ग्रुप कैप्टन सुभांशु शुक्ला बीते एक सप्ताह से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर हैं। ISS पर जाने वाले वह पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं। उन्होंने HAM रेडियो के जरिए भारत के स्कूली छात्रों के साथ बातचीत की है। उन्होंने बताया कि स्पेस स्टेशन में सोना सबसे मुश्किल काम है। उन्होंने कहा कि यहां काम ज्यादा होता है, वक्त कम होता है, इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा काम करना होता है। 

इसरो के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर से लोगों ने उनसे कई सवाल पूछे। एक्सिओम-4 पर उन्होंने कई अहम सवालों के जवाब दिए। उनकी बातचीत को स्पेस इंडिया ने लाइव स्ट्रीम भी किया। देशभर के कई स्कूलों ने इसमें हिस्सा लिया। कभी सोचा है कि आखिर अंतरिक्ष तक बात पहुंचाने वाला यह HAM रेडियो आखिर क्या बला है? 

यह भी पढ़ें: Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला का ड्रैगन शिप से देश के नाम संदेश

HAM radio है क्या?

हैम रेडियो संकट का इस्तेमाल, अंतरिक्ष से लेकर आपदा तक में होता है। यह कम्युनिकेशन के लिए बेहद अहम डिवाइस है, जिसके सिग्नल सबसे भरोसेमंद होते हैं। यह एक लाइसेंसी रेडियो सर्विस है, जो रेडियो वेव (तरंग) के जरिए एक जगह से दूसरी जगह बातों को पहुंचाती है। इसमें ट्रांसमीटर, स्पीकर और रिसीवर की ऐसी जुगलबंदी होती है, जिसकी वजह से बिना किसी बाधा के 'मैसेज' एक छोर से दूसरी छोर तक पहुंच जाता है। हैम रेडियो का इस्तेमाल आमतौर पर किसी आपदा या इमरजेंसी के दौरान होता है। वैज्ञानिकों ने इसे 'एमेच्योर रेडियो' का भी नाम दिया है। 

इस रेडियो में ट्रांसीवर और एंटीना के साथ खास फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल किया जाता है। हैम ऑपरेटर, इस डिवाइस के जरिए एक-दूसरे से बात करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसकी रेंज बहुत ज्यादा होती है। इस रेडियो का इस्तेमाल हर स्तर पर होता है। घर, कंपनी से लेकर अंतरिक्ष तक, यह डिवाइस, हर जगह एक जैसा काम करती है। भारत में 12 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी शख्स इस रेडियो का लाइसेंस हासिल कर सकता है। इसे सूचना प्रसारण मंत्रालय जारी करता है। 

इंटरनेशनल स्पेस सेंटर में शुभांशु शुक्ला। (Photo Credit: NASA)

यह भी पढ़ें: 'स्पेस से नमस्कार, खूब सो रहा हूं', आ गया शुभांशु शुक्ला का पहला संदेश

कैसे काम करता है हैम रेडियो?

हैम रेडियो से रेडियो वेव के जरिए सिग्नल मिलते हैं। इसमें ट्रांसमीटर सिग्नल भेजता है और रिसीवर उसे कैच करता है। एंटीना, तरंगों को भेजने और रिसीव करने में मदद करता है। ऑपरेटर मेगाहर्ट्ज चुनकर दुनियाभर में बात कर सकते हैं। 

अंतरिक्ष में क्यों होता है इस्तेमाल?

साल 1983 में पहली बार स्पेशल शटल में हैम रेडियो का इस्तेमाल किया गया था। वहीं से जमीन पर मौजूद लोगों से संपर्क किया गया था और बातचीत की गई थी। स्पेस स्टेशन पर 'एमेच्योर रेडियो ऑन द इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन' (ARISS) के जरिए यह तकनीक काम कर रही है।

इसका मकसद छात्रों को अंतरिक्ष यात्रियों से बात कराना है, जिससे वे अंतरिक्ष कार्यक्रमों में दिलचस्पी रख सकें। अमेरिका, रूस, कनाडा, जापान और यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसियां इस शैक्षिक पहल को आगे बढ़ा रही हैं। जब ISS पर डॉकिंग की जाती है, तब इस कम्युनिकेशन को रोक दिया जाता है। डॉकिंग की वजह से रेडियो सिग्नल बाधित हो सकते हैं।

 

यह भी पढ़ें: Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला का ड्रैगन शिप से देश के नाम संदेश

एक्सिओम-4 मिशन में हैम रेडियो का कैसे इस्तेमाल हो रहा है?

एक्सिओम-4 मिशन के तहत भारत, पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री 14 दिन की ISS यात्रा के दौरान दो बार अपने देश में हैम रेडियो के जरिए बात कर रहे हैं। जब ISS उनके देश से होकर गुजरता है, तब 5 से 8 मिनट के बीच में बातचीत हो पाती है।

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुक्ला 145.80 MHz डाउनलिंक, 144.49 MHz अपलिंक और 145.825 MHz पैकेट अपलिंक और डाउनलिंक जैसी फ्रीक्वेंसी के इस्तेमाल से बात कर पाए हैं। यह बातचीत दोपहर 3:47 बजे शुरू हुई, जिसमें पहले अमेरिका से टेलीफोन या इंटरनेट कॉल के जरिए कनेक्ट किया गया, फिर हैम रेडियो की मदद से बात हो पाई। 

हैम रेडियो। (Photo Credit: tidradio.com)


डाउनलिंक, अपलिंक, पैकेट अपलिंक और Mhz हैं क्या?

डाउनलिंक वह फ्रीक्वेंसी है, जिससे अंतरिक्ष से पृथ्वी पर सिग्नल भेजे जाते हैं। अपलिंक वह फ्रीक्वेंसी है जिससे पृथ्वी से अंतरिक्ष में सिग्नल भेजे जाते हैं। पैकेट अपलिंक और डाउनलिंक डिजिटल डेटा भेजने और रिसीव करने की फ्रीक्वेंसी है। MHz का पूरा नाम मेगाहर्ट्ज है। रेडियो तरंगों की आवृत्ति इसी यूनिट में मापी जाती है।
 

यह भी पढ़ें: ISS पर जानें से पहले क्यों क्वारंटीन किए जाते हैं अंतरिक्ष यात्री

जरूरी क्यों है हैम रेडियो?

दुनिया मोबाइल और इंटरनेट पर भले ही शिफ्ट हो गई है लेकिन हैम रेडियो, कम्युनिकेशन का सबसे भरोसेमंद साधन माना जाता है। जब भूकंप, सुनामी, बाढ़ या युद्ध जैसी स्थितियां पैदा होती हैं, मोबाइल टावर टूट जाते हैं और दूसरे कम्युनिकेशन डिवाइस बंद होने लगते हैं, तब हैम डिवाइस की जरूरत पड़ती है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के लिए भी यह डिवाइस भरोसेमंद है। रेस्क्यू ऑपरेशन में जवान इसका इस्तेमाल करते हैं। यह रेडियो धरती और अंतरिक्ष के बीच पुल की तरह है।