बिहार में कुछ समुदाय ऐसे हैं, जिनकी आबादी ज्यादा है लेकिन आर्थिक स्थिति की वजह से समाजिक तौर पर हाशिए पर हैं। इन्हीं समुदायों में से एक समुदाय है, मुसहर समुदाय। अक्टूबर 2023 में जारी हुए बिहार के जातिगत सर्वे बताते हैं कि बिहार में मुसहर समाज की आबादी करीब 3.08 प्रतिशत है। राज्य में इन्हें महादलित श्रेणी में रखा गया है। समुदाय की एक बड़ी अबादी मजदूर है और आजीविका का साधन मेहनत और मजदूरी ही है। मुसहर समाज के लोग अनुसूचित जाति के अंतर्गत रखा गया है।
मुसहर समाज, बिहार के आर्थिक तौर पर सबसे पिछड़े समुदायों में से एक हैं। इन्हें महादलित श्रेणी में रखा गया है। बिहार के चुनावों में हर बार, मुसहर समाज के लोगों के नाम पर सियासत होती है लेकिन सच्चाई यह है कि समाज का एक बड़ा तबका, बेहद बदहाल स्थिति में रहता है।
नेशनल ह्युमन राइ्टस कमीशन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि बिहार में भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया, गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सारण, चंपारण और भोजपुर ऐसे जिले हैं, जहां मुसहर बड़ी संख्या में रहते हैं। डॉ. सचींद्र नारायण अपनी किताब 'मुसहर: ए सोशियो-इकोनॉमिक स्टडी' में लिखा है कि एक जमाने में इस समुदाय की स्थिति ऐसी थी कि पेट पालने के लिए लोग चूहों का शिकार करते थे। इनके नाम का भी शाब्दिक अर्थ है मूस खाने वाला या मूस पकड़ने वाला।

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बिहार: बुरे हाल में है मुसहर समाज के लोग
डॉ. सचींद्र नारायण अपनी किताब 'मुसहर: ए सोशियो-इकोनॉमिक स्टडी' में लिखते हैं, 'मुसहरों के साथ खाना सिर्फ दलित समाज के लोग ही खाते थे। उन्हें सामाजिक तौर पर बेहद पिछड़ा समझा जाता है। ज्यादातर मुसहर आज भी दूसरों के खेतों में काम करते हैं, कुछ लोग उद्योग-धंधों में मजदूर के तौर पर काम करते हैं। बिहार में मुसहर समुदाय के लोग मांझी और मंडल जैसे उपनामों का इस्तेमाल करते हैं। मुसहर समाज के ज्यादातर लोग आज भी मजदूरी और खेती किसानी का काम करते हैं। उनके पास जमीनें बेहद कम हैं, या नहीं हैं। हिंदू धर्म का पालन करते हैं।
3% आबादी लेकिन बिहार की सत्ता में दबदबा कैसा?
बिहार में मुसहर समाज के सबसे बड़े नेताओं में शुमार हैं जीतन राम मांझी। केंद्र सरकार में मंत्री हैं। सिर्फ अपनी पार्टी से इकलौते सांसद हैं फिर भी उन्हें केंद्र सरकार में अहम पद मिला है। वह सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के मंत्री हैं। उनकी पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, मुसहर समुदाय की राजनीति करती है। चुनावी राजनीति में इस समुदाय प्रभावी है।
बिहार के भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया, गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सारण, चंपारण और भोजपुर जैसे जिलों में मुसहर समुदाय, निर्णायक स्थिति में है। बिहार में हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के 4 विधायक हैं। बाराचट्टी से ज्योति देवी, इमामगंज से जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी, सिकंदरा से प्रफुल कुमार मांझी और टिकरी विधानसभा सीट से अनिल कुमार। चारों नेता, मुसहर समुदाय से आते हैं।

SIR से परेशान मुसहर समाज?
बिहार में मुसहर समुदाय से आने वाले लोगों की संख्या 40 लाख से ज्यादा है। बिहार में स्पेसल इंटेंसिव रिवीजन या मतदाता संशोधन प्रक्रिया चल रही है। जिन दस्तावेजों को चुनाव आयोग ने मांगा है, उनमें एक अहम दस्तावेज सेंकेड्री एजुकेशन सर्टिफिकेट भी है। जिसे जन्म प्रमाण पत्र माना जा सकता है। हैरान करने वाली यह बात है कि बिहार में सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि केवल 98,420 लोगों ने बिहार में मैट्रिक की परीक्षा पास की है।
चुनाव आयोग की ओर से मांगे गए दस्तावेजों में सरकारी नौकरियों के पहचान पत्र को अहम दस्तावेज माना गया है। जातिगत सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में केवल 10615 लोग ऐसे हैं, जिनके पास सरकारी नौकरी है, केवल 26 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास पक्के घर हैं। बिहार में मुसहर समुदाय के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह समुदाय इतना पिछड़ा है कि ज्यादातर के पास दस्तावेज नहीं है। एक बड़ी आबादी डरी है कि कहीं दस्तावेज न होने की वजह से उनके वोट बैंक पर ही ग्रहण न लग जाए।

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बिहार में विपक्षी नेताओं ने भी चिंता जताई है कि समाज के कई तबके ऐसे हैं, जिनके लिए जाति प्रमाणपत्र, आवास प्रमाण पत्र, बैंक अकाउंट,
निवास प्रमाण पत्र, शैक्षिक प्रमाणपत्र, परिवार रजिस्टर, एनआरसी डॉक्यूमेंट, पासपोर्ट, वन अधिकार प्रमाण पत्र, पैन कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं हैं। लोगों के पास आधार कार्ड है। अगर इसे ही सरकार नहीं मानेगी तो समुदाय के वोट देने का अधिकार ही छीन लिया जाएगा।

किस हाल में हैं मुसहर समाज के लोग?
भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया, गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सारण, चंपारण और भोजपुर जैसे जिलों में मुसहर समाज, बदहाल स्थिति में है। बहुत कम लोग हैं, जिन्हें सामाजिक तौर पर समृद्धि हासिल की है। ज्यादार लोग अब भी कच्चे घरों में रहते हैं। यह बात सरकार भी मानती है कि मुसहर समाज के सिर्फ 26 प्रतिशत लोगों के पास ही घर है। मुसहर समाज की बदहाली पर बीबीसी से लेकर अलजजीरा तक में रिपोर्ट छपी, सरकार की खूब किरकिरी भी हुई लेकिन हालात कमोबेश वैसे के वैसे ही रहे। राज्य सरकार इन्हें महादलित का दर्जा भी दिया है लेकिन उससे इनकी स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है।