27 जुलाई 2025, भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक टाटा कंसेलटेंसी सर्विस (TCS) ने ऐसी घोषणा की जिससे सेक्टर के भविष्य पर ही सवाल उठने लगे। कंपनी की चीफ एग्जीक्यूटिव के कृतिवासन ने बताया कि वह अपने 2% कर्मचारियों की छंटनी करने की प्लानिंग कर रहें हैं। इसका असर कम से कम 12 हजार लोगों पर होगा। TCS वही कंपनी है जो 2004 में भारत की पहली बिलियन डॉलर आईटी कंपनी बनी थी। जब के कृतिवासन से पूछा गया कि क्या ऐसा AI की वजह से हो रहा है तो उन्होंने जवाब दिया, नहीं।
उन्होंने कहा वह छंटनी से कंपनी को फ्यूचर रेडी कर रहे हैं। भले ही कृतिवासन ने छंटनी की वजह के तौर पर AI को खारिज कर दिया लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि AI चुपचाप भारत के आईटी सेक्टर को बदल रहा है। नौकरियां जाना और सेक्टर में रोजगार कम होना इसका हिस्सा है। इस स्टोरी में जानिए भारत कैसे आईटी हब बना और कैसे AI के चलते यह सेक्टर खतरे में है।
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अंग्रेजी ने बनाया था भारत को दुनिया का आईटी हब?
1990 के दशक की बात है, दुनिया में Y2K नाम की समस्या को लेकर चिंताएं शुरू होने लगी थी। हुआ यह था कि उस समय तक दुनिया भर के कंप्यूटर्स में साल को पूरा जैसे 1990 लिखने की बजाए 90 लिखा जाता था। सभी कंप्यूटरों की कोडिंग इसी तरह से की गई थी। इससे 1999 तक तो कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन 2000 को लेकर लोग चिंतित होने लगे। वजह यह थी कि 2000 कंप्यूटर में 00 फीड होता और कंप्यूटरों में तारीख का सारा सिस्टम ही क्रैश कर जाता। कंप्यूटराइज्ड हो चुके लाखों करोड़ों बिजनेस को नुकसान होता और काफी सारा डेटा गलत हो जाता।
इसके चलते कंप्यूटर में कोडिंग सुधारने की जरूरत सामने आने लगी। हालांकि, इसके लिए काफी तादाद में ऐसे कंप्यूटर इंजीनियर्स की जरूरत पड़ी जो कोडिंग जानते हों। तभी होती है भारत की एंट्री।
दरअसल भारत में 1960 और 1970 के दशक में प्रोग्रामिंग लैंग्वेज COBOL सीखने के लिए सरकार ने बड़े स्तर कार्यक्रम चलाए थे। उस वक्त इसे लेकर पश्चिमी देशों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। हालात Y2K की समस्या के दौरान बदलने लगे। पश्चिमी देशों को ऐसे लोगों की जरूरत पड़ी जो प्रोग्रामिंग लैंगवेज जानते थे।
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इनकी कमी भारतीयों ने पूरी की। क्राइसिस कोडिंग में भारतीयों की क्षमता को दुनिया को सामने लाई। इसके बाद 1995 में बाजार खुला तो पश्चिमी देशों की कंपनियां अपनी कोडिंग और सॉफ्वेयर से जुड़ी जरूरतों के लिए भारत पहुंचने लगी। इसी दौरान TCS, विप्रो और इंफोसिस जैसी कंपनियों को दुनिया में पहचान मिली। बाहरी देशों से बिजनेस मिला तो इन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज से पास होने वाले ग्रैजुएट्स को बेसिक कोडिंग से लेकर सॉफ्टवेयर मेंटनेंस और टेक सपोर्ट की नौकरियों के लिए हायर किया गया।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी देशों की कंपनियों का यह काम करने के लिए भारतीय परफेक्ट थे। यूरोप और अमेरिका के लोग इस काम को बोरिंग समझते थे। जबकि चीन और साउथ ईस्ट एशिया के लोगों को अंग्रेजी की इतनी समझ नहीं थी। इससे भारत को दुनिया का आईटी हब बनने का मौका मिल गया।
क्यों पिछड़ने लगी आईटी इंडस्ट्री?
दुनिया का आईटी हब होने के बावजूद भारत के पास कोई ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं है जिसे हम अपना कह सकें। सिर्फ इतना ही नहीं भारत के पास मीडिया प्लेयर से लेकर चैट एप या ब्राउजर या कोई गेम तक ऐसा नहीं है जो चीन या दुनिया की बाकी कंपनियों को टक्कर दे सके। एक्सपर्ट्स के मुताबिक 2010 में यह साफ हो चुका था आईटी इंडस्ट्री में अगली वेव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की होगी इसके बावजूद भारतीय कंपनियों ने खुद को तैयार नहीं किया। जबकि कंपनियों के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। कमी थी तो सिर्फ विजन की। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय आईटी कंपनियों ने खूब पैसे कमाए लेकिन उसे रिसर्च और डेवलेपमेंट पर खर्च नहीं किया।
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हालत यह हो गई है कि भारतीय सॉफ्टवेयर डेवलेपर्स और कोडर्स को AI आसानी से रिप्लेस कर सकता है। ऑपन एआई जल्द ही चैट GPT5 लॉन्च करने वाला है, जो कोडिंग में माहिर होगा। आने वाले समय में सिर्फ मुश्किल कोडिंग के लिए लोगों की जरूरत होगी। इसके लिए सिर्फ 10 हजार लोगों की जरूरत होगी। जबकि TCS के पास 6 लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं। अगले 2 से 3 सालों में चैट जीपीटी इनसे तेजी से काम पूरा करने में माहिर हो जाएगी वो भी काफी कम खर्च पर।
आंकड़ों में आईटी इंडस्ट्री का हाल
भारत की GDP में आईटी इंडस्ट्री की 7% की भागीदारी है। इसमें 20 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं। हाल ही सालों में इसकी ग्रोथ में गिरावट दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2023-24 और 2022-23 में इसका ग्रोथ रेट 4 से 5% था हालांकि, इस 2024-25 में यह घटकर 3% रह गया। वहीं 2013 में GDP में इसकी भागीदारी 7.5% थी जो अब 7% रह गई है। एकतरफ जहां इसमें 20 लाख लोग काम करते हैं, वहीं इस सेक्टर में छंटनी 12 से 13% के बीच है। वित्त वर्ष 2023 में विप्रो ने 38 हजार लोगों को हायर किया था। जबकि 2025 में सिर्फ अब तक सिर्फ 10 हजार लोगों को हायर किया गया है।
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क्या भारत को चीन से सीखने की जरूरत ?
1990 में एकतरफ जहां भारत दुनिया की आईटी कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर बना रहा था। वहीं चीन में पश्चिम की कंपनियों के लिए मैन्यूफैक्चयुरिंग का काम होता था। हालांकि, कुछ ही सालों में चीन की कंपनियां पुर्जे बनाने से प्रोडेक्ट बनाने पर शिफ्ट कर गईं। BYD और ओप्पो इसका उदाहरण है। ऑटो कंपनी BYD न सिर्फ जापान, जर्मनी बल्कि मस्क की टेस्ला तक को टक्कर देने लगी है। भारत की कोई कंपनी ऐसा नहीं कर पाई।
