सूचना के अधिकार के तहत आप क्या-क्या पूछ सकते हैं? किसी विभाग में कितने चाय-समोसे लोग ऑर्डर कर रहे हैं, क्या यह पूछा जा सकता है? क्या इस पर सूचना के अधिका के तहत जवाब मांगा जा सकता है? बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई हो रही थी। ऐसे आरोप लगते हैं कि याचिकाकर्ता के सवालों का जवाब राज्य का सूचना आयोग (SIC) नहीं देता है।

राज्य सूचना आयोग ने बॉम्बे हाई कोर्ट से बुधवार को कहा कि उन्हें एक ऐसा आवेदन मिला, जिसमें यह पूछा गया है कि आप लोग एक दिन में सरकारी दफ्तरों में कितने समोसे मंगवाते हैं। हाई कोर्ट ने भी इस याचिका पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। हाई कोर्ट ने कहा कि कानून सबके लाभ के लिए बनाया जाता है, लोग इसके जरिए दामादों को ढूंढ रहे हैं। सरकारी नौकरी वालों को ढूंढ रहे हैं।

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याचिका किसने दायर की थी? 

पूर्व चीफ इन्फॉर्मेशन कमिश्नर (CCC) शैलेश गांधी और 5 RTI कार्यकर्ताओं ने एक जनहित याचिका दायर की थी।  उनकी अपील में राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त को आवेदनकर्ता की ओर से दूसरी अपील और शिकायत दर्ज कराने के 45 दिनों के भीतर निपटाने के लिए रोडमैप तैयार करने की मांग की गई थी।

 

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सूचना आयोग ने क्या कहा? 


सूचना आयोग ने कहा कि ऐसे मामलों में देरी इसलिए होती है क्योंकि सूचना आयुक्त के पद ही नहीं भरे जाते हैं। राज्य की ओर से पेश हुई वकील ज्योति चह्वाण ने कहा कि राज्य के सूचना आयोग में 7 पद रिक्त थे। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि 3 अतिरिक्त पद सूचना आयुक्त के रिक्त हैं। 1 लाख से ज्यादा दूसरी अपील के मामले लंबित हैं। 


कोर्ट ने कहा कि हम PIL के दायरे को नहीं बढ़ा सकते


कोर्ट ने जनहित याचिकाकर्ताओं से कहा कि लगातार सरकार की कार्रवाई में दोष ढूंढते रहते हैं, वे हमेशा नकारात्मक रवैये के साथ आते हैं, इसलिए वे कभी संतुष्ट नहीं होते हैं। केस की सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा कि हम जनहित याचिका के दायरे को नहीं बढ़ा सकते हैं, सूचना के अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है। 

जज ने यह भी कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम में दूसरे अपील के निपटारे के लिए कोई समयसीमा नहीं है। जजों ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उम्मीद है सूचना आयोग दूसरे अपील का भी जवाब समय से देगा।