मदुरै में भगवान मुरुगन के भक्तों द्वारा आयोजित एक भव्य आध्यात्मिक सम्मेलन 'मुरुगा भक्तार्गलिन आनमीगा मानाडु' हाल ही में विवादों का केंद्र बन गया। यह आयोजन 22 जून 2025 को शुरू हुआ था, जिसे हिंदू मुन्‍नानी ने भाजपा के सहयोग से आयोजित किया। इस सम्मेलन में भगवान मुरुगन के तमिलनाडु स्थित छह प्रमुख मंदिरों की भव्य प्रतीकात्मक प्रतिमाएं लगाई गईं, जहां श्रद्धालुओं ने धार्मिक गीत, कवच पाठ और पूजा अनुष्ठानों में भाग लिया। लाखों भक्तों की उपस्थिति ने इसे एक ऐतिहासिक आयोजन बना दिया।

11 से घटाकर तीन दिन कर दिया गया सम्मेलन का समय

इस आयोजन की योजना 11 दिन की थी लेकिन तमिलनाडु पुलिस ने सुरक्षा और व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए इसकी अवधि को तीन दिन तक सीमित कर दिया। इसके साथ ही ड्रोन, साउन्ड सिस्टम, बाइक रैली और ई-पास सिस्टम पर भी कई पाबंदियां लगाईं गईं। आयोजकों ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी और मद्रास उच्च न्यायालय ने 13 जून को फैसला सुनाते हुए पुलिस की कई शर्तों को उचित बताया लेकिन पास नीति में राहत भी दी। हालांकि, जब ई-पास सिस्टम को पूरी तरह लागू नहीं होने दिया गया, तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा लेकिन वहां से याचिका खारिज हो गई।

 

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यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रंग में भी रंगा दिखा। भाजपा नेताओं ने इसे तमिल संस्कृति की रक्षा के रूप में प्रस्तुत किया और आरोप लगाया कि राज्य की सत्ताधारी पार्टी DMK जानबूझकर इस आयोजन को रोकना चाहती थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नयनार नागेंद्रन ने इसे 'संस्कृति की रक्षा की लड़ाई' बताया, जबकि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने इसे सरकार को 'चेतावनी' कहा। आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ा विषय बताते हुए इस पर लोगों से समर्थन मांगा।

DMK ने लगाया आरोप

दूसरी ओर DMK और उनके सहयोगी दलों ने इस आयोजन को 'राजनीतिक रैली' करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा धर्म के नाम पर समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही है। DMK के मंत्री ने यह भी आशंका जताई कि इतनी बड़ी भीड़ कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन सकती है। वामपंथी दलों ने भी इसका विरोध किया और दिंदिगुल में भाजपा समर्थकों और CPM कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की खबरें भी आईं।

 

इस विवाद के चलते एक धार्मिक आयोजन एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक विमर्श का विषय बन गया। आयोजन सफल रहा, पर इसके इर्द-गिर्द जो टकराव, आरोप-प्रत्यारोप और राजनीति देखी गई, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि आज के दौर में धर्म और राजनीति के बीच की रेखा बहुत धुंधली हो चुकी है। जहाँ एक ओर आयोजन को भक्ति और संस्कृति के संरक्षण के रूप में देखा गया, वहीं दूसरी ओर इसे राजनीतिक हित साधने का एक माध्यम भी माना गया।