पुरी के जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने सेवक रामकृष्ण दासमोहपात्रा को एक कारण बताओ नोटिस भेजा है। यह नोटिस उन्होंने पश्चिम बंगाल के दीघा में बने नए जगन्नाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने और वहां दिए गए एक बयान को लेकर जारी किया गया है। रामकृष्ण दासमोहपात्रा ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि दीघा के नए मंदिर में जो मूर्तियां लगी हैं, वे 2015 में हुए नवकलेवर अनुष्ठान के बाद बची हुई पवित्र लकड़ी से बनाई गई हैं। इस पर श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने उनसे सात दिनों के भीतर सफाई मांगी है। प्रशासन ने साफ किया है कि अगर समय पर जवाब नहीं मिला, तो मंदिर कानून 1955 के तहत उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। एसजेटीए के मुख्य प्रशासक, अरबिंद कुमार पाधी ने यह नोटिस जारी किया है।

 

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अपने बयान से पलटा सेवक

बाद में सेवक रामकृष्ण दासमोहपात्रा ने अपने पहले दिए गए बयान से पीछे हटते हुए कहा कि दीघा के नए जगन्नाथ मंदिर में स्थापित मूर्तियां 2015 के नवकलेबर अनुष्ठान से बची हुई लकड़ी से नहीं बनाई गई थीं। उन्होंने केवल मूर्तियों के निर्माण की देखरेख की थी। नवकलेबर भगवान जगन्नाथ का एक बेहद पवित्र अनुष्ठान है, जिसमें पुराने लकड़ी के विग्रहों को नई मूर्तियों से बदला जाता है। ये मूर्तियां विशेष रूप से चुनी गई नीम की लकड़ी से बनती हैं और यह अनुष्ठान 12 या 19 वर्षों के अंतराल पर खगोलीय गणनाओं के आधार पर होता है।

दासमोहपात्रा के विरोधाभासी बयानों को लेकर आरोप है कि इससे भक्तों के बीच भ्रम फैल गया और 12वीं सदी के पुरी जगन्नाथ मंदिर की मर्यादा को ठेस पहुंची। मंदिर प्रशासन के अनुसार, नवकलेबर के समय बची हुई लकड़ी को पुरी मंदिर के दरुघर में सुरक्षित रखा जाता है और उसका उपयोग केवल विशेष अवसरों पर, भगवान की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है।

 

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कारण बताओं नोटिस में क्या?

कारण बताओ नोटिस में कहा गया है कि एक वरिष्ठ सेवक होने के नाते दासमोहपात्रा को नियमों की पूरी जानकारी थी, इसके बावजूद उन्होंने ऐसे बयान दिए जिससे भक्तों में भ्रम फैला। रविवार को दासमोहपात्रा और एक अन्य सेवक, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) की समिति के सामने पेश हुए और अपनी बात रखी, जिसके बाद यह नोटिस जारी किया गया।