शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे आज दो दशक बाद वर्ली में एक मंच पर नजर आएंगे। दोनों पार्टियों ने मिलकर 'आवाज मराठीचा' नाम से विजय रैली का आयोजन किया है। यह रैली महायुति सरकार के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने की जीत के बाद हो रही है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने संयुक्त रूप से तीन भाषा नीति का विरोध किया था। उद्धव, शिवसैनिकों के पुराने अंदाज में नजर आ रहे हैं तो राज ठाकरे अपनी उग्र भाषाई और क्षेत्रीय राजनीति के लिए लोगों के निशाने पर हमेशा से रहे हैं।

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के अलावा, महाराष्ट्र के कुछ और क्षेत्रीय दलों ने भी भाषा नीति का विरोध किया था। अब वर्ली के एनएससीआई डोम में होने वाली इस रैली के लिए दोनों पार्टियों ने जोर-शोर से तैयारियां की हैं। ऑडिटोरियम में 8,000 लोगों के बैठने की क्षमता है, लेकिन भीड़ इससे कहीं ज्यादा होने की उम्मीद है। जो लोग अंदर नहीं पहुंच पाएंगे, वे बाहर लगाई गई LED स्क्रीन पर कार्यक्रम देख सकेंगे। 


'आवाज मराठीचा' के लिए कितनी तैयार है मुंबई?

मराठी निर्देशक-निर्माता अजित भुरे इस आयोजन को संचालित करेंगे। एमएनएस नेता यशवंत किलेदार ने कहा, 'हमने महाराष्ट्र के नक्शे के साथ एक भव्य मंच तैयार किया है, जिस पर 'आवाज मराठीचा' लिखा है। करीब 6,000 कुर्सियों की व्यवस्था की गई है। एनएससीआई डोम के चारों ओर टेंट लगाए गए हैं और फुटपाथों पर बड़ी स्क्रीनें लगाई गई हैं। हमें उम्मीद है कि लोग आएंगे। एनी बेसेंट रोड पर ट्रैफिक रोकना पड़ सकता है।'

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'ठाकरे बंधुओं को दिखाया है शेर'

रैली की तैयारियों के लिए शिवसेना (यूबीटी) के अनिल परब और एमएनएस के बाला नांदगांवकर को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। दोनों ने अपनी-अपनी टीमों के साथ मिलकर सारी व्यवस्थाएं बनाई हैं। स्थानीय नेताओं से अपने इलाकों में LED स्क्रीन लगाने को कहा गया है। सोशल मीडिया पर ठाकरे भाइयों को शेरों के तौर पर दिखाया गया है। कई टीजर वायरल हो रहे हैं, जिसमें वे भेड़ियों के झुंड से लड़ते नजर आ रहे हैं।

'खोया जनाधार वापस पाने की कोशिश'

मुंबई में लालबाग, परेल, दादर, वर्ली और मुंबई महानगर क्षेत्र में बैनर लगाए गए हैं, जिन पर लिखा है, 'सरकार को घुटनों पर कौन लाता है? मराठी मानूस' और 'मराठी लोगों की एकता आज की जरूरत और हमारी असली ताकत है।'

साथ आने की मजबूरी क्या है?

  • मराठी अस्मिता: उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे महाराष्ट्र में हिंदी को स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में एकजुट हुए। दोनों इसे मराठी भाषा और संस्कृति पर हमला मानते हैं। दोनों पार्टियों की राजनीति क्षेत्रीय हितों और मराठी भाषा पर टिकी हुई है। राजनीतिक तौर पर दोनों दल हाशिए पर हैं, अस्तित्व बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

  • BMC का चुनाव: ठाकरे बंधुओं का यह गठजोड़ आगामी बीएमसी चुनावों को ध्यान में रखकर मराठी वोटों का ध्रुवीकरण करने की रणनीति माना जा रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि यह गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) और महायुति दोनों के लिए चुनौती बन सकता है। शिवसेना का बीएमसी में दबदबा रहा है। उद्धव ठाकरे, अपने पार्टी के मूल सिद्धांतों से भटके थे लेकिन हाशिए पर जाने के बाद, एक बार फिर से अपने पिता की आक्रामक राजनीति को अपना रहे हैं। 

  • पार्टी बचाने की कोशिश: उद्धव और राज के विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी पर अपना प्रस्ताव वापस लिया। दोनों की सियासत एक जैसी ही है। शिवसेना (यूबीटी) ने सेक्युलर रंग ओढ़ा है, जबकि बाल ठाकरे का एजेंडा हिंदुत्व को लेकर बेहद साफ था। महाराष्ट्र में मनसे का न तो दबदबा है, न ही सियासी ताकत। अब राज ठाकरे, शिवसेना (यूबीटी) की मदद से अपनी पार्टी को दोबारा अस्तित्व में लाने की कोशिश कर रहे हैं।

  • पुरानी अनबन भुलाने की कोशिश: 2006 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए थे। उन्होंने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का गठन किया। दोनों भाई, एक-दूसरे के लिए तल्ख बने रहे। मराठी के मुद्दे पर एक हुए। संजय राउत ने उन्हें मराठी एकता का प्रतीक बताया है। 

 

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क्या है मनसे और शिवसेना का एजेंडा?

एमएनएस के पश्चिमी मुंबई प्रमुख कुणाल मणिकर ने बताया, 'मराठी मंडलों ने हमारी पुकार सुनी है। जय जवान गोविंदा मंडल रैली स्थल पर मानव पिरामिड बनाएगा।'

शिवसेना (यूबीटी) नेता किशोरी पेडणेकर ने कहा, 'यह रैली भले ही मराठी के मुद्दे के लिए है, लेकिन यह स्थानीय निकाय चुनावों से पहले ठाकरे भाइयों के बीच गठबंधन की नई शुरुआत हो सकती है।'

पार्टी के एक अन्य नेता विनायक राउत ने कहा, 'महाराष्ट्र भर से लोग दोनों भाइयों को एक साथ देखने आएंगे। एनसीपी (एसपी) के जयंत पाटिल, सीपीआई और सीपीएम जैसे सहयोगी दलों के नेता भी शामिल होंगे।

शरद पवार (एनसीपी-एसपी) और हर्षवर्धन सपकाल (कांग्रेस) के रैली में शामिल नहीं होंगे। उनके प्रतिनिधि हिस्सा ले सकते हैं।