉफर्ड मार्केट और आसपास के थोक बाजारों में कारोबार लगभग ठप रहा। रोज़ाना लाखों रुपये का व्यापार करने वाले दुकानदारों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। कई नामी दुकानों जैसे बादशाह कोल्ड ड्रिंक और पीके वाइंस ने सुरक्षा कारणों से समय से पहले शटर गिरा दिए। व्यापारियों का कहना है कि जहां आम दिनों में एक लाख रुपये तक की बिक्री होती है, वहीं शनिवार को यह घटकर महज़ दो हज़ार रुपये तक सिमट गई।

आंदोलन जारी

आंदोलन का मुख्य केंद्र आज़ाद मैदान बना हुआ है, जहां मनोज जरांगे-पाटिल भूख हड़ताल पर हैं। उनके साथ करीब 30 हज़ार समर्थक डटे हुए हैं। बारिश और कीचड़ के बीच लोग वहीं डटे रहे और अस्थायी कैंपों में रहकर आंदोलन जारी रखा।

प्रदर्शनकारियों ने बताया कि मैदान में पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। कई लोगों ने आरोप लगाया कि बीएमसी ने प्रदर्शनकारियों के लिए जरूरी इंतज़ाम नहीं किए। खुद जरांगे ने भी बीएमसी कमिश्नर भूषण गगरानी पर आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों के लिए भोजन और पानी उपलब्ध नहीं कराया गया।

सरकार से टकराव तेज

शनिवार को सरकार की ओर से गठित समिति के प्रमुख सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति संदीप शिंदे जरांगे से मिलने पहुंचे। हालांकि, यह बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। जरांगे ने कहा कि 'न्यायमूर्ति शिंदे का काम सरकार का आदेश (जीआर) जारी करना नहीं है। सरकार मराठा समाज के साथ मज़ाक कर रही है।'

 

जरांगे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर भी सीधा हमला बोला और कहा कि सरकार मराठा समाज का अपमान कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर मांगें पूरी नहीं की गईं, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। यहां तक कि जरांगे ने पाइपलाइन सप्लाई बंद करने जैसे कदम उठाने की भी धमकी दी।

 

उनकी मुख्य मांग है कि मराठों को ओबीसी श्रेणी में 10% आरक्षण मिले और उन्हें कुणबी जाति का दर्जा दिया जाए। जरांगे ने कहा कि यह आंदोलन मराठा समाज की 'अंतिम लड़ाई' है और अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता।

सुरक्षा व्यवस्था कड़ी

आंदोलन की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने पूरे मुंबई में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। सीआरपीएफ और आरपीएफ समेत कई सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। वहीं, कई सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं। बीएमसी मुख्यालय, किताबखाना और सीएसएमवीएस म्यूज़ियम में भी गतिविधियां रोक दी गईं।

कैसे शुरू हुई मांग?

मराठा समुदाय लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा है। महाराष्ट्र में मराठा आबादी अनुमानतः 30-35% तक माना जाता है। 2018 में राज्य सरकार ने मराठों के लिए सोशली एंड एजुकेशनल बैकवर्ड क्लास (SEBC) श्रेणी में 16% आरक्षण देने का कानून बनाया था।

 

हालांकि, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया और कहा कि यह आरक्षण 50% की सीमा से अधिक है, जिसे केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पार किया जा सकता है। कोर्ट ने साफ किया कि मराठा समाज को 'पिछड़ा वर्ग' घोषित करने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं।

 

इसी पृष्ठभूमि में अब मराठा नेताओं की मांग है कि उन्हें 'कुणबी' जाति का दर्जा दिया जाए। कुणबी एक कृषक जाति है, जो पहले से ओबीसी में शामिल है। जरांगे का कहना है कि मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठों को पहले भी ऐतिहासिक दस्तावेजों में कुणबी लिखा गया है, और सरकार को इन्हें उसी आधार पर ओबीसी श्रेणी में शामिल करना चाहिए।

पिछली बार भी उभरा था बड़ा आंदोलन

2016 से 2018 के बीच महाराष्ट्र में मराठा मोर्चों की एक लंबी श्रृंखला देखने को मिली थी। लाखों लोग शांतिपूर्ण रैलियों में शामिल हुए थे। उस समय भी मराठा आरक्षण का मुद्दा बेहद गरमाया था और सरकार को मजबूर होकर विशेष कानून लाना पड़ा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस कानून को असंवैधानिक ठहरा दिया।

 

इसके बाद से यह आंदोलन समय-समय पर तेज़ होता रहा है। मनोज जरांगे-पाटिल पिछले एक साल से लगातार इस मुद्दे पर सक्रिय हैं और उन्होंने कई बार जल-त्याग आंदोलन और भूख हड़ताल की चेतावनी दी है।

 

यह भी पढ़ें: क्या चाहते हैं मराठा, क्यों आरक्षण पर फंस जाता है पेच?

सरकार की मुश्किलें

महाराष्ट्र सरकार फिलहाल दुविधा में फंसी हुई है। एक ओर मराठा समाज की बड़ी आबादी और उसका राजनीतिक दबाव है, दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की तय की गई 50% आरक्षण सीमा है, जिसे तोड़े बिना रास्ता निकालना मुश्किल है।

 

सरकार ने सितंबर 2023 में न्यायमूर्ति संदीप शिंदे समिति बनाई थी, जिसका काम था मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र दिलाने का तरीका तय करना। समिति ने एक साल से अधिक समय तक पुराने गजट और दस्तावेजों का अध्ययन किया है, लेकिन अब तक अंतिम रिपोर्ट पेश नहीं की गई है।