प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार 27 नवंबर को साउथ गोवा जिले में स्थित श्री संस्थान गोकर्ण परतागली जीवोत्तम मठ में भगवान राम की 77 फीट ऊंची कांसे की मूर्ति का अनावरण करेंगे। उद्घाटन से पहले ही यह मूर्ति चर्चा का विषय बन गई है क्योंकि इसे उन्हीं राम सुतार ने तैयार किया है, जिन्होंने गुजरात में बनी स्टैचू ऑफ यूनिटी तैयार की है। गोवा सरकार के मंत्री दिगंबर कामत ने बताया है कि यह दुनिया में सबसे ऊंची राम मूर्ति होगी।
पीएम मोदी दोपहर करीब 3:45 बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचेंगे। मठ की सेंट्रल कमेटी के चेयरपर्सन श्रीनिवास डेम्पो के अनुसार, PM मोदी पब्लिक मीटिंग को संबोधित करने से पहले मठ के मंदिर में दर्शन करेंगे। यह मठ अपनी 550वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस मौके पर 27 नवंबर से 7 दिसंबर मतलब 11 दिनों तक कई प्रोग्राम होने वाले हैं। श्रीनिवास ने बताया कि गोवा में मठ की जगह 370 साल पहले कैनाकोना (दक्षिण गोवा जिला) के परतागली गांव में बनाई गई थी।
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कौन-कौन आएगा?
गोवा पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के मंत्री दिगंबर कामत ने बताया कि इस कार्यक्रम में गवर्नर अशोक गजपति राजू, मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और केंद्रीय मंत्री श्रीपद नाइक, राज्य के कैबिनेट मंत्रियों के साथ मौजूद रहेंगे। उन्होंने कहा कि हर दिन मठ में करीब 7,000 से 10,000 लोगों के आने की उम्मीद है।
मूर्ति की विशेषता
इस मूर्ति का अनावरण पीएम करेंगे जिसे गुजरात के स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति) को डिजाइन करने वाले मूर्तिकार राम सुतार ने बनाया है। इस मूर्ति में भगवान राम को राजा के रूप में दर्शाया गया है, जिसमें एक हाथ में धनुष और दूसरे हाथ को आशीर्वाद मुद्रा में दिखाया गया है। मंत्री दिगंबर कामत ने बताया कि यह दुनिया में श्री राम की सबसे ऊंची मूर्ति होगी। प्रतिमा के साथ, परिसर में एक रामायण थीम पार्क और राम संग्रहालय भी विकसित किया जा रहा है, ताकि यह जगह एक प्रमुख आध्यात्मिक और पर्यटन का केंद्र बन सके।
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गोकर्ण मठ का इतिहास
गोकर्ण परतागली जीवोत्तम मठ की स्थापना 13वीं शताब्दी में जगद्गुरु माधवाचार्य ने की थी। यह मठ दक्षिण गोवा के परतागली नामक जगह पर स्थित है और यह गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मठों में से एक है। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे मठाधीशों की एक अटूट वंशावली बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया था।
13वीं शताब्दी में फलीमारु मठ के एक आचार्य श्री रामचंद्र तीर्थ बीमार पड़ गए थे। उनके मठ मुख्यालय (उडुपी में) से दूर होने के कारण उन्हें चिंता थी कि उनकी मृत्यु के बाद मठ की परंपरा समाप्त हो जाएगी। उन्होंने मठ के इतिहास को बनाए रखने के लिए एक नई शाखा की स्थापना की जो बाद में गोकर्ण परतागली जीवोत्तम मठ बना।
