अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन ड्रग अब्यूज (NIDA की एक स्टडी बताती है कि ड्रग या एल्कोहल का असर हमारे तंत्रितका तंत्र पर पड़ता है। ड्रग या एल्कोहल, शरीर में जाते ही तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को अपने कब्जे में लेती हैं और दिमाग को अनियंत्रित संदेश भेजने लगते हैं। तंत्रिका तंत्र ही शरीर को कमांड भेजता है, जो कमांड मिलता है, उसकी के हिसाब से शारीरिक गतिविधियां होती हैं। तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाओं से मिलकर बना होता है। इसके जरिए ही शरीर के काम नियंत्रित होते हैं।

ड्रग शरीर में पहुंचते ही नर्व सिस्टम को प्रभावित करता है और न्यूट्रोट्रांसमीटर्स को अपने हिसाब से सिग्नल भेजता है। ड्रग का असर कुछ वक्त तक ही रहता है। वजह ये है कि वे न्यूरॉन्स को सक्रिय नहीं कर पाते हैं। जैसे ही उनका असर कम पड़ता है, दिमाग धीरे-धीरे खुद को संभालने लगता है। दिमाग में मौजूद रसायनों की वजह से ड्रग का असर धीरे-धीरे कम होने लगता है। कोकीन, होरोइन, गांजा-भांग और शराब जैसी चीजों की वजह से मस्तिष्क के स्वाभाविक रासायनिक कुछ देर के लिए शिथिल पड़ जाते हैं, जिसकी वजह से तंत्रिका तंत्र के संदेश भेजने की प्रक्रिया ही बाधित हो जाती है।

ड्रग का दिमाग पर क्या असर होता है?
ड्रग की वजह से स्पष्ट देखना, सुनना, सूंघना, छूना या स्वाद सब कुछ देर के लिए गायब हो जाता है। तंत्रिका तंत्र अपना काम नहीं कर पाता है, इसलिए दिमाग भी काम नहीं करता है। व्यक्ति को इसमें मजा आने लगता है और वह कुछ देर के लिए अपने अवसाद, दुख भूल जाता है। 

ड्रग की लत क्यों लगती है?
कुछ वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि ड्रग तंत्रिका तंतुओं को ज्यादा सक्रिय कर देता है, जितना वे स्वाभाविक तौर पर होते हैं, जिसकी वजह से दिमाग अनियंत्रित होने लगता है। ऐसी स्थिति में इंसान पर जो धुन सवार होती है, वह वही करने लगता है। धीरे-धीरे दिमाग को उसी अवस्था में जाने की इंसान को लत लग जाती है। अगर ड्रग न मिले तो फिर इंसान के हाथ-पैर कांपने लगते हैं। यही वजह है कि लोगों को ड्रग की लत लग जाती है।